भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले 40 साल के सबसे ख़राब दौर से गुजर रही है। इस कारण Unemployment in India भी अर्थव्यवस्था के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन गया है। देश के लिए बेरोजगारी मानव संसाधन की हानि है। Centre for Monitoring Indian Economy Pvt. Ltd. 1976 से थिंक टैंक के रूप में कार्य कर रही है इसके द्वारा दावा किया गया था कि भारत में बेरोजगारी दर 7.2% हो गयी है जो कि पिछले 2.5 वर्ष में सबसे ज्यादा है। साथ ही साथ employment rate भी घटकर 39% हो गया हैं जो कि पहले 41% के करीब था। जो लोग नौकरी पर थे उनकी भी नौकरियाँ गयी हैं। labour market की भी हालत बेहद गंभीर है जो लोग काम करने की इच्छा रखते थे नोटबन्दी के बाद से कम लोग काम पर जा पाए। विश्व का एवरेज लेबर पार्टिसिपेशन रेट 66 फीसदी है जिसमें भारत बहुत पीछे है। CMIE की एक रिपोर्ट पहले जारी की गयी थी जिसमें दावा किया गया था कि 2017-18 में 1 करोड़ 10 लाख लोगों को अपनी नौकरी गवानी पड़ी। 2018 में Azim Premji University के द्वारा एक रिपोर्ट दी गयी जिसमें कहा गया कि भारत का युवा काम नहीं कर रहा लगभग 82% पुरुष और 92% महिलायें 10 हजार रूपये महीने भी नहीं कमा पाते।
Unemployment in India को देखा जाये तो बेरोजगारी की समस्या अभी कोरोना संकट के आ जाने से ही नहीं आ गयी। हाँ ऐसा अवश्य है कि कोरोना संकट के आने से ये समस्या और भी अधिक बड़ी हो गयी।
corona lockdown के बाद Unemployment in india
कोरोना के तात्कालिक उपाय के रूप में देश में lockdown लगाया गया जिसके बाद पूरे देश से गरीब दिहाड़ी मजदूर वर्ग के द्वारा, स्टूडेंट्स के द्वारा, कारखानों में काम करने वाले लोगों के द्वारा घर वापसी की पूरे देश से तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होने लगी। लोगों की जेब में एक रूपया नहीं लेकिन हजारों किलोमीटर पैदल चल कर लोग अपने घर पहुंच रहे थे। इनमें ऐसे बहुत से लोग जिनकी रास्ते में ही तबियत खराब होने से मृत्यु हो गयी। ये कुछ ऐसा था जैसे भारत फिर से अपने इतिहास में चला गया हो। लेकिन सरकार के गैर नीतिगत, बिना दूरदर्शिता के लिए गए निर्णयों ने स्थिति को और भी ख़राब कर दिया। देश के कई अर्थशास्त्रियों ने उस समय भी यह कहा था कि सरकार का यह निर्णय कोरोना माहमारी के बाद अधिक विषम चुनौतियों को पैदा कर देगा और ऐसा ही, हो रहा है।
अभी GDP के नए आंकड़े आये हैं जिसमें GDP को नेगेटिव में 23.9% दिखाया है ऐसा 40 वर्षों में कभी नहीं हुआ कि भारत कि growth rate इतनी कम हुई हो। तब भी नहीं जब दुनिया 2008 में मन्दी से जूझ रही थी उस समय भी इंडिया की growth rate को double digit के करीब बनाये रखा गया। यह इसलिए भी ख़राब संकेत है कि ऐसी स्थिति में किसी भी अर्थव्यवस्था की विकासदर नकारात्मक हो जाती है। इससे उबरने के लिए पहले 0 तक पहुंचना होगा यानि कि घाटे को पाटना होगा फिर उसके ऊपर ग्रोथ को बढ़ाते रहना होगा जो कर पाना अभी तो संभव नहीं दिख रहा। जब GDP के आंकड़े 1,2 नंबर से ही ऊपर नीचे हो जाते हैं तो सरकारें परेशान हो जाती हैं। किन्तु इस बार तो ऐसा लग रहा हैं कि जीडीपी एक गहरे भवर में फस गयी हैं। बाजार में तरलता ख़तम हो गयी है contraction(संकुचन) की स्थिति है जो भारत में आज से पहले नहीं देखी गयी।अभी चिंता इस बात की भी है कि आने वाली तीनों तिमाहियों में भी ग्रोथ रेट नेगेटिव रहने की पूरी संभावना है। जानकारों के अनुसार अगर भारत को 5% कि ग्रोथ रेट चाहिए तो उसके लिए पहले खायी को पाटना होगा अर्थात 0 पर आकर फिर 30% की ग्रोथ रेट से काम करना होगा। जो कि असंभव है। आंकड़ों के स्तर पर ऐसे समझा जा सकता है कि 2019 कि मई जून की तिमाही में भारत का GDP 35.35 लाख करोड़ था और इस बार GDP 26.89 लाख करोड़ है। किसी भी आंकड़े को ऊपर उठाने के लिए सरकार के पसीने निकल जाते है और इस बार हम बेहद नकारात्मक स्थिति में हैं।
NSO(National Statistical office)के GDP के आंकड़े यानि कि वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही अप्रैल 2020 से लेकर जून 2020 तक की पहली तिमाही में – ये आशंका से भी ख़राब रहे हैं, मैनुफैक्चरिंग सेक्टर- नेगेटिव 39.3%, माइनिंग सेक्टर- नेगेटिव 41.3%, भवन निर्माण- नेगेटिव 50%, केवल खेती में विकास दर- 3.4% की रही अगर खेती भी अपने पॉजिटिव आंकड़े नहीं दिखती तो GDP की ग्रोथ रेट नेगेटिव 23.9 से भी और कही ज्यादा खराब होती। इन सभी आधार पर Unemployment in India का अनुमान लगाया जा सकता है। इकॉनमी के जानकारों के अनुसार अगर सभी आंकड़े सही में रखे जाये तो देश का 30% अधिक युवा बेरोजगार होने की स्थति में है।
आम लोगों पर असर कैसे? नेगेटिव ग्रोथ रेट से
पिछली सरकारों ने 25 वर्षों में जितनी मेहनत करके देश की एक बड़ी आबादी को गरीबी से निकालकर मध्यम वर्ग में लाकर खड़ा किया। वह अब फिर से गरीबी रेखा में जाने की स्थिति में है और यह contraction GDP में लम्बे समय तक चलने की उम्मीद है। अगर बाजार में उपभोग की स्थिति न हो तो मांग भी नहीं होगी, उपभोग के लिए लोगों के पास पैसा होना चाहिए। पैसे के लिए जॉब होनी चाहिए, और अभी दोनों ही नहीं है।
लोगों को आने वाली ख़राब स्थिति के लिए पहले से तैयार रहना चाहिए क्यों कि यह बात एकदम सही है कि आने वाला समय और भी कठिन होने वाला है। भारत 130 करोड़ की आबादी वाला देश है और यहाँ की अधिकतम जनसँख्या युवा है। जिस समय हमें अपने देश की युवा शक्ति का दोहन करना चाहिए तब हम अपने देश की अर्थव्यवस्था को संकट से उबरने में लगे हुए हैं। इसका मतलब यह होगा कि हम अपने स्वर्णिम समय को खो देगें, यह बात भी तय है कि भारत अपने विकास में कई सालों पीछे जाने की स्थिति में आ गया है।
आये दिन चीन से सीमा विवाद के मामले सामने आते ही रहते हैं अगर चीन के द्वारा आगे भी ऐसे ही विवाद बनाये रहे या कहीं युद्ध जैसी स्थिति बनती है तो यह पूरे देश के लिए और भी ख़राब स्थिति होगी। अभी बेहतर तो यही होगा की सरकार अपनी नीतियों पर फिर से विचार करे। सभी पार्टियों के साथ इकनोमिक एडवाइजर को एक साथ लेकर देश को संकट से निकलने का प्रयास करें।