अभी देश में किसानों ने बिलों के विरोध में विरोध प्रदर्शन कर रखा है। भारत की संसद(parliament of India) में भी इस बिल के विरोध में विपक्ष की तरफ से कड़ा विरोध किया गया। इस बिल के जरिये राज्यसभा सदन में कई सवाल खड़े होते हैं कि जो भी हुआ वह लोकतंत्र कि हत्या हैं।
पॉइंट ऑफ़ आर्डर– जब हाउस की वर्किंग चल रही हैं तो इसी बीच कोई भी मेंबर खड़ा होकर यह यह बता सकता हैं की वर्किंग में हाउस का यह रूल तोड़ा गया हैं।
फार्म बिल पर राज्य सभा में वोटिंग होनी थी। राज्यसभा के चेयरमैन या वाइस चेयरमैन चर्चा के द्वारा राज्यसभा के सदस्यों से पूछे जो बिल के फेवर में हैं और जो फेवर में नहीं है। इसके बाद बिल को पारित कर दिया जाता है यदि सदन का कोई एक सदस्य भी यदि वोटिंग की मांग करता है तो चेयरमैन या वाईस चेयरमैन के द्वारा बात को मानते हुए वोट की रिकॉर्डिंग कराई जाती है।
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भारत की संसद(parliament of India) के राज्यसभा सदन में उपसभापति का पक्ष
उपसभापति के द्वारा कहा गया की उपस्थित सदस्य में इतना हल्ला कर रहे थे कि 13 बार शांत करने के बावजूद नहीं माने। इसलिए शोरगुल के मध्य बिल ध्वनि मत से पास कर दिए गए
किन्तु उप सभापति का यह वक्तव्य गलत है। क्यों कि परंपरा के अनुसार वोटिंग करनी होती है। यह इतना अधिक अहम् बिल था जिस पर देश में विरोध चल रहा है।
उपसभापति पर आरोप
भारत की संसद(parliament of India) के सदस्यों के द्वारा की जा रही मांग जायज थी राज्यसभा में सरकार के पास बिल को लेकर बहुमत नहीं था। और विपक्ष की मांग साफ थी कि बिल को पारित न किया जाये एवं सलेक्ट कमिटी के पास भेजा जाये और बिल पर वोटिंग की गिनती कर ली जाये।
विपक्ष को इस बात का एहसास था कि वोटिंग के जरिये सरकार अपना बहुमत सिद्ध नहीं कर पायेगी और बिल पास नहीं होगा। किसानों के मुद्दे पर देश की पॉलिटिक्स में जो गरमी चल रही है उसे देखते हुए विपक्ष सही दिशा में आगे बढ़ रहा था। किन्तु अब बिल पारित हो चुका है।
राज्यसभा की परंपरा का हनन
इस बिल में परंपरा के तहत दोनों तरफ से ही गलती की गयी उपसभापति की तरफ से और जो मेंबर बिल के विरोध में थे उनके भी द्वारा।
जो 8 मेंबर बिल के विरोध में उपसभापति की कुर्सी के पास आये थे उन पर आरोप है कि वह उपसभापति कि कुर्सी के पास जाकर बेंच पर खड़े हो गए, हंगामा किया माइक को खींचने की कोशिश की सभापति के गार्ड्स से भी सही व्यवहार नहीं किया गया।
इस घटना के बाद अगले दिन सभापति के द्वारा राज्यसभा सदन के उन 8 सदस्यों को हाउस से सस्पेंड कर दिया गया अब वह 8 सदस्य धरने पर बैठे हुए हैं।
सरकार की जिम्मेदारी
सरकार की जिम्मेदारी है कि दोनों सदनों या भारत की संसद(parliament of India) में किस प्रकार से काम चलेगा।
सदन में मतभेद हो सकते है कई बार हो-हल्ला होता है इसका यह मतलब तो नहीं बनता कि वोटिंग की मांग करने के बावजूद सदन में वोटिंग नहीं कराई गयी हो और बिल को पारित कर दिया गया हो।
यह सरकार या चेयरमैन की मर्जी के आधार पर नहीं चल सकता कि वोटिंग करनी है या नहीं, किसी भी विधेयक को किस प्रकार से पास करना है। इससे लोकतंत्र और सदन की गरिमा भंग होगी। सभापति की गरिमा भंग होगी।
ऐसा भी कई बार देखा गया है कि सरकार कानून को पारित करने के लिए धन विधेयक के रूप में ले आती है। “जिस भी विधेयक को धनविधेयक के रूप में लाया जाता है उस पर राज्यसभा की वोटिंग या राज्यसभा के पटल पर रखना आवश्यक नहीं होता।
सरकार का लोकसभा में भारी बहुमत है और राज्यसभा में बहुमत नहीं है अर्थात किसी भी कानून को पारित करने के लिए बहुमत की राय मिलना मुश्किल है। एक सकारात्मक चर्चा और अन्य पार्टियों के सहयोग के बाद ही राज्यसभा से बिल पास होकर निकल सकता है। इससे बचने के लिए सरकार कई बार धन विधेयक के रूप में बिल को लाने का प्रयास करती है।
किन्तु यह किसी भी बिल के साथ धोखा है। कोई भी कानून देश की जनता के लिए बनता है तो उस पर चर्चा होनी चाहिए उस बिल के कानून बनने से पहले उसके सभी पहलुओं पर विचार होना चाहिए।
कोई भी सदन वह चाहे राज्यसभा हो या लोकसभा, एक सकारात्मक बहस का होना देश के हिट में जरुरी है ऐसा कई बार होता है कि विपक्ष बहस को होने ही नहीं देता, सदन से वाकआउट कर दिया जाता है। संसद बातचीत के लिए है यह धरना देने या कोई पोलिटिकल एजेंडा सेट करने के लिए नहीं है।
दूसरे देशों से तुलना
लोकतंत्र के हिसाब से सबसे कठोर संविधान USA का है। वहां का उच्च सदन असल में उच्च सदन है और निम्न सदन असल में निम्न। और वही इंग्लैंड का सबसे उच्च सदन सबसे निम्न ताकत लिए हुए है। और वहीं भारत का अच्छा सदन न तो अधिक कठोर और न ही अत्यंत निम्न ताकत लिए हुए है, भारत के निति निर्माताओं ने एक सही तालमेल बनाने का प्रयास किया।
हमारे देश के राजनीतिज्ञ अक्सर दूसरे देश की नीतियों अच्छाइयों से तुलना करते हैं तो वह इस बात में भी तुलना करे की सदन की गरिमा का देश-विदेश के लिए क्या छवि जाती है। इंग्लैंड के सदन में आज तक मर्यादा को भंग नहीं किया गया।
हालाँकि इस कई बार अन्य देश तस्वीरें सामने आती हैं कि पार्लिमेंट में ही जूते चप्पल चल गए कुर्सियों को उछाला गया हो। किन्तु यह किसी भी देश के गरिमा की बात तो कतई नहीं हो सकती।
हमारे देश में भी सदन की गरिमा को कई बार कम किया गया हैं जिस पर सदन के द्वारा कड़ी कार्यवाही की गयी हैं। किन्तु अगर नियमों को ताक पर रख कर सरकार, सदन, विपक्ष के द्वारा ही जिम्मेदारियों को नहीं निभाया जायेगा तो किसी भी इंस्टिट्यूट के होने न होने से कोई फरक नहीं पड़ता।
इसमें सबसे बड़ी भूमिका सरकार की हैं। अभी सरकार के द्वारा बिल पर बिल पास कर दिए गए हैं जिनपर सही तरीके से चर्चा भी नहीं की गयी। किसानों की बात भी सरकार नहीं सुन रही। फार्म बिल के पारित होने के बावजूद किसान विरोध पर हैं और विपक्ष के द्वारा राष्ट्रपति के मांग की गयी हैं कि इस बिल को मंजूरी न दें। क्यों कि इस बिल के लिए सदन कि परम्पराओं को नहीं निभाया गया। इस बिल ने भारत की संसद(parliament of India), सरकार के लिए प्रश्न खड़े कर दिए हैं जो लोकतंत्र के लिए जरुरी हैं।