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सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System) क्या है?
यह खाद्य सुरक्षा की जरूरतों को पूरा करने के लिए, एक प्रकार की वितरण प्रणाली है। इस सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System-PDS) के अंतर्गत आने वाले लाभार्थियों को सब्सिडी युक्त सस्ती कीमतों पर खाद्य सामग्री वितरित की जाती है। इस योजना में गेहूं, चावल, चीनी और मिट्टी के तेल जैसे प्रमुख खाद्यान्नों को सार्वजनिक वितरण की दुकानों द्वारा पूरे देश में लोगों तक पहुंचाया जाता है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली का उद्देश्य
इस योजना का प्रमुख उद्देश्य देश में भुखमरी को ख़त्म करना है। सरकार के द्वारा इस योजना को बनाते समय, भोजन के अधिकार(Right to Food) तक, सभी की पहुंच को सुनिश्चित करने की सोच को ध्यान में रखा गया।
प्रक्रिया
केंद्र सरकार, खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India- FCI) के माध्यम से खाद्यान की खरीद, भंडारण, परिवहन और थोक आवंटन कर सभी राज्य सरकारों तक पहुँचाती है एवं यहाँ तक पूरी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की होती है। जब यह खाद्य सामग्री राज्यों के पास पहुंच जाती है, वहां से खाद्यान की पूरी जिम्मेदारी राज्यसरकार की होती है।
राज्य सरकारें का कार्य है कि वह जरूरतमंद परिवारों को चिन्हित कर उनके लिए रासन कार्ड बनवाये, रासन की दुकाने जहाँ से लोग जाकर रासन लेते हैं, उनका विनियमन देखरेख और जाँच करे। केंद्र सरकार से व्यक्ति तक खाद्य सामग्री को पहुँचाना एक जटिल प्रक्रिया है। जिसमें कई समस्याएं हैं।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली में समस्या ?
देश में खाद्य सामग्री की खरीद राज्यसरकार और केंद्र सरकार के मध्य होती है। अभी राज्य सरकार के द्वारा 2 रूपये प्रति किलो गेंहू के लिए तथा 3 रूपये प्रति किलो चावल के लिए दिया जाता है। किन्तु 2013 के फ़ूड सिक्योरिटी कानून के अनुसार इस खरीद मूल्य को हर 3 साल में बदलना चाहिए था किन्तु 2013 से अभी तक इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ।
2013 देश में नेशनल फ़ूड सिक्योरिटी एक्ट को लाया गया। इसके अनुसार देश की 67% जनसँख्या नेशनल फ़ूड सिक्योरिटी कानून का लाभ लेती है। जो चिंता का कारण बन सकती है। 2021 के इकनोमिक सर्वे में कहा गया कि देश में फ़ूड सब्सिडी बिल लगातार बढ़ता जा रहा है। 2016-17 से 2019-20 के मध्य केंद्र सरकार का फ़ूड सिक्योरिटी बिल निरंतर 1.65-2.2 लाख करोड़ के बीच रहा।
किन्तु इस बार सरकार के द्वारा बजट के आंकड़ों को अच्छा प्रदर्शित करने के लिए 1 लाख करोड़ की धनराशि ही बजट के माध्यम से FCI को दी गयी। तथा अन्य धनराशि को National Small Saving Fund से लोन के रूप में ले लिया जाता है। अब सरकार पर वही भार लोन के रूप में 2.5 लाख करोड़ पड़ने की उम्मीद है।
ऐसे कई राज्य हैं जहाँ पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System) के अंतर्गत गेंहू और धान की कीमतें एकदम नगण्य हैं। और यह कीमतें राज्यों के स्तर पर भिन्न भिन्न हैं। इसके अलावा खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता में कमी भी एक समस्या हैं। भ्रष्टाचार के कारण जरुरत मंद लोगों तक खाद्यान उपलब्ध नहीं हो पाता।
सुझाव
- 2015 की शांता कुमार समिति के हिसाब से कहा गया कि अभी देश 67% जनसँख्या नेशनल फ़ूड सिक्योरिटी एक्ट का लाभ लेती है। इसे घटा कर 40% तक लाना चाहिए।
- जिस प्रकार LPG सब्सिडी को छोड़ने के लिए के give up कैम्पेन चलाया गया था। जिस कारण बहुत से लोगों ने अपनी सब्सिडी को त्याग दिया। उसी प्रकार से खाद्य सुरक्षा से सम्बंधित सब्सिडी को छोड़ने के लिए कोई कैम्पेन चलाया जाना चाहिए।
- सरकारों के द्वारा स्लैब सिस्टम लाना चाहिए। जो परिवार बहुत गरीब हैं, उन्हें भले ही मुफ्त में PDS का लाभ मिल जाये किन्तु जो परिवार गरीब नहीं है। उन्हें किसी निर्धारित मूल्य पर योजना का लाभ मिले।
- रासन कार्ड को ऑनलाइन करना चाहिए। उन्हें आधारकार्ड से लिंक करना चाहिए। ताकि रासन कार्ड में फर्जीवाड़ा न हो सके।
देश अभी भी भूख, पोषण जैसी चुनौतियों से लड़ रहा है। इसके अलावा आज भी ऐसे अनेक परिवार हैं जिनके पास रासन कार्ड नहीं है। सरकार के द्वारा प्राप्त होने वाले लाभों से वह पूरी तरह वंचित हैं। इसका एक कारण शिक्षा का आभाव भी है। ऐसे लोगों तक पहुंच बनाना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। बिना ऐसे प्रयास किये सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System) या अन्य किसी भी योजना को सफल नहीं किया जा सकता।