संसद क्या है(sansad kya hai)?

संसद क्या है(sansad kya hai)? राजव्यवस्था का यह एक बड़ा विषय है। किन्तु इस आर्टिकल में संसद से जुड़ी जानकारियों  को सरल भाषा में जानने की कोशिश करेगें। जो किसी भी परीक्षा और व्यावहारिक ज्ञान के अनुसार लाभदायक सिद्ध हो।

भारतीय संसद का डिज़ाइन एडविन के लुटियन के द्वारा बनाया गया था। 1921 से 1927 के मध्य इसका निर्माण कार्य चला। 1927 में वायसराय लार्ड इरविन के द्वारा इसका उद्घाटन किया गया एवं स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इसे संसद भवन बना दिया गया।

नए संविधान के तहत प्रथम आम चुनाव वर्ष 1951-52 में आयोजित किए गए थे तथा प्रथम निर्वाचित संसद अप्रैल, 1952 में अस्तित्‍व में आयी।

संसद क्या है(Sansad kya hai)?

संसद भारत देश की विधि निर्माण का सर्वोच्च निकाय है। भारत देश में शासन की संसदीय प्रणाली को अपनाया गया है। भारतीय संसद में राष्ट्रपति के साथ दो सदनात्मक प्रणाली मौजूद है। जिसमें राज्य सभा(राज्यों की परिषद्) एवं लोक सभा (लोगों का सदन) शामिल है। व्यावहारिक रूप में राज्य सभा को उच्च सदन एवं लोक सभा को निम्न सदन के नाम से बुलाया जाता है। किन्तु संविधान में कहीं भी इन दोनों शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया गया।

राष्ट्रपति को संसद के दोनों सदनों में से किसी भी सदन को बुलाने या स्थगित करने अथवा लोकसभा को भंग करने की शक्ति प्राप्त है।

संवैधानिक विकास की प्रक्रिया

  • 1858 के अधिनियम के पश्चात् भारत में कंपनी शासन को समाप्त कर दिया गया और प्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण स्थापित हुआ। इंग्लैंड स्थित बोर्ड ऑफ़ कण्ट्रोल को ख़त्म कर दिया गया एवं उसकी जगह भारत सचिव और उसकी परिषद् का गठन किया गया। ब्रिटिश सरकार ने भारत में अपना सीधा प्रतिनिधि, वायसराय को नियुक्त किया।
  • 1861 के अधिनियम से वायसराय की कार्यकारिणी परिषद् का विस्तार कर दिया गया और यही से केंद्रीय विधान परिषद् का विकास हुआ। इस अधिनियम के तहत वायसराय को संकट के समय अध्यादेश लाने का अधिकार मिला
  • 1892 के अधिनियम से पहली बार निर्वाचन के सिद्धांत को स्वीकार किया गया एवं वायसराय की परिषद् में सदस्यों की संख्या बड़ा दी गयी। अब सदस्य वार्षिक बजट पर बहस कर सकते थे। सार्वजनिक मुद्दों पर प्रश्न पूछ सकते थे किन्तु पूरक प्रश्न पूछने की इजाजत नहीं थी।
  • 1909 के अधिनियम से केंद्रीय एवं प्रांतीय विधानपरिषदों में अप्रत्यक्ष रूप से सदस्यों के निर्वाचन की पद्धति अपनायी गयी। सदस्यों को आर्थिक प्रस्तावों पर बहस करने एवं पूरक प्रश्न पूछने की अनुमति दी गयी साथ ही उन्हें संशोधन प्रस्ताव रखने का अधिकार दिया गया
  • 1919 के अधिनियम से द्विसदनीय केंद्रीय विधायिका का निर्माण किया गया जिसमें एक केंद्रीय विधानसभा और दूसरा सदन राज्य परिषद् था।
  • 1935 के अधिनियम से प्रांतों में द्वैधशासन का अंत कर, केंद्र में द्वैधशासन लागू किया गया। एक संघीय न्यायालय और एक केंद्रीय बैंक का निर्माण किया गया। समस्त विषयों का बटवारा तीन सूचियों में किया गया। केंद्रीय सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची।

संसद के कार्य

मंत्रिमंडल की रचना एवं मंत्री मंडल पर नियंत्रण

संसद का पहला कार्य मंत्रिमंडल की रचना करना एवं उन्हें सदन के प्रति उत्तरदायी ठहराना है। मंत्रिमंडल का उत्तरदायित्व निर्वाचित सदन के प्रति है किन्तु मंत्रिमंडल में अन्य सदन से भी सदस्य हो सकते हैं।

मंत्रिमंडल को सत्ता में तभी तक कायम रखा जा सकता है जब तक उस सदन में मंत्रिमंडल को बहुमत का विश्वास प्राप्त रहता हो।

मंत्रियों की आलोचना/ बहस का मंच

इस कृत्य में संसद के दोनों सदन भाग लेते हैं। मंत्रिमंडल निति निर्धारण का कार्य करता है। संसद का कार्य है कि सदन के सभाकक्ष में उस निति पर चर्चा करे और उसकी आलोचना करे, जिससे मंत्रिमंडल को सही सलाह मिल सके तथा उसे अपनी गलतियों और कमियों का ज्ञान हो सके।

विधि निर्माण

संसद पूरे देश या किसी भाग विशेष के लिए कानून बनाती है। यह कार्य राष्ट्रपति और संसद के दोनों सदनों की शासन प्रणाली के विधान मंडल का होता है। क्यों कि किसी  कानून को मंत्री के निर्देश पर नौकरशाही के द्वारा तैयार किया जाता है। इस विधेयक को प्रस्तुत करने का समय निर्वाचित मंत्रिमंडल द्वारा तय किया जाता है। संसद के अन्य सदस्य भी कोई भी विधेयक प्रस्तुत कर सकते हैं।

सूचना का अंग

संसद सूचना के अधिकार के रूप में प्रेस या किसी प्राइवेट संस्था से अधिक शक्तिशाली है। संसद को अधिकार है कि वह प्रेस और मीडिया की अभिव्यक्ति की आजादी को सदन में सीमित कर सकती है।

वित्तीय कार्य

संसद वार्षिक वित्तीय वक्तव्य के द्वारा यह सुनिश्चित कर सकती है कि सरकार ने किस प्रकार से पैसे का खर्चा किया, कितनी मात्रा में कर को बसूला गया है। इस प्रकार से संसद कराधान और धन के प्रयोग पर नियंत्रण रखती है। संसद की वित्तीय शक्तियां उसे सरकार के कार्यों के लिए धन उपलब्ध करने का अधिकार देती है।

संसद का गठन

संसद के तीन अंग है- राष्ट्रपति, राज्य सभा, एवं लोक सभा।

राज्य सभा में राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रतिनिधि होते हैं जबकि लोक सभा सम्पूर्ण भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करती है। राष्ट्रपति संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं होता और न ही वह सदन में बैठता है। फिर भी वह आरम्भिक अभिभाषण देने के प्रयोजन के लिए संसद में बैठता है अन्यथा नहीं,

कोई भी विधेयक दोनों सदनों से पारित होने के बाद राष्ट्रपति की अनुमति के बिना कानून नहीं बन सकता, राष्ट्रपति की अनुमति आवश्यक है।

राज्यसभा

राज्यसभा की संरचना

अनुच्छेद -80 मे राज्यसभा के गठन का प्रावधान दिया गया है| इसके अनुसार राज्यसभा सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 हो सकती है, हालाँकि वर्तमान मे यह 245 ही हैं|

इसमें 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जाते हैं, जिन्हे साहित्य, विज्ञान, कला या समाज सेवा के क्षेत्र मैं विशेष ज्ञान हो| शेष  सदस्य , जो  अधिकतम 238 हो सकते हैं किन्तु  वर्तमान मैं 233 ही हैं,  जो निर्वाचित होते हैं|

सीटों का निर्धारण

राज्य सभा में प्रत्येक राज्य से कितने सदस्य होगें, इसके लिए अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया आदि में प्रचलित समान प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को नहीं अपनाया गया बल्कि राज्य विशेष की संख्या को आधार बनाया गया है। जिसके तहत 50 लाख व्यक्तियों तक हर 10 लाख व्यक्तियों पर एक सदस्य तथा उसके बाद प्रति 20 लाख व्यक्तियों पर राज्य सभा में एक सदस्य होगा।

राज्य सभा का निर्वाचन

राज्यसभा का निर्वाचन आम जनता के द्वारा नहीं होता बल्कि राज्य विधान सभा सदस्यों के द्वारा होता है। राज्य सभा के सदस्यों का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमणीय प्रणाली के द्वारा होता है।

आनुपातिक प्रतिनिधित्व का अभिप्राय– प्रत्येक राजनीतिक दल को विधान सभा में उसकी संख्या के अनुपात में राज्य सभा में सीटें प्राप्त होंगी और संक्रमणीय का अभिप्राय है कि सदस्यों को निर्वाचन के लिए मतों का एक विशेष कोटा प्राप्त करना होता है। और कोटे से प्राप्त अधिक मतों को दूसरे सदस्यों के लिए हस्तांतरित किया जाता है। इस लिए इसे एकल संक्रमणीय कहा जाता है।

लोकसभा

लोकसभा की संरचना

संविधान के आर्टिकल 81 में लोकसभा के गठन से सम्बंधित प्रावधान किये गए हैं। लोकसभा में अधिकतम 552 सदस्य हो सकते हैं। पूरे देश को निर्वाचित 543 लोकसभा क्षेत्र में विभाजित किया गया है। इन 543 में 29 राज्यों से 530 और शेष 13 संघ शासित क्षेत्रों से लिए जाते हैं। (संघ शासित क्षेत्र से प्रतिनिधियों की संख्या 20 से अधिक नहीं हो सकती)

दो सदस्य राष्ट्रपति के द्वारा  एंग्लो इंडियन मनोनित किये जाते हैं।

सीटों का निर्धारण

संविधान के अनुसार प्रत्येक राज्य को उनकी जनसँख्या के अनुपात में समान लोकसभा सीटें प्राप्त होनी चाहिए। प्रत्येक राज्य की लोकसभा सीटों के बीच भी समानता होनी चाहिए। 1956 के बाद राज्यों को पुनर्गठन के पश्चात् पूर्वोत्तर में नए राज्यों के निर्माण के कारण यह प्रावधान किया गया कि जिन राज्यों की जनसँख्या 60 लाख से कम होगी उनके लिए उपरोक्त समानता का विचार लागू नहीं किया जायेगा।

वर्तमान में लोकसभा सीटों का निर्धारण 1971 की जनगणना के आधार पर किया गया है। 84 वें संविधान संशोधन के द्वारा यह निर्धारित कर दिया गया कि लोकसभा का परिसीमन वर्ष 2026 की बाद की जनगणना के  आधार पर किया जायेगा। 87 वें संविधान संसोधन, वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार वर्तमान में लोकसभा सीटों का पुनः समायोजन किया गया है।

2001 की जनगणना के अनुसार लोकसभा सीटों के समायोजन से अनुसूचित जाती जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों में बढ़ोत्तरी हुई। जो बढ़कर 84 एवं 47 हो गयीं।

लोकसभा निर्वाचन

लोकसभा के सदस्यों का निर्वाचन First Past the Post System-FPPS के आधार पर किया जाता है। जिसका अर्थ है जिस प्रत्याशी के चुनाव में सबसे अधिक मत प्राप्त होंगे। उसे विजयी घोषित कर दिया जायेगा। इस पद्धति में चुनाव जीतने के लिए किसी निर्धारित कोटे तक पहुंचना आवश्यक नहीं होता।

संसद क्या है(Sansad kya hai)? इस वाक्य को इस आर्टिकल से समझने का प्रयास किया गया है। और संसद तक पहुंचने के लिए संवैधानिक विकास की प्रक्रिया को भी बताया है। अगर आपका कोई सवाल है तो आप कमेंट में लिख सकते हैं।

 

 

 

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