कंप्यूटर क्या है? (What is Computer ) इसके प्रकार एवं पार्ट्स से जुड़ी जानकारी।

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कंप्यूटर क्या है? (What is Computer)

कंप्यूटर एक ऐसी मशीन है जो गणितीय एवं गैर संख्या युक्त दोनों प्रकार की सूचनाओं का विश्लेषण करता है।

यह विभिन्न प्रकार के आंकड़ों को इकठ्ठा कर सकता है, उन आंकड़ों को निर्देशित कर सकता है एवं साथ ही आकड़ों को पुनः प्राप्त कर सकता है।

चार्ल्स बेवेज को कंप्यूटर का जनक माना जाता है। Mark-1, 1937 में निर्मित विश्व का पहला कंप्यूटर माना जाता है। सिद्धार्थ भारत का पहला कंप्यूटर है।

कंप्यूटर के भाग(Parts Of Computer)

  • हार्डवेयर(hardware)
  • सॉफ्टवेयर(software)

हार्डवेयर(hardware)

कंप्यूटर हार्डवेयर को तीन मुख्य भागों में बांटा गया है।

  • Input Device (आगम युक्ति)
  • Output Device (निर्गम युक्ति)
  • Central Processing Unit (C.P.U.)

Input Device प्रश्न या निर्देश प्राप्त करती हैं, CPU उस प्रश्न को हल करता है एवं Output Device परिणाम को प्रस्तुत करती है, Storage Device or memory निर्देशों एवं परिणामों को सुरक्षित रखती है। memory को हमेशा आउटपुट डिवाइस का हिस्सा माना जाता है किन्तु यह हमेशा इनपुट डिवाइस की तरह कार्य करती है। कंप्यूटर के सभी पार्ट एक कैबिनेट में आपस में जुड़े रहते हैं। व्यवहारिक भाषा में कैबिनेट को ही CPU कहा जाता है। इसी कैबिनेट के भीतर मदरबोर्ड, हार्ड डिस्क, CD/DVD रीडर-राइटर, इनपुट/आउटपुट पोर्ट, पावर सप्लाई यूनिट आदि को शामिल किया जाता है।

मदर बोर्ड (Motherboard)

यह कंप्यूटर का मुख्य प्रिंटेड सर्किट बोर्ड (PCB) है जिस पर कंप्यूटर का मुख्य परिपथ रहता है। मदर बोर्ड पर ही कंप्यूटर के कार्य संचालन से जुड़ी हुई चिप लगी होती हैं। CPU , RAM तथा ROM इसी के प्रमुख अवयव है। इसके अलावा साउंड कार्ड, ग्राफ़िक कार्ड, नेटवर्क कार्ड आदि के लिए भी खांचे बने रहते हैं।

चिप(Chip)

यह ऐसी संरचना है जिस पर Integrated Circuit का निर्माण किया जाता है। एवं प्रयास किया जाता है कि चिप का आकार कम हो तथा परिपथ की संरचना जटिल हो। वर्तमान समय में चिप के लिए सिलिकॉन का प्रयोग किया जाता है। इसके प्रयोग से कंप्यूटर के विकास में तेज़ी आयी है।

अब प्रयास यह किया जा रहा है कि प्रोटीन से बनने वाली बायोचिप का विकास किया जाये। इन चिपों के प्रयोग से न केवल परिपथ(circuit) की मात्रा बड़ाई जा सकेगी, संभावना तो यहाँ तक है कि मानव तंत्रिका तंत्र के संकेत सीधे कंप्यूटर के द्वारा प्राप्त किये जा सकेंगे।

CPU- Central Processing Unit

इसके निम्नलिखित महत्वपूर्ण भाग हैं-

  1. माइक्रोप्रोसेसर(Microprocessor)
  2. स्मृति(memory)

माइक्रोप्रोसेसर(Microprocessor)

यह कंप्यूटर की सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट का भाग होता है। जो मूल रूप से सभी विश्लेषणात्मक कार्यों के लिए प्रमुख भूमिका निभाता है। छोटे कंप्यूटर में एक ही माइक्रोप्रोसेसर का प्रयोग किया जाता है, किन्तु विकसित कम्प्यूटरों में कई माइक्रोप्रोसेसर एक साथ काम करते हैं। किसी भी प्रोसेसर में मूलतः दो इकाइयाँ होती हैं।

  1. ALU(Arithmetic Logical Unit) – इसका कार्य सभी तार्किक और गणितीय प्रक्रियाओं को पूरा करना है।
  2. Control Unit – यह माइक्रोप्रोसेसर की सभी इकाइयों के बीच व्यवस्था बनाये रखती है। इसे MCU भी कहा जाता है। माइक्रोप्रोसेसर का प्रयोग न केवल कंप्यूटर बल्कि अन्य प्रकार की अधिकांश डिजिटल मशीनों में किया जाता है।

स्मृति(memory)

CPU का दूसरा महत्वपूर्ण अंग मेमोरी है। यह वही कार्य करती है जो मस्तिष्क का होता है। यह दो प्रकार से कार्य करती है।

  1. नयी सूचनाओं को एकत्रित करना
  2. किसी भी विश्लेषण की प्रक्रिया में उन सूचनाओं को प्रस्तुत करना, जिसकी जरुरत पड़ती है।

Memory

कंप्यूटर में Memory मुख्य रूप से दो तरह की होती है।

प्राथमिक मेमोरी

यह मेमोरी CPU से सीधे जुड़ी होती है। इसमें कंप्यूटर की कार्य प्रणाली से जुड़ी आधारभूत सूचनाएं व कंप्यूटर द्वारा उपयोग में लाये जाने वाली जरुरी सूचनाएँ एकत्र की जाती है। प्राथमिक मेमोरी की गति द्वितीयक मेमोरी से अधिक होती है। यह मुख्यतः तीन प्रकार की होती है।

  1. कैश मेमोरी या प्रोसेसर कैश: यह मेमोरी सीधे प्रोसेसर से जुड़ी होती है। एवं प्रोसेसर के द्वारा बार बार उपयोग में लाये जाने वाली सूचनाओं को इकठ्ठा करती है। यह RAM और  ROM दोनों से तीव्र होती है।
  2. रोम(ROM- Read Only Memory): यह स्थायी मेमोरी है। जिसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता। इस मेमोरी का प्रयोग कंप्यूटर को प्रारम्भ करने संबंधी निर्देशों(Booting Instruction) को सुरक्षित रखने में किया जाता है। इसकी गति प्रायः RAM से कुछ कम होती है।
  3. रैम (RAM- Random Access Memory): इस मेमोरी के द्वारा सूचनाओं को लगातार न पढ़कर, अपने अनुसार चुनाव करके पड़ा जा सकता है। इसे परिवर्तित करना संभव है। RAM को दो भागों Dynamic RAM और Static RAM में बांटा जाता है। इसका मुख्य भाग डायनमिक RAM है जिसकी सूचनाएँ कंप्यूटर बंद करने पर मिट जाती हैं। स्टैटिक RAM में सूचनाएँ कंप्यूटर बंद करने पर भी बची रहती हैं।

द्वितीयक मेमोरी

प्राथमिक मेमोरी की गति तीव्र होती है परन्तु इसकी संग्रहण क्षमता सीमित है। कंप्यूटर की डाटा स्टोर करने की क्षमता बढ़ाने के लिए द्वितीयक मेमोरी का प्रयोग किया जाता है। इसे स्थायी मेमोरी (permanent memory) भी कहते हैं। जैसे-

  1. चुम्बकीय डिस्क- फ्लॉपी डिस्क, हार्ड डिस्क.
  2. ऑप्टिकल डिस्क- CD-ROM, CD-R, DVD , ब्लू रे डिस्क आदि.
  3. इलेक्ट्रॉनिक स्टोरेज डिवाइस- फ़्लैश मेमोरी(पेन ड्राइव), मेमोरी कार्ड(चिप).

फ्लॉपी डिस्क(FD- Floppy Disc)

फ्लॉपी डिस्क डिजिटल सूचनाओं को एकत्र करने वाली पतली मैग्नेटिक(magnetic) डिस्क होती है, जिसका प्रयोग कंप्यूटर को विभिन्न सूचनाएं देने के लिए तथा विभिन्न सूचनाओं को संगृहीत करने के लिए किया जाता है।

CD (Compact Disc)

यह भी डिजिटल रूप से सूचनाओं को एकत्र करने वाली एक डिजिटल डिस्क है। आम तौर पर कंप्यूटर के लिए जिस CD का प्रयोग किया जाता है उसमें परिवर्तन करना संभव नहीं होता, जबकि फ्लॉपी डिस्क में परिवर्तन किया जा सकता है। इसकी क्षमता लगभग 700 मेगाबाइट होती है। यह एक मेटालिक डिस्क है जिसमें लेज़र किरणों के द्वारा सूचनाओं को इकठ्ठा किया जाता है। अब बाजार में ऐसी CD भी उपलब्ध हैं जिनमें फिर से डाटा स्टोर किया जा सकता है एवं परिवर्तन भी किया जा सकता है।

DVD(Digital Versatile Disc)

यह CD का ही एक विकसित रूप है, जिसमें सूचनाओं का भंडारण एक तरफ या दोनों तरफ भी किया जा सकता है। एक सिंगल साइडेड DVD की क्षमता 4.7 GB होती है। एवं डबल साइडेड डबल लेयर DVD में यह क्षमता 17 जब तक हो सकती है।

Blu-Ray Disc

यह ऑप्टिकल डिस्क का नवीनतम प्रारूप है। यह प्रति लेयर 25 GB डाटा संगृहीत कर सकती है। इस प्रारूप में एक ही डिस्क पर 100 GB से भी अधिक डाटा(मल्टी लेयर डिस्क की स्थिति में) इकठ्ठा किया जा सकता है। ब्लू रे डिस्क में 409nm तरंग दैर्ध्य(wavelength) की नीली लेज़र का प्रयोग किया जाता है। जिसके कारण भण्डारण क्षमता अत्यधिक बढ़ जाती है। जबकि DVD में 650nm तरंग दैर्ध्य(wavelength) की लाल लेज़र और CD में 780nm तरंग दैर्ध्य(wavelength) की अवरक्त लेज़र का प्रयोग किया जाता है।

Bits & Bytes

बिट, डिजिटल सूचना संग्रहण की सबसे छोटी इकाई है। 8 बिट्स से मिलकर एक बाइट बनता है।

1 Kilo Bytes = 1024 bytes
1 Mega Bytes = 1024 KB
1 Gega Bytes = 1024 MB
1 Terra Bytes = 1024 GB

सॉफ्टवेयर(Software)

सॉफ्टवेयर कंप्यूटर का वह प्रोग्राम होता है. जिसके द्वारा कंप्यूटर के संचालन को संभव बनाया जाता है। यह कंप्यूटर की भाषा में तैयार किये जाते हैं। जिस पर सभी तरह की सूचनाएं दी जाती हैं। इसके बाद हार्ड वेयर उसे प्रोसेस करता है। ये तीन प्रकार के होते हैं।

  1. System Software
  2. Application Software
  3. Custom Software

System Software

यह सॉफ्टवेयर कंप्यूटर का संचालन करता है। इसे बेसिक ऑपरेटिंग सिस्टम भी कहते हैं। उदहारण के लिए विंडो, डॉस, लाइनेक्स ।

ऑपरेटिंग सिस्टम(Operating System)

कंप्यूटर हार्डवेयर को समायोजित करने वाला सॉफ्टवेयर समूह ऑपरेटिंग सिस्टम कहलाता है। यह ऐसा सॉफ्टवेयर प्रोग्राम होता है जिसके जरिये कंप्यूटर हार्डवेयर संपर्क साधने की  क्षमता विकसित करता है। ऑपरेटिंग सिस्टम के बिना एक कंप्यूटर और सॉफ्टवेयर प्रोग्राम की उपयोगिता शून्य के समान है। ऑपरेटिंग सिस्टम कंप्यूटर सिस्टम के हार्डवेयर रिसोर्स जैसे मेमोरी, प्रोसेसर तथा इनपुट-आउटपुट डिवाइस आदि को व्यवस्थित करता है। यह आंकड़ों एवं निर्देशों को नियंत्रित करता है। यह कंप्यूटर के प्रत्येक रिसोर्स की स्थिति का लेखा जोखा रखता है।

कंप्यूटर की सार्थकता हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर की उपस्थिति में ही मानी जाती है। इसके बिना कंप्यूटर का कोई अस्तित्व नहीं। ऑपरेटिंग सिस्टम हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के बीच संपर्क का कार्य करता है। यह समस्त हार्डवेयर के बीच संपर्क स्थापित करता है।

कंप्यूटर ऑपरेटिंग सिस्टम के उदहारण-

  1. माइक्रोसॉफ्ट विंडोज़ xp , 7 – माइक्रोसॉफ्ट के द्वारा लाया गया, इसके बाद कई नए संस्करण लाये गए अभी विंडोज़ 10 प्रचलन में है।
  2. एप्पल मैक/मैक OSX- एप्पल का एकमात्र कंप्यूटर ऑपरेटिंग सिस्टम।
  3. Ubuntu Linex- Linux का एक प्रचलित प्रकार।
  4. IOS- एप्पल iphone में प्रयोग किया जाने वाला ऑपरेटिंग सिस्टम।
  5. Google Android- एंड्राइड फ़ोन में उपयोग में लाये जाने वाला ऑपरेटिंग सिस्टम।

मोबाइल फ़ोन में ऑपरेटिंग सिस्टम का अर्थ है इसके जरिये स्मार्ट फ़ोन, टैबलेट अन्य डिजिटल मोबाइल फ़ोन का संचालन करना।

Application Software

ऐसा सॉफ्टवेयर, जिसका प्रयोग किसी बड़े किन्तु विशेष कार्य के लिए किया जाता है। आमतौर पर ये ऐसे प्रोग्राम हैं जो कई अलग अलग स्थानों पर एक ही तरह का कार्य करने के लिए प्रयुक्त होते हैं। जैसे माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस के विभिन्न सॉफ्टवेयर- MS Word , MS Point , Power Point आदि।

Custom Software

किसी विशेष समस्या को सुलझाने के लिए जिस सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया जाता है, उसे custom software कहते हैं। जैसे किसी कार्यालय में काम करने वाले व्यक्तियों के कार्य तथा वेतन से सम्बंधित परिगणना।

ये सभी सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग भाषाओँ में लिखे जाते हैं। प्रोग्रामिंग भाषाओँ में लिखे गए सॉफ्टवेयर के प्रोग्राम को कम्पाइलर मशीनी भाषा में परिवर्तित करता है।

प्रोग्रामिंग लैंग्वेज(Programming Language)

प्रोग्रामिंग लैंग्वेज ऐसी कृत्रिम भाषा है जिसका प्रयोग सॉफ्टवेयर प्रोग्राम का सोर्स कोड लिखने में किया जाता है। इसे दो वर्गों में विभाजित किया जाता है।

  1. हार्ड लेवल लैंग्वेज
  2. लो लेवल लैंग्वेज

इन दोनों में से हार्ड लेवल लैंग्वेज का प्रयोग सहजता से किया जा सकता है। आधुनिक सॉफ्टवेयर हार्ड लेवल लैंग्वेज में तैयार किये गए हैं । इन लैंग्वेज को दो प्रकार से विभाजित किया जा सकता है।

  1. Process Oriented Programming Language
  2.  Object Oriented Programming Language

प्रोसेस ओरिएंटेड लैंग्वेज में निर्देश क्रम अनुसार दिए जाते हैं। इस दौरान प्रक्रिया का महत्व होता है। यह एक महत्वपूर्ण कार्य है। क्यों कि इसके क्रम में अन्य प्रक्रियाएँ भी शामिल होती हैं। इन प्रक्रियाओं को फिर से रिडिजाइन भी किया जा सकता है। बेसिक प्रोग्रामिंग लैंग्वेज और C लैंग्वेज इसके प्रमुख उदाहरण हैं। जबकि ऑब्जेक्ट ओरिएंटेड प्रोग्रामिंग लैंग्वेज में आंकड़ों(DATA) पर विशेष बल दिया जाता है। इस लैंग्वेज में सभी प्रकार के कोड फिर से लिखकर उपयोग में लाये जा सकते हैं। आंकड़ों को बदलने की स्थिति में भी शेष कोड पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। जावा(Java) और C++ ऑब्जेक्ट ओरिएंटेड लैंग्वेज के उदाहरण हैं।

Fourth Generation Language

यह लैंग्वेज इसलिए डिज़ाइन की जा रही है कि प्रोग्रामिंग की सीमित जानकारी रखने वाला व्यक्ति भी इन लैंग्वेज का उपयोग कर सके। अब जावा जैसी हाई लेवल लैंग्वेज में भी यह व्यवस्था अपनायी जा सकती है।

चतुर्थ पीढ़ी लैंग्वेज मानवीय भाषा के निकटस्थ होती है और बिना किसी औपचारिक प्रशिक्षण के इसे किसी भी व्यक्ति द्वारा सीखा जा सकता है। इसके द्वारा multiple common operation पूरे किये जा सकते हैं। फोर्थ जनरेशन लैंग्वेज किसी भी अन्य लैंग्वेज से अधिक सुलभ है।

फोर्थ जनरेशन लैंग्वेज के चार प्रकार है।

  1. Table Driven Algorithm Programming
  2. Report Generator Programming Language
  3. Data Management
  4. Fourth Generation Environment

चतुर्थ पीढ़ी की लैंग्वेज में CASE- Computer Aided Software Engineering  का उपयोग किया जाता है।

Malware

मैलवेयर, मालिसियस सॉफ्टवेयर का नाम है। यह गलत इरादे के साथ तैयार किये गए सॉफ्टवेयर हैं। जिनका इस्तेमाल कंप्यूटर को हानि पहुंचाने के लिए किया जाता है एवं इसी सोच के साथ इन्हे डिज़ाइन किया जाता है। यह ऐसे सॉफ्टवेयर होते हैं जो यूजर की बिना अनुमति के ही इंस्टॉल हो जाते हैं। वायरस , वोर्म , ट्रॉजन हॉर्स आदि सभी को मैलवेयर कहते हैं।

वायरस(Virus)

वायरस एक प्रकार का सक्रिय संक्रमित कंप्यूटर प्रोग्राम है। जो दूसरे कंप्यूटर में घुस कर उसके प्रोग्राम और मेमोरी को नष्ट कर देता है। यह उसी प्रकार से काम करता है जिस प्रकार किसी वायरस से ग्रसित होने पर हम बीमार हो जाते हैं। वह हमारी सेल्स को नष्ट कर देता है। उसी प्रकार से कंप्यूटर वायरस, कंप्यूटर की सूचनाओं को नष्ट या नियंत्रित कर लेता है। जो पूरे में फैलकर अन्य कंप्यूटर को भी हानि पहुंचाता है।

कंप्यूटर वायरस दो प्रकार के होते हैं।

  1. बूट सेक्टर वायरस(BSV)
  2. फाइल वायरस(FV)

BSV किसी कंप्यूटर की मूलभूत कार्यप्रणाली को नष्ट करता है। जबकि FV एक या एक से अधिक विशेष फाइल्स को ही नुकसान पहुंचाता है।

कंप्यूटर वायरस को कंप्यूटर तक पहुंचाने के कई तरीके हैं। इसका एक सामान्य तरीका फ्लॉपी डिस्क या कॉम्पैक्ट डिस्क है। जिसके माध्यम से वायरस को बार बार भेजा जा सकता है।

दूसरा तरीका ईमेल और स्पैमिंग के माध्यम से इसे एक साथ दुनिया भर में भेजा जा सकता है। जब वायरस को ईमेल के माध्यम से भेजते हैं तो उसे ही इंटरनेट वायरस कहा जाता है।

कंप्यूटर वायरस से प्रभावित होने पर कंप्यूटर की कई प्रक्रियाएँ बाधित हो जाती हैं। उसकी संसाधन क्षमता(Processing Speed) धीमी हो जाती है। कभी कभी डिस्प्ले होने में बाधा आने लगती है। फाइल्स नष्ट हो जाती हैं।

फाइल वायरस को रोकने के लिए तीन उपाय किये जाते हैं।

  1. स्कैनर- इस प्रक्रिया में कंप्यूटर के कार्य आरम्भ करने से पहले हार्ड ड्राइव एवं फाइल को जांचा जाता है उसके बाद ही कार्य प्रणाली शुरू होती है।
  2. एंटीवायरस- यह ऐसा प्रोग्राम है जो वायरस को खोजकर नष्ट कर देता है।
  3. वैक्सीन- यह ऐसा संरक्षक प्रोग्राम है, जो कंप्यूटर को संक्रमण से पूर्व ही बचा लेता है। स्मार्ट डॉग और नाशमेम ऐसे ही प्रोग्राम हैं।

वोर्म(Worm)

यह ऐसा दोषपूर्ण सॉफ्टवेयर है जो स्वयं की प्रतिलिपि बनाने की क्षमता रखता है। यह कंप्यूटर नेटवर्क पर खुद को फैला सकता है। वायरस के विपरीत इसे किसी अन्य प्रोग्राम से जुड़ने की जरुरत नहीं  होती, यही कारण इसे वायरस से भिन्न बनाती है। वोर्म का प्रयोग वायरस फ़ैलाने के लिए भी किया जाता है। वोर्म को नुकसान पहुंचाने के लिए ना भी बनाया गया हो, किन्तु यह नेटवर्क ट्रैफिक को बढ़ाकर इंटरनेट की गति को धीमा तो कर ही देता है।

ट्रोजन हॉर्स

ये ऐसे विद्वेषपूर्ण सॉफ्टवेयर हैं। जो सामान्य सॉफ्टवेयर की तरह प्रतीत होते हैं। इसलिए यूजर को इन्हे कंप्यूटर में इंस्टॉल करने से बचना चाहिए। इसका उपयोग जासूसी करने के काम में लिया जाता है।

कंप्यूटर के प्रकार (Types of Computer)

कंप्यूटर को चार आधार पर अलग-अलग किया जाता है।

  1. मूल तकनीक के आधार पर – एनालॉग, डिजिटल, हाइब्रिड, क्वांटम ।
  2. पीढ़ी के आधार पर- पहली पीढ़ी, दूसरी पीढ़ी एवं तीसरी पीढ़ी ।
  3. क्षमता के आधार पर- माइक्रो, मिनी, मेनफ्रेम तथा सुपर कंप्यूटर।
  4. आकर के आधार पर- पॉमटॉप, लैपटॉप, डेस्कटॉप।

मूल तकनीक के आधार पर(On the Basis of Basic Technique)

एनालॉग कंप्यूटर

यह कंप्यूटर के विकास की आरम्भिक अवस्था के कंप्यूटर हैं। इसमें पूरी प्रणाली विद्युत के प्रवाह पर निर्भर करती है। इसमें कंप्यूटर वोल्टेज के परिवर्तन के आधार पर इनपुट संकेतों को ग्रहण करना पड़ता है। इस पद्धति की समस्या यह है कि इसमें विद्युत प्रवाह पर जटिल नियंत्रण रखना पड़ता है। मौसम व्यवधान इसमें समस्या उत्पन करता है।

डिजिटल कंप्यूटर

डिजिटल कंप्यूटर आधुनिक कंप्यूटर की मूल तकनीक का नाम है। इस पद्धति में कंप्यूटर की सारी क्रियाविधि द्विआधारी(Binary) अंको यानी 0,1 पर आधारित होती है। इसके अंतर्गत किसी भी कैरेक्टर को 8 बाइनरी अंको के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।

अंको पर आधारित होने के कारण विद्युत के प्रवाह तथा मौसम आदि के व्यवधान इसके आउटपुट  में कोई समस्या पैदा नहीं करते। वर्त्तमान समय में प्रयुक्त हो रहे पेंटियम आदि कंप्यूटर इसी डिजिटल पद्धति पर कार्य करते हैं। डिजिटल पद्धति में मूलतः 2 अंको के आधार पर सभी सूचनओं को कूटबद्ध किया जाता है।

इस प्रक्रिया से अंको को केवल 2 अंको के आधार पर ही परिवर्तित किया जाता है। इसके बाद इन्ही अंको को 8 बिट्स में परिवर्तित करके एक कैरेक्टर बनाया जाता है।

संकर कंप्यूटर(Hybrid Computer)

इस कंप्यूटर में एक साथ एनालॉग और डिजिटल तकनीक का प्रयोग किया जाता है। अधिकांशतः इन कम्प्यूटरों को अलग अलग कार्य के अनुसार तकनीक के आधार पर विभाजित किया जाता है।

Atomic Computer

एटॉमिक कंप्यूटर में वर्तमान के सामान्य कम्प्यूटरों की अपेक्षा 10000 गुना अधिक कार्य करने की क्षमता होती है। अभी इस प्रकार के कंप्यूटर के विकास के लिए शोध कार्य चल रहा है।

Quantum Computer

क्वांटम कंप्यूटर, कंप्यूटर विकास की एक नयी संकल्पना है। यह ऐसे कंप्यूटर हैं जिनमें क्वांटम भौतिकी के नियम अर्थात परमाणु की संरचना गति, और व्यवहार के आधार पर कार्य करता है। इन कम्प्यूटरों में इनपुट आउटपुट प्रक्रियाओं के स्थान पर bits और bytes के स्थान पर इलेक्ट्रॉन्स की गति को आधार बनाया जाता है। तथा इसकी इकाई qubits है।

इस कंप्यूटर के सफलता पूर्वक प्रयोग किया जा चूका है। अगर क्वांटम कंप्यूटर सफलता पूर्वक व्यवहार में आ जाते हैं तो यह वर्तमान कंप्यूटर की जगह ले लेंगे। और इनकी गति गणनाओं की क्षमता कई गुना तेज़ होगी।

Neuro Computer

न्यूरो कंप्यूटर का संबंध इलेक्ट्रॉनिक्स और जीव विज्ञान से है। इस कंप्यूटर की क्रियाविधि मानव मस्तिष्क की क्रियाविधि पर आधारित है। मानव मस्तिष्क में न्यूरॉन्स की गति  कंप्यूटर में प्रयुक्त अर्द्धचालकों की गति का मात्र 1/300 होती है। किन्तु न्यूरॉन्स में जुड़ने की क्षमता होती है जिस कारण इनकी गति लाखों गुना बढ़ जाती है।

न्यूरो कंप्यूटर में इसी पद्धति के अनुरूप न्यूरॉन्स का प्रयोग किया जाता है। अगर न्यूरो कंप्यूटर का भविष्य में समुचित विकास हो सका तो इनका उपयोग कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लिए किया जायेगा।

क्षमता के आधार पर कंप्यूटर का विकास

माइक्रो कंप्यूटर

इस प्रकार के कंप्यूटर में एक माइक्रोप्रोसेसर का इस्तेमाल किया जाता है। जिनकी क्षमता 32 से 64 बिट के बीच होती है। आमतौर पर प्रयुक्त होने वाले PC इसी प्रकर के  होते हैं।

मिनी कंप्यूटर

इसमें छोटे प्रकार के एकीकृत परिपथ का प्रयोग किया जाता है। इसमें CPU के साथ लगभग लगभग 10 अतिरिक्त टर्मिनल जोड़े जा सकते हैं।

मेनफ्रेम कंप्यूटर

इसमें तीव्र गणना करने की क्षमता होती है एवं इसमें एक बड़ी मेमोरी लगी होती है। इसके साथ ही लगभग 100 टर्मिनल जोड़े जा सकते हैं।

सुपर कंप्यूटर

ये ऐसे कंप्यूटर हैं जिनकी मेमोरी गीगा बाइट में होती हैं। तथा कार्य करने की तीव्रता 10 गीगा फ्लॉप्स से अधिक होती है। फ्लॉप्स का अर्थ Floating point Operations per second .

दुनिया के सबसे तेज़ सुपर कंप्यूटर का आंकलन प्रति 6 महीने में होता है।

पीढ़ी के आधार पर कंप्यूटर का विकास

कंप्यूटर के विकास की पांच पीढ़ियां मानी जाती हैं।

पहली पीढ़ी – इसके विकास का समय 1945-60 तक माना जाता है। इनकी तकनीक इलेक्टॉन ट्यूब एवं वाल्व पर आधारित है।

दूसरी पीढ़ी – इसके विकास का समय 1960-65 तक माना जाता है। ये वे कंप्यूटर हैं जिनमें वाल्व के स्थान पर ट्रांजिस्टर का प्रयोग किया जाता है।

तीसरी पीढ़ी – इसके विकास का समय 1965-70 तक माना जाता है। इन कंप्यूटर में LSI(Large Scale Integration) का प्रयोग किया जाता है। जिसमें सिलिका चिप का प्रयोग होता है।

चौथी पीढ़ी – इसके विकास का समय 1970-85 तक माना जाता है। इसमें LSI के स्थान पर VLSI(Very Large Scale Integration) का प्रयोग होना शुरू हुआ, अर्थात अत्यधिक बड़े स्तर के एकीकृत परिपथ का प्रयोग। इन परिपथ में सिलिकॉन के माइक्रोचिप का इस्तेमाल हुआ। इसमें कंप्यूटर की मेमोरी एक गीगा बाइट तक पहुंच गयी।

पांचवी पीढ़ी – यह 1985 से अभी तक के विकास पर आधारित है। इस पीढ़ी के कंप्यूटर का उद्देश्य कृत्रिम बुद्धिमत्ता के स्तर को प्राप्त करना है। सिलिकॉन चिप से आगे बढ़कर इस समय गैलियम आर्सेनाइड चिप का प्रयोग किया जाने लगा है। इस पीढ़ी  में क्वांटम कंप्यूटर व् न्यूरो कंप्यूटर के विकास की संभावनाएं हैं।

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