Ram Setu Bridge(राम सेतु ब्रिज) हकीकत और आस्था ?

Ram Setu Bridge(राम सेतु ब्रिज) , नाम ही भारतीयों की आस्था से जुड़ा हुआ है। ऐसा कम ही होगा जिसने इस नाम के पीछे की कहानियाँ नहीं सुनी होंगी। यह नाम जितना हमारे धार्मिक इतिहास से जुड़ा हुआ है उतना ही महत्व आज के समय में इसकी सुंदरता और वैज्ञानिक खोजों से जुड़ा हुआ है।

Ram Setu Bridge history in Hindi

राम सेतु का बोध वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण में मिलता है जिसे वाल्मीकि रामायण भी कहते हैं। यह संस्कृत भाषा में लिखी गयी है। वहीँ राम चरित मानस को तुलसीदास के द्वारा लिखा गया है।

इन दोनों ही ग्रंथों में भिन्नताएं एवं समानताएं दोनों ही मौजूद हैं। इसके अलावा राम सीता से जुड़े ग्रंथो का मुख्य आधार वाल्मीकि रामायण ही है।

साधारण शब्दों में कहें तो- रावण के द्वारा सीता जी के अपहरण के बाद राम, सीता जी की खोज में निकलते हैं। इस खोज में वह भारत के दक्षिण पूर्वी तट के किनारे आकर रुक जाते हैं। उनके सामने समुद्र होता है। जो सीता जी की खोज में बाधक साबित होता है।

सीता जी जहाँ कैद थी उस अशोक वाटिका(रावण के महल) तक पहुंचने के लिए समुन्द्र को पार करना आवश्यक था। सीता जी को देखने के लिए राम जी के द्वारा हनुमान को भेजा जाता है।

उन्हें उनकी शक्तियों का बोध कराया जाता है। इसके बाद हनुमान उड़कर समुद्र पार कर अशोक वाटिका में पहुंचते हैं और पूरी अशोक वाटिका में अपनी पूँछ से आग लगा देते हैं।

हनुमान जी के लौटने के बाद समुद्र देव से रास्ता पार कराने के लिए अनुरोध किया जाता है। समुद्र देव के द्वारा उपाय दिया जाता है कि राम नाम लिख कर जो भी पत्थर समुद्र में गिराया जायेगा वह डूबेगा नहीं।

इसके पश्चात भगवान राम की सेना के दो वानर सैनिक नल-नील के द्वारा पुल बनाया जाता है, पत्थरों पर जय श्री राम नाम लिखा हुआ था, और वह तैर रहे थे। यही संक्षिप्त कहानी है जो हमने आज तक पड़ी है या सुनी है।

राम सेतु को बनाने में वानर सेना को 5 दिन का समय लगा। इस पुल कि लम्बाई 48 km की है। यह भारत के दक्षिण पूर्व में रामेश्वरम स्थान और श्री लंका के पूर्वोत्तर में मन्नार की खाड़ी के बीच चूने और मूंगे से बनी उथली चट्टानों की श्रृंखला है। जिसे दुनिया में Adam’s Bridge के नाम से जानते हैं।

Ram Setu Bridge से सम्बंधित विवाद क्या था।

2005 में सरकार के द्वारा रामसेतु पुल को तोड़कर जहाजों के आने जाने के लिए रास्ता बनाने को मंजूरी दी गयी। आस्था का विषय होने के कारण इस ब्रिज को बनाने पर विवाद खड़ा हो गया। जिस वजह से इस प्रोजेक्ट को बंद कर दिया गया। इस प्रोजेक्ट के तहत 83 km लम्बे चैनल बनाने थे।

जिसकी वजह से 30 घंटे के सफर में कमी आती। अभी श्री लंका और भारत के बीच व्यापार के लिए जहाजों को लम्बा रास्ता अपनाना पड़ता है।

Ram Setu Bridge से जुड़े सभी वैज्ञानिक पहलू

वैज्ञानिकों का मानना है कि जब कोरल और सिलिका पत्थर गर्म होता है तो वह अपने अंदर हवा भर लेता है जिसकी वजह से तैरने लगता है। एक दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि ज्वालामुखी की राख से निकले पत्थरों से यह पुल तैयार किया गया हो।

क्यों कि इन पत्थरों की संरचना भी तैरने में सहायक होती है। किन्तु ऐसा है तो यह पत्थर यहां कैसे आये, ये भी एक प्रश्न है ?

14 वीं शताब्दी में एक चक्रवात की वजह से राम सेतु ब्रिज टूट गया और यह समुद्री जलस्तर से 1-2 मीटर से नीचे चला गया। एवं यहां पानी का स्तर बढ़ गया।

अमेरिका का साइंस चैनल भी इसे मानव निर्मित बताता है।

Ram Setu Bridge चर्चा में क्यों?

आज तक राम सेतु के विषय पर कोई बात पूरी तरह साफ नहीं हो सकी है। मान्यतायें और वैज्ञानिक तथ्यों में समरूपता है किन्तु कोई ठोस प्रमाण नहीं है। सरकार ने वैज्ञानिकों को Ram Setu bridge पर तथ्यों को जुटाने के लिए मंजूरी दे दी है।

Archaeological Survey of India के अंतर्गत Central Advisory Board on archaeology के द्वारा प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी गयी है। इसका प्रस्ताव नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ ओसेनोग्राफी(NIO)-CSIR के द्वारा लाया गया था।

इस प्रोजेक्ट को तीन साल तक चलाया जायेगा। इसमें यह पता किया जायेगा, क्या यह मानव निर्मित है या प्राकृतिक। इसके लिए कार्बन डेटिंग के तरीके को अपनाया जायेगा। कम्पोजीशन, मटेरियल कौन सा है सभी पहलुओं पर ध्यान दिया जायेगा।

NIO संस्था के पास उच्चतम तकनीक है, इस कारण देश में ही सभी विषयों को जांचा जायेगा। इस संस्था के द्वारा द्वारिका (गुजरात) में भी तथ्यों को खोजा गया।

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