दुनिया के देशों के द्वारा 2015 में Paris Climate Change agreement किया गया। इसे Conference of Parties (CoP) के नाम से भी जानते हैं। इस सम्मलेन का मकसद climate change को बढ़ने से रोकना एवं ग्लोबल तापमान की बढ़ोत्तरी को 2 डिग्री सेल्सियस के भीतर बनाये रखना है। पेरिस एग्रीमेंट दुनिया में क्लाइमेट चेंज से सम्बंधित पहली ऐसी व्यवस्था है।
1992 में Earth summit को Rio de Janeiro में आयोजित किया गया था उसके 2 साल बाद 1994 में UNFCCC लाया गया। उसके बाद से ही क्लाइमेट चेंज को लेकर बातें उठायी जा रही हैं। 2009 में CoP 15 के समय विकसित और विकासशील देशों के बीच क्लाइमेट को लेकर सहमति बनाने के प्रयास किये गए जो असफल रहे।
किन्तु 2015 में CoP21 में विभिन्न देशों के बीच क्लाइमेट चेंज को लेकर एक सार्थक सहमति बन सकी।
Climate Change का असर
जानकारों का मानना हैं कि भविष्य में क्लाइमेट चेंज का सबसे अधिक असर छोटे और टापू देशों पर पड़ेगा। और जो अब दिखाई भी दे रहा है। जैसे- समुद्र जल स्तर में बढ़ोत्तरी से टापू देशों के डूबने की स्थिति बनी रहेगी। चक्रवात जैसी घटनाओ से नुकसान कि संभावना भी अधिक बढ़ जाएगी।
अनुमान तो यह भी है कि यदि ग्लोबल तापमान में अगर 4 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी हो जाती है तो भारत के कोस्टल क्षेत्र में पानी भर जायेगा। और यह खतरा मुम्बई और समुद्र के आस पास के शहरों पर सबसे अधिक है।
इसका कारण यह हैं कि तापमान के बढ़ने से ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं। जो असल में समुद्र के जलस्तर के बढ़ाने, बाढ़ आने जैसी समस्याओं को बड़ा रहे हैं। सूखा और भूमि के बंजर होने की समस्याएं अधिक हो रही हैं। चक्रवात, भूकंप आने की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है। मौसम के पैटर्न में बदलाव देखा जा रहा है। ये सभी समस्याएं ग्लोबल वार्मिंग को पूरी तरह प्रमाणित कर रहे हैं और इस बात को भी क्लाइमेट चेंज सही में दुनिया के सामने अपने असर को दिखाना शुरू कर रहा है।
कार्बन उत्सर्जन में भागीदारी
दुनिया में सबसे अधिक कार्बन उत्सर्जन करने वाले देशों में चीन और USA हैं। ये दोनों देश मिलकर दुनिया के कार्बन उत्सर्जन में 38% की भागीदारी करते हैं जिसमें चीन पहले स्थान पर और USA दूसरे स्थान पर है इसके बाद भारत और रूस क्रम में खड़े हुए हैं। भारत दुनिया के कार्बन उत्सर्जन का केवल 4% भागीदारी रखता है। भारत पेरिस क्लाइमेट एग्रीमेंट को मानाने वाला 62 वां देश है। 2 october गाँधी जी के 147 जन्मदिवस पर भारत के द्वारा पेरिस एग्रीमेंट को अपनाया गया। भारत के द्वारा कहा गया है कि भारत 2030 तक अपनी GDP का 33-35% तक कार्बन उत्सर्जन कम करेगा।
चीन और USA इन दोनों देशों के द्वारा एक साथ पेरिस एग्रीमेंट को अपनाया गया। जिस कारण दुनिया के विभिन्न देश इसे अपनाने के लिए आगे आये। किन्तु दुनिया 197 देशों के द्वारा पेरिस एग्रीमेंट को अपनाने के बावजूद, इस में शामिल किये गए मुद्दों पर जिम्मेदारी से काम नहीं किया जा रहा। जैसे कि कमजोर देशों को क्लाइमेट चेंज के खिलाफ मजबूत करने के लिए $100bn का फण्ड बनाना था जिसमें अभी तक कोई खास सफलता नहीं मिली।
क्लाइमेट चेंज को रोकने के लिए किया क्या जा सकता है?
दुनिया को सोलर एनर्जी, विंड एनर्जी, या ऐसे एनर्जी सोर्सेज की तरफ मुड़ना चाहिए जिससे प्रदूषण की समस्या खत्म हो। खेती में अफ्रीकन एग्रीकल्चर पैटर्न को अपनाना चाहिए एवं इनोवेशन पर ध्यान देना चाहिए। मशीनों के द्वारा उपज को बढ़ाने और पानी की खपत को कम करने का प्रयास करना चाहिए। क्लाइमेट चेंज की जो समस्या दुनिया के सामने है उस पर दीर्घकालीन प्लान बनाकर कार्य करना चाहिए।
Paris Climate Change Agreement एक सार्थक प्रयास है। किन्तु इसमें अभी भी बहुत खामियां हैं। खामियां इस बात को लेकर है कि कोई रेगुलेशन बॉडी नहीं है जो विभिन्न देशों को दवाब के साथ कह सके। क्लाइमेट चेंज पर किये जा रहे प्रयासों को रेगुलेट एवं उन पर नजर रखी जा सके। अगर विकसित देशों के द्वारा कार्बन उत्सर्जन को कम नहीं किया जाता तो उन पर क्या पैनल्टी लगायी जानी चाहिए। क्लाइमेट चेंज को लेकर जो प्रयास किये जा रहे हैं क्या वह ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए काफी हैं इसका निर्धारण किसके द्वारा किया जायेगा। ऐसे बहुत से प्रश्न हैं? पेरिस एग्रीमेंट एक प्रयास है जिसे सफल बनाना ही होगा अन्यथा प्रकृति का विकराल रूप दुनिया के सामने और भी अधिक विकराल हो सकता है।