Yield Bond को समझने से पहले बांड के विषय में बेसिक जानकारी जान लेना जरुरी है। फिर असल विषय को जानना आसान होगा।
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Bond क्या है?
यह एक कागजी प्रमाण पत्र होता है इस पर बॉन्ड की फेस वैल्यू या प्राइस लिखा रहता है उस बॉन्ड पर दिया जाने वाला ब्याज दर(interest rate) भी लिखा होता है। इस प्रकार के प्रमाण पत्र के विक्रय से सरकार या कारोबारी संस्थाएं वित्तीय पूंजी (पैसा) एकत्र करती है।
Bond दो प्रकार के होते हैं
- गवर्नमेंट बॉन्ड(सरकार के द्वारा जारी)
- कॉर्पोरेट बॉन्ड(प्राइवेट कंपनी द्वारा जारी)
अलग अलग देशों में गवर्नमेंट बॉन्ड को अलग अलग नामों से जानते है। जैसे- भारत में गवर्नमेंट सिक्योरिटी , USA में ट्रेज़री , UK में गिल्ट्स के नाम से जानते हैं।
Bond Yields क्या है?
सरकार किसी बॉन्ड के ऊपर जो rate of return देती है। उसे ही बॉन्ड यील्ड कहा जाता है। जैसे- सरकार के किसी बॉन्ड का प्राइस है 1000 रूपये। उस पर सरकार हर साल 10% इंट्रेस्ट दे रही है तो उस 10% को या 100 रूपये को bond Yield या Yield bond कहा जाता है।
इसमें खास बात यह है कि जो rate of return है वह कभी fixed नहीं रहता बल्कि बॉन्ड की प्राइस के अनुसार बदलता रहता है।
Negative- Yield Bond
चीन के द्वारा negative-yielding sovereign बॉन्ड जारी किये गए हैं। जिन्हे यूरोप के अंदर यूरो में जारी किया गया है। जो भी यूरोप के इन्वेस्टर्स है वह यूरो में बॉन्ड को खरीद कर अपना पैसा लगा सकते हैं।
इस बॉन्ड में खास बात यह रही है कि चीन के द्वारा 4bn यूरो के बॉन्ड जारी किये गए जबकि 18bn यूरो के बॉन्ड की डिमांड सामने आयी।
चीन के द्वारा 3 प्रकार से बॉन्ड जारी किये गए हैं। जिसमें एक 5 साल के लिए, दूसरा 10 साल के लिए और तीसरा 15 साल के लिए।
इसमें जो 5 साल वाला बॉन्ड है उस पर चीन -0.15% रिटर्न्स देगा और 10 साल और 15 साल वालों पर 0.31% एवं 0.66% रिटर्न्स रहेगा। इन तीनों प्रकार के बॉन्ड में कोई खास रिटर्न्स नहीं है जिसमें 5 साल वाले बॉन्ड को लेने पर नेगेटिव रिटर्न्स ही हैं।
Negative-Yield Bond है क्या?
माना कि बॉन्ड खरीदते समय आपने 1000 का बॉन्ड खरीदा, समय पूरा होने के बाद या 5 साल बाद आप बॉन्ड को भुनाने जाते हैं तो आपको नेगेटिव रिटर्न्स के हिसाब से 1000 से कम की धनराशि प्राप्त होती है। इसे ही negative yield bond कहते हैं।
सवाल यह होगा कि ऐसे बॉन्ड को खरीदेगें क्यों ? जवाब में, यूरोप की स्थिति भारत से एकदम अलग है। भारत में जिन लोगो के पास बहुत अधिक पैसा है वह अपने पास छुपा कर रख लेते हैं या प्रॉपर्टी में लगा देते हैं। पैसे से पैसा बनना चाहिए कम नहीं होना चाहिए इसके लिए प्रयासरत रहते हैं। और अभी भारत एक विकासशील देश है। विकास की अथाह संभावनाएं छुपी हुई हैं।
किन्तु यूरोप की स्थिति एकदम अलग है। वहां विकास के चरम पर पहुंचा जा चूका है। ग्रोथ को बनाये रखना मुश्किल है।
जिन लोगो के पास पैसा है वह घर में तो नहीं रख सकते। जो इन्वेस्टर होता है वह अपने पास पैसा नहीं रखना चाहते है। इकॉनमी की स्थिति सही नहीं है। ग्रोथ नेगेटिव में है, बैंक में भी रिटर्न्स नहीं मिल रहा, तो ऐसी स्थिति में पॉजिटिव रिटर्न्स की स्थिति नहीं रहती।
ऐसा माना जा सकता है कि यूरोप के बैंक में पैसा जमा करने पर शून्य इंट्रेस्ट मिलता है या स्थिति नेगेटिव में भी हो सकती है। इन्वेस्टर्स का मन इसलिए ऐसा बना हुआ है कि उसे कम से कम नुकसान हो अगर वह नेगेटिव यील्ड बॉन्ड खरीदकर अपने सेविंग को बचाने की स्थिति में आ सकता है। और उसे मुनाफा न सही नुकसान तो कम होगा।
चीन के बॉन्ड का डिमांड इतना अधिक क्यों ?
यूरोप में अपनी सरकारों के द्वारा जो sovereign bond जारी किये गए हैं। उनका रेट ऑफ़ रिटर्न्स चीन के बॉन्ड से भी कम है बल्कि पॉजिटिव रिटर्न्स ही नहीं है। तो ऐसी स्थिति में चीन के जारी बॉन्ड की स्थिति बेहतर है और पॉजिटिव रिटर्न्स भी दिए जा रहे। इसलिए ही अनुमान से कई गुना अधिक yield bond की डिमांड यूरोप में देख गयी।कोरोना के चलते सभी देशों की इकनोमिक कंडीशन ख़राब है संकुचन के समय से पूरी दुनिया गुजर रही है फिर भी केवल चीन के द्वारा ही पॉजिटिव ग्रोथ को दर्शाया गया है ऐसी स्थिति में भी चीन पर इन्वेस्टर्स का भरोसा बड़ा है।