ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए शेल गैस को ऊर्जा के बेहतर विकल्प के रूप देखा जा रहा है। USA ने शेल गैस के माध्यम से पेट्रोल के मूल्य को कम करने में सहायता प्राप्त की है। इसी के चलते भारत भी शेल गैस में संभावनाओं को तलाश रहा है। किन्तु इससे पहले शेल गैस क्या है(What is Shale gas)? यह जानना होगा।
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शेल गैस क्या है(what is Shale Gas)?
शेल गैस एक प्रकार की अपरंपरागत ऊर्जा संसाधन है। ऐसा शेल गैस के विषय में इसलिए कहा जाता है क्यों कि यह मीथेन का ही रूप है किन्तु यह चट्टानों में पायी जाती है।जिनमें मुख्य हैं- बलुआ चट्टान, सिल्ट चट्टान, चूना पत्थर चट्टान।
शेल गैस कम पारगम्य चट्टानों की संरचनाओं में पायी जाती है। जिन्हे शेल चट्टान संरचना कहते हैं एवं इसमें मिलने वाली गैस को शेल गैस कहते हैं। यह रंगहीन गंधहीन और हवा से हलकी गैस है। जो पृथ्वी की सतह से 2500-5000 मीटर नीचे तलछटी चट्टानों में फंसी रहती है।
शेल गैस पर अध्ययन
USA की आधिकारिक Energy Statistics(ऊर्जा सांख्यिकी) संस्था Energy Information Administration – EIA ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि दुनिया में 46 देशों में से 214.6 trillion cubic meters शेल गैस के भंडार मौजूद हैं। जिसमें अधिकांशतः अल्जीरिया, चीन, पोलैंड, फ़्रांस, अर्जेंटीना, कनाडा, और अमेरिका में हैं।
London School of Economics के द्वारा एक रिपोर्ट में कहा गया कि 2040 तक दुनिया की 30% प्राकृतिक गैस हिस्सेदारी की पूर्ति शेल गैस के द्वारा की जा सकती है।
शेल गैस और पारंपरिक गैस में भिन्नता
पारंपरिक गैस भंडार(Reserviors) गैस स्रोत से मुक्त होने के बाद पृथ्वी के अंदर मुक्त स्थानों में फंस जाती है जबकि शेल गैस अपने स्रोत में ही फंसी हुई रहती है और यह धरती के तल की तरफ विस्थापन नहीं करती। जिस वजह से शेल गैस को प्राप्त करने के लिए खुदाई का खर्च बढ़ जाता है।
जमीन से शेल गैस को प्राप्त करने में खुदाई(drilling) के समय पानी की आवश्यकता पड़ती है। जिस वजह से कई क्षेत्रों में जल सम्बन्धी चिंताएं सामने आती हैं।
भारत में शेल गैस (what is Shale Gas)
भारत में शेल गैस भंडार 7 राज्यों के भीतर स्थित है जहाँ लगभग 50 आवंटित ब्लॉक को चिन्हित किया जा चूका है। असम, गुजरात, राजस्थान में शेल गैस बड़ी मात्रा में है। भारत के बेसिन के क्षेत्र भी शेल गैस के भण्डारण से परिपूर्ण हैं। जिनमें काम्बे बेसिन, कृष्णा गोदावरी बेसिन, कावेरी बेसिन और दामोदर बेसिन है इसके अलावा भी कई बेसिन हैं जहाँ शेल गैस पर्याप्त मात्रा में मौजूद है।
भारत में शेल गैस को प्राप्त करने में भौगोलिक विविधता अधिक हैं। माउंटेन की स्थिति भी अलग अलग स्थानों पर भिन्न है। जिस वजह से इसे प्राप्त करना कठिन है। भारत में ONGC के द्वारा पश्चिम बंगाल में 50 ब्लॉकों को कई जगहों पर तैयार किया गया है जहाँ से उन्हें सफलता भी प्राप्त हुई है। सरकार के द्वारा कृष्णा गोदावरी बेसिन में भी शेल गैस के ब्लॉक तैयार किये जा रहे हैं।
भारत में शेल गैस का दोहन करना अभी शुरुआती स्तर पर है और अभी भारत शेल गैस को निकलने के लिए डाटा स्तर पर विश्लेषण कर रहा है।
शेल गैस में चुनौती एवं फ्रैकिंग (what is Shale Gas)
भारत प्राकृतिक गैस निर्यात को कम करने के लिए शेल गैस में विकल्प तलाश रहा है। जिससे कई प्रकार की चुनौतियां सामने आती हैं। जिसमें ऊर्जा और पानी का मेल जोल शामिल है। जिसमें शेल तरल (shale fluid) को भूमिगत जल से मिलाकर प्रदुषण की समस्या सामने आती है एवं भारत जैसे देश में जल अपशिष्ट उपचार(water waste treatment) में तकनीकी कमी के कारण जल प्रदुषण की समस्या का निदान और भी कठिन हो जाता है।
शेल गैस में सबसे बड़ी चुनौती इसका गैर परंपरागत होना है। जिन चट्टानों में शेल गैस पायी जाती है। उन्हें बाहरी दाब के साथ तोड़ना होता है। इस प्रक्रिया में कई कुंआ(well) बनाने पड़ते हैं। यह क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर दोनों हो सकते हैं। चट्टानों को तोड़ने के लिए इन कुओं में दवाब के साथ केमिकल युक्त जल को छोड़ा जाता है। इस प्रक्रिया को फ्रैकिंग(Fracking) कहते हैं। इस फ्रैकिंग प्रक्रिया में 5-9 मिलियन गैलन साफ पानी की आवश्यकता होती है। शेल गैस में परंपरागत गैस की अपेक्षा 10 गुना अधिक पानी का दोहन होता है।
सरकार का प्रयास (what is Shale Gas)
शेल गैस को प्राप्त करने के लिए सरकार को इससे जुड़ी पालिसी तैयार करनी होगी। यह बात ध्यान देने योग्य है कि hydrocarbons केंद्रीय सूची का हिस्सा है जबकि पानी राज्य सूची का विषय है। केंद्र सरकार तेल और गैस ब्लॉक कारपोरेशन को प्रतिस्पर्धी बोली के माध्यम से आवंटित करती है। जिसमें प्राइवेट और पब्लिक प्लेयर दोनों समान हक़ रखते हैं।
2018 में केंद्र सरकार ने Hydocarbon Exploration and Licensing Policy(HELP) को मंजूरी दी। जिसमें यह मंजूरी दी गयी कि प्रोजेक्ट में सम्मिलित कारपोरेशन सभी प्रकार के हाइड्रोकार्बन निकाल सकती थी।
फ्रैकिंग की प्रक्रिया एकदम अलग है। इसलिए पैट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की तरफ से शेल गैस के लिए एक ड्राफ्ट तैयार किया गया। जिसमें शेल गैस का ग्लोबल बाजार में क्या महत्व है? और भारत में इसकी भूमिका को बताया गया। इसके साथ ही शेल गैस के कारण पैदा होने वाली चुनौतियों को भी बताया गया।
भारत शेल गैस के मामले में बाकि दुनिया से बहुत पीछे चल रहा है। हालाँकि सरकार ने अब प्राइवेट और पब्लिक प्लेयर्स को मंजूरी दी है ताकि इस क्षेत्र को समझा जा सके और ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जा सके। किन्तु इसके साथ ही जल प्रदुषण की समस्या भी पैदा होती हैं। जिसके लिए उपाय करने होंगे।(what is Shale Gas)