ध्वनि प्रदुषण(sound pollution in hindi) प्रदुषण का ऐसा आयाम है जिसे आम लोगों के द्वारा प्रदुषण के रूप में समझा ही नहीं जाता है। सडकों पर लगी वाहनों की लाइन और पीछे से बज रहे हॉर्न और वाहनों की आवाजें प्रदुषण की आम कहानी को बताते हैं। यह स्थिति यूरोप और किसी विकसित राष्ट्र से एकदम भिन्न है।
हाल ही में सयुंक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम(UNEP) द्वारा नाइज, ब्लेज़ एंड मिसमैच(Noise , Blaze and Mismatch) नामक शी1र्षक से फ्रंटियर्स रिपोर्ट, 2022 जारी की गयी।
यह रिपोर्ट विश्व के कई शहरों में ध्वनि के स्तर के बारे में अध्ययनों को संकलित करती है। इस रिपोर्ट में तीन बातों को ध्यान में रखा गया है।
- शहरों में ध्वनि प्रदूषण
- वनों में आग
- ध्वनि के स्तरों में बदलाव
इस रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश का मुरादाबाद शहर(114 डेसिबल से अधिक) विश्व के दूसरे सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में से है जबकि प्रथम स्थान पर बांग्लादेश का ढाका शहर(119 डेसिबल) है। इस सूची में दक्षिण एशिया के 13 शहर शामिल हैं। जिनमें से पांच शहर भारत के हैं। इन पांच शहरों में दिल्ली, जयपुर, कोलकाता, आसनसोल और मुरादाबाद को शामिल किया गया हैं।
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क्या हैं ध्वनि प्रदुषण(sound pollution in hindi)
जब ध्वनि का स्तर लगातार एक सीमित स्तर से बहुत अधिक या उच्च बना रहे तो यह स्थिति ध्वनि प्रदूषण को संदर्भित करती है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 1972 में असहनीय ध्वनि को प्रदूषण का अंग माना है। 70 dB से अधिक ध्वनि प्रदूषण को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना गया है। मनुष्य के कान 20-20000 हर्ट्ज़ तक की आवाजे सुन सकते हैं। इसे मनुष्य का श्रव्य परास कहते हैं। WHO के 1999 में रिहायसी क्षेत्रों के लिए 55 dB मानक की सिफारिश की थी, जबकि यातायात व व्यावसायिक क्षेत्रों के लिए यह सीमा 70 dB थी। भारत में अलग-अलग क्षेत्रों के लिए ध्वनि प्रदूषण के तर्क संगत स्तरों को निर्धारित किया गया है।
ध्वनि प्रदूषण के कारण
औद्योगीकरण, निम्नस्तरीय नगर नियोजन, सामाजिक कार्यक्रम, परिवहन तथा निर्माण गतिविधियां आदि ध्वनि प्रदूषण के मुख्य कारक हैं।
ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव
- सड़क यातायात, रेलवे या अन्य गतिविधियों से होने वाली ध्वनि मानव स्वास्थ्य और कल्याण को प्रभावित करती है। इसके चलते लोगों में झुंझलाहट और नींद न आने की समस्या बढ़ रही है, जिसके परिणामस्वरुप खतरनाक हृदय रोग और मधुमेय, न सुन पाने की समस्या और ख़राब मानसिक स्वास्थ्य जैसे विकार होते हैं। इनमें विशेष रूप से वे लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं जो सड़कों के पास रहते हैं। इनमें युवा, बुजुर्ग और हाशिये पर रहने वाले लोग शामिल हैं।
- पर्यावरण/वन्यजीवों पर प्रभाव: ध्वनि प्रदूषण जीव-जन्तुओं के लिए भी खतरनाक है। इसके कारण पक्षियों, कीड़ों और उभयचर प्राणियों सहित विभिन्न प्रजातियों के व्यवहार में बदलाव आते हैं। समुद्री जीवों में समुद्री ध्वनि प्रदूषण का सबसे अधिक प्रभाव व्हेल पर पड़ता है।
भारत में ध्वनि प्रदूषण से सम्बंधित कानून
- भारत में ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण के लिए कोई पृथक अधिनियम का प्रावधान नहीं है बल्कि ध्वनि प्रदूषण को वायु प्रदूषण में ही शामिल किया जाता है। वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 में संशोधन करते हुए ध्वनि प्रदूषकों को वायु प्रदूषकों की परिभाषा के अंतर्गत शामिल किया गया। इसका प्रयोग करते हुए ध्वनि प्रदूषण(विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 के तहत ध्वनि प्रदूषण को अलग से नियंत्रित किया जाता है।
- इसके अतिरिक्त पर्यावरण(संरक्षण) नियम, 1986 के तहत मोटर वाहनों, एयर-कंडीशनर, डीज़ल जनरेटर आदि उपकरणों के लिए ध्वनि के कुछ मानक निर्धारित किये गए हैं।
- वायु(प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत उद्योगों से होने वाले शोर को राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लिए राज्य प्रदूषक नियंत्रण बोर्ड/ प्रदूषक नियंत्रक समितियों(SPCB/PCC) द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए सुझाव
रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी योजनाकारों को ध्वनि में कमी को प्राथमिकता देनी चाहिए। ऐसे शहरी बुनियादी ढांचे के विकास को बल देना चाहिए जो सकारात्मक ध्वनियाँ उत्पन्न करता हो। जैसे पेड़-पौधे, हरे भरे स्थान आदि।
राजमार्गों, रेलवे लाइन, सडकों पर ध्वनि अवरोधक लगाए जाने चाहिए। इसके अलावा हमें विकसित राष्ट्रों से सीखना चाहिए कि वह यातायात में ध्वनि प्रदूषण(sound pollution in hindi) को कैसे नियंत्रित करते हैं एवं लोगों को जागरूक होना चाहिए।