Satellite Internet क्या है? क्या यह 5G से तेज़ है?

आज के समय में इंटरनेट व्यक्ति की रोजमर्या की जिंदगी का अभिन्न भाग बन गया है। परन्तु आज भी ऐसे क्षेत्र हैं जहां इंटरनेट की पहुंच नहीं है अगर है भी तो उसकी स्पीड बहुत ख़राब है, आज के 4g-5g के ज़माने में अभी भी ऐसे क्षेत्र 2g की स्पीड पर ही अटके हुए हैं।

देश में इंटरनेट की पहुंच को फाइबर केबल के जरिये बढ़ाने के प्रयास हो रहे हैं ऑप्टिकल फाइबर के द्वारा स्पीड में इजाफा तो होगा किन्तु इसे हर स्थान पर पंहुचापाना एक जटिल कार्य है। इसी जटिलता को दूर करने के लिए satellite internet एक माध्यम बन सकता है। आने वाले समय में एलन मस्क का स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट(Satellite Internet) भी भारत आने की संभावना है। साथ ही भारतीय एयरटेल भी इसी माध्यम से इंटरनेट उपलब्ध कराने के लिए प्रयास कर रही है।

सैटेलाइट इंटरनेट(Satellite Internet) की आवश्यकता क्यों?

कोरोना में लॉकडाउन के दौरान जब कॉलेज, स्कूल बंद कर दिए गए तो इस समय ऑनलाइन क्लासेज शुरू की गयी थी। उस दौरान ऐसी खबरें सामने आ रही थी कि बच्चों को इंटरनेट की पहुंच के लिए ऊँचे स्थानों पर जाना पड़ रहा था जहाँ नेट के सिगनल मिल जाते हों। ऑनलाइन एग्जाम और क्लासेज के लिए बच्चों को बहुत सी परेशानियां उठानी पड़ती थी। अतः इंटरनेट की उपलब्धता के लिहाज से दूरदराज वाली ऐसी जगह जहाँ हाई स्पीड इंटरनेट की उपलब्धता नहीं है। उन स्थानों पर सैटेलाइट इंटरनेट की पहुंच हो सकती है।

space x के मालिक एलन मस्क ने कहा है कि स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट जल्द ही भारत आ सकता है। इसके लिए सरकार से अनुमति लेने की प्रक्रिया चल रही है। स्टारलिंक प्रोग्राम की शुरुआत space x के द्वारा की गयी है जिसमें सैटेलाइट के समूहों द्वारा इंटरनेट कनेक्टिविटी की सुविधा प्रदान की जाती है।

स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट क्या है?

यह एक इंटरनेट प्रोजेक्ट है, जिसका उद्देश्य उन क्षेत्रों में इंटरनेट पहुंचना है जहाँ अभी भी इंटरनेट कनेक्टिविटी की बड़ी समस्या है। सैटेलाइट इंटरनेट(Satellite Internet) में आसानी इस रूप  में है कि इसके लिए बड़े ग्राउंड इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता नहीं होती है। इसके लिए ऑप्टिकल फाइबर की आवश्यकता नहीं होती बल्कि इसमें लेज़र बीम का इस्तेमाल करके डाटा ट्रांसफर किया जाता है।

स्टारलिंक की ऑफिसियल वेबसाइट के अनुसार $99 में इसकी प्री- बुकिंग शुरू हो चुकी है। यह सुविधा आम लोगों के लिए है अतः कीमतों में बदलाव हो सकता है।

यह तकनीक कार्य कैसे करेगी ?

स्टारलिंक सैटेलाइट तकनीक के अंतर्गत कृत्रिम उपग्रहों का उपयोग किया जाता है। इन उपग्रहों के माध्यम से ही इंटरनेट सेवा को लोगों तक पहुंचाया जाता है। इसके लिए लोअर ऑर्बिट सैटेलाइट का इस्तेमाल किया जाता है। लवर ऑर्बिट की वजह से लेटेंसी दर कम हो जाती है। लेटेंसी दर से तात्पर्य उस समय से है जो डाटा को एक पॉइंट से दूसरे पॉइंट तक पहुंचने में लगता है।

लेटेंसी की वजह से इंटरनेट की स्पीड में बढ़ोत्तरी होती है जिससे ऑनलाइन बफरिंग, गेमिंग और वीडियो कालिंग की क्वालिटी बेहतर होती है। स्टारलिंक सेवा को इंस्टॉल करने के लिए यूजर को एक डिश का इस्तेमाल किया जाता है जो मिनी सैटेलाइट से सिगनल प्राप्त करता है। यह घरों में प्रयोग की जाने वाली डिस टीवी सर्विस की तरह ही है।

जून 2021 तक आंकड़ों के अनुसार स्टारलिंक सैटेलाइट की संख्या 1500 से अधिक थी। इसकी वजह से पृथ्वी के चारों ओर कृत्रिम उपग्रहों का जाल बन गया है।

यह पारम्परिक इंटरनेट से अलग कैसे ?

भारत में तेज़ गति की इंटरनेट सेवा के लिए अधिकतर उपभोक्ता फाइबर आधारित इंटरनेट पर निर्भर हैं। जो सैटेलाइट इंटरनेट की तुलना में उच्च गुणवत्ता के साथ हाई स्पीड इंटरनेट सेवा देती है। इस चुनौती में जो स्टारलिंक सेवा को अलग बढ़त प्रदान करती है वह यह है कि इसके लिए किसी तारनुमा कनेक्शन की आवश्यकता नहीं होती है। साथ ही इसे दुनिया में कहीं से भी आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है।

अभी स्टारलिंक की इंटरनेट स्पीड 50 Mbps से 150 Mbps के बीच है। जिसे आगे चलकर 300 Mbps तक पहुंचाया जायेगा।

सैटेलाइट इंटरनेट की 5G से तुलना

स्पीड के मामले में 5G स्टारलिंक से आगे है। क्यों कि इसे टॉप सेलुलर इंफ्रास्ट्रक्चर पर बनाया गया है। स्टारलिंक की तुलना में 5G कई गुना अधिक तेज़ी से डाटा ट्रांसफर करने में सक्षम है। किन्तु गांव देहात, कस्बों, छोटे शहरों या दूर दराज के क्षेत्रों में सैटेलाइट इंटरनेट एक बेहतर विकल्प हो सकता है। क्यों कि इसमें केबल्स के जाल, ओर सेलुलर टावर की आवश्यकता नहीं होती है।

इसके अलावा ऐसे क्षेत्र जहां भूकंप, तूफान, बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं। उन स्थानों के के लिए सैटेलाइट इंटरनेट एक अच्छा विकल्प हो सकता है।

सैटेलाइट इंटरनेट(Satellite Internet) से फायदे

  • इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे कहीं से भी इस्तेमाल किया जा सकता है। और न कोई तार टूटने जैसी आम समस्या।
  • दूरदराज के क्षेत्रों, पहाड़ों, जंगलों में भी इंटरनेट का इस्तेमाल हो सकेगा जहाँ सिगनल न आने की समस्या सबसे अधिक रहती है।
  • किसी भी प्रकार की आपदा में अधिकाशतः इंफ्रास्ट्रक्चर को भारी नुकसान होता है। इंटरनेट, बिजली की लाइन टूट जाती हैं। किन्तु सैटेलाइट इंटरनेट में इस प्रकार की समस्या नहीं होंगी। अगर किसी प्रकार की समस्या आती है तो भी उसे जल्दी से रिकवर किया जा सकता है।

सैटेलाइट इंटरनेट(Satellite Internet) से नुकसान

  • इस इंटरनेट में फ़िलहाल लेटेंसी की समस्या है।
  • यूजर को VPN सपोर्ट नहीं मिलेगा।
  • सैटेलाइट इंटरनेट के लिए आसमान साफ होना चाहिए। भारी बारिश और तेज़ हवा कनेक्शन को बाधित कर सकती हैं जिससे इंटरनेट की स्पीड प्रभावित होती है।

भारत में भारतनेट परियोजना के तहत गांव के स्तर पर इंटरनेट को पहुंचाने का प्रयास हो रहा। नार्थ ईस्ट और दूर दराज के क्षेत्र आज भी बहुत से प्रयास करने के बावजूद इंटरनेट सेवाओं से दूर हैं। ऐसे क्षेत्र जहाँ फाइबर केबल के जरिये इंटरनेट पहुंचना कठिन कार्य है उन जगहों पर सैटेलाइट इंटरनेट(Satellite Internet) उत्तम विकल्प हो सकता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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