इस आर्टिकल में G7 समिट क्या है(what is G7 summit)? इस विषय पर चर्चा की गयी है।
2021 का G7 शिखर सम्मलेन UK के Carbis Bay में आयोजित किया जायेगा। इस सम्मेलन में दुनिया की महाशक्तियां के द्वारा शिरकत की जाती है। इस सम्मलेन में खास बात यह है कि इस बार के सम्मलेन में भारत को मुख्य रूप से आमंत्रित किया गया हालाँकि भारत G7 का सदस्य नहीं है।,
भारत के अलावा इस बार के शिखर सम्मलेन में ऑस्ट्रेलिया, साउथ कोरिया और साउथ अफ्रीका को आमंत्रित किया गया है।
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G7 समिट क्या है(what is G7 summit)?
यह दुनिया के विकसित अर्थव्यवस्थाओं का समूह है। यह एक अंतरसरकारी संगठन है जिसका गठन 1975 में उस समय की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं द्वारा, दुनिया के अहम् मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एक अनौपचारिक मंच के रूप में किया गया था।
पहला शिखर सम्मलेन 1975 में हुआ है तब इसमें केवल 6 सदस्य थे इसलिए तब इसे G7 कहा गया। किन्तु 1976 में इसमें कनाडा के शामिल होने के बाद इसे G7 कहा गया। 1977 से इसमें यूरोपियन संघ ने हिस्सा लेना शुरू किया।
1997 में रूस इसका सदस्य बना जिसके बाद यह G8 कहलाया लेकिन रूस के द्वारा यूक्रेन के क्रीमिया क्षेत्र पर कब्ज़ा किये जाने के कारण 2014 में रूस को इस समूह से बहार हो गया। अतः फिर से यह G7 हो गया।
अभी ग्रुप ऑफ़ 7(G7) देशों में फ़्रांस, इटली, जर्मनी, ब्रिटेन, कनाडा, जापान, और अमेरिका शामिल हैं। यह खुद को मूल्यों का आदर करने वाला समुदाय कहता है, मानवाधिकारों की सुरक्षा, लोकतंत्र, कानून का शासन, आर्थिक समृद्धि और सतत विकास G7 के मुख्य सिद्धांत हैं। दुनिया की दिशा निर्धारित करने में इसकी मुख्य भूमिका मानी जाती है। G7 देशों में विश्व की कुल आबादी का 10 वां हिस्सा और वैश्विक GDP में 46% की भागीदारी है।
G7 शिखर सम्मलेन और उसके कार्य
G7 देशों के नेताओं की 2 दिवसीय शिखर बैठक हर साल आयोजित होती है। इसमें सामाजिक और आर्थिक दोनों मुद्दों पर चर्चा होती है। इसके सभी देश चक्रीय आधार पर बारी बारी से समूह की अध्यक्षता करते हैं और सालाना शिखर सम्मलेन की मेजबानी करते हैं। मेजबान देश को आमतौर पर शिखर सम्मलेन में हिस्सा लेने वाले G7 के बाहर के गणमान्य लोगों को आमंत्रित करने का मौका मिलता है। इसी प्रकार सम्मलेन में अन्य देशों और अंतराष्ट्रीय संगठओं के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया जाता है।
शिखर सम्मलेन के लिए जमीनी स्तर पर जिन मामलों पर चर्चा और बैठकें की जाती हैं उनमें शेरपा की भागीदारी होती है। ये आमतौर पर व्यक्तिगत प्रतिनिधि या राजनायिक स्टाफ के सदस्य(राजदूत) होते हैं।
G7 का कोई निर्धारित मुख्यालय नहीं हैं और न ही कोई औपचारिक संविधान है। इसके साथ वार्षिक शिखर सम्मलेन के दौरान लिए गए निर्णय गैर बाध्यकारी होते है। सदस्य राष्ट्र उन्हें मैंने के लिए बाध्य नहीं हैं।
हालाँकि समूह को शुरुआत में अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा आर्थिक मुद्दों, ग्लोबल तेल संकट, वैश्विक वित्तीय संकट आदि पर चर्चा करने के प्रयास के रूप में बनाया गया था। जो 1970 के दशक के अंत में बेहद चर्चित थे। तब से G7 ने विश्व को प्रभावित करने वाले मुद्दों, वित्तीय संकटों अन्य मुद्दों पर चर्चा की है, और इन विशिष्ट चुनौतियों से निपटने का लक्ष्य रखा है।
इनमें से पूर्व सोवियत ब्लॉक राष्ट्रों के आर्थिक बदलाव, आतंकवाद, मादक पदार्थों की तस्करी, हथियारों पर नियंत्रण जैसे कई मुद्दे बेहद अहम् रहे हैं। जबकि पिछले शिखर सम्मलेन नवीकरणीय ऊर्जा निति, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण प्रदुषण, HIV AIDS और वैश्विक सुरक्षा जैसे मुद्दे बेहद चर्चित रहे हैं। किन्तु ऐसा कहा जाता है कि भारत, ब्राजील, चीन के उभरने से G7 की प्रासंगिता प्रभावित हुई है। क्यों कि इन देशों की वैश्विक GDP में हिस्सेदारी लगभग 40% की है।
दुनिया में आर्थिक मोर्चों पर G7 देशों की बादशाहत है। विकाशसील देशों को अधिकांश आर्थिक सहायता इन देशों से ही प्राप्त होती है।
भारत को G7 से न्योता
भारत को आमंत्रण से वैश्विक पटल पर भारत की बढ़ती धाक प्रदर्शित होती है। और यह बात भी पूर्ण रूप से सच है कि भारत विश्व के लिए बहुत बड़ा बाजार है। कोरोना के चलते इस बार के सम्मलेन से पहले विदेशी मीडिया द्वारा भारत सरकार के खिलाफ बहुत कुछ लिखा गया है। किन्तु इसके चलते भारत के G7 आमंत्रण पर कोई असर नहीं हुआ है।
2021 G7 के महत्वपूर्ण निर्णय
- G7 के सदस्य देशों द्वारा वैक्सीन पासपोर्ट को लाने की बात की गयी जिसके तहत किसी भी देश के नागरिक को दूसरे देश में तभी आने दिया जायेगा अगर उस व्यक्ति के द्वारा वैक्सीन लगवाई जा चुकी हो। किन्तु भारत ने इस वैक्सीन पासपोर्ट का पूर्णतः विरोध किया। विरोध का कारण यह था कि भारत एक बड़ी आबादी वाला देश है जिसे पूरी तरह वैक्सीन युक्त करने में समय लगेगा। और यह भारत की बात नहीं है, दुनिया में ऐसे भी देश हैं जहाँ वैक्सीन लगाने का कार्य अभी शुरू भी नहीं हुआ है।
- G7 सदस्य देशों के द्वारा Tax रिफार्म को लेकर बात की गयी। और पुरे विश्व में Common Global Tax(15% टैक्स की दर) को अपनाने के लिए सहमति बनी। इस टैक्स रिफार्म के विषय में G7 के सदस्य देशों की सहमति के अलावा विश्व के अन्य देशों के द्वारा सहमति मिलना आवश्यक है। आज के समय में हर देश की टैक्स दरें भिन्न हैं। कंपनियों द्वारा टैक्स में फायदा उठाने के लिए कंपनी का Headoffice उस जगह खोला जाता है जहाँ टैक्स की दरें कम रहती हैं। ऐसा करने से उस देश को फ़ायद नहीं पहुँचता जहाँ की वह कंपनी है।
G7 के सामने चुनौतियां
G7 की अक्सर आलोचना होती है कि यह एक प्रभावी संगठन नहीं रहा है। इसके सदस्य देशों के बीच आपसी असहमतियां हैं। अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिणी गोलार्द्ध का कोई भी देश G7 समूह का हिस्सा नहीं है। दुनिया के एक बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व G7 के द्वारा नहीं किया जाता। चीन और भारत जैसे देश इसके सदस्य नहीं हैं। जिसका एक कारण इन देशों की आबादी और यहाँ के लोगों की प्रति व्यक्ति आय में कमी है। इन कारणों से इन देशों को विकसित अर्थव्यवस्था नहीं माना जाता। इसलिए इन्हे G7 के योग्य नहीं माना जाता, साथ ही मानव विकास सूचकांक में इनकी स्थिति बहुत निचे है।
G7 समिट क्या है(what is G7 summit)? इस विषय पर पर्याप्त जानकारी दी गयी है। इस साल 11 जून को यह सम्मलेन आयोजित किया जायेगा। अगर आप हमारी जानकारी से संतुष्ट हैं तो कमेंट में अपने सुझाव और सवाल कर सकते हैं।