भारत में पंचायती राज(Panchayati Raj Vyavastha) शब्द का अभिप्राय ग्रामीण स्थानीय स्वशासन से है। ग्रामीण पंचायतों का स्वप्न गाँधी जी के सर्वोदय के आदर्श का व्यावहारिक रूप है, क्यों कि पंचायतों के अभाव में न तो गावं का विकास हो सकता और न उसमें बसने वाले लोगों का। 1992 के 73वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा इसे संविधान में शामिल किया गया है।
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पंचायती राज व्यवस्था(Panchayati Raj Vyavastha) का ऐतिहासिक विकास
1870 में लार्ड मेयो ने भारत में स्थानीय शासन लागू करने की अनुशंसा की तथा लार्ड रिपन के कार्यकाल में स्थानीय तोर पर स्थानीय शासन बोर्ड की स्थापना की गयी। राष्ट्रीय आंदोलनों में गाँधी जी ने पंचायती राज को बढ़ावा दिया गया। आजादी के पश्चात पंचायती राज को संविधान के नीति निदेशक तत्वों(Article-40) में शामिल किया गया।
पंचायती राज से सम्बंधित समितियां
पंचायती राज को लागू करने से पहले कई समितियां बनायीं गयी उन्ही में सबसे पहले बलवंत राय मेहता समिति(1957) की सिफारिशों को प्रस्तुत किया गया।
बलवंत राय मेहता समिति
- इसमें त्रिस्तरीय पंचायती राज की स्थापना की बात कही गयी। जिसमें जिला स्तर पर जिला परिषद्, ब्लॉक स्तर पर ब्लॉक पंचायत समिति और गांव के स्तर पर ग्राम पंचायत का गठन करना था। इसके अंतर्गत ग्राम पंचायत का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से किया जाना था जबकि ब्लॉक पंचायत समिति एवं जिला परिषद् का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से करना था। तथा इन संस्थाओं के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए शक्तियों का विकेन्द्रीकरण किया जाना था। जिला परिषद् का चेयरमैन जिलाधिकारी होगा।
- बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशों के बाद पहली बार 2 अक्टूबर, 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में पंचायती राज लागू किया गया।
अशोक मेहता समिति
- 1978 में अशोक मेहता समिति का गठन किया गया। इसके अनुसार पंचायती राज द्विस्तरीय होगा जिला परिषद् और मंडल पंचायत। इस समिति के पंचायती राज संस्थाओं को करारोपण की शक्तियां एवं अपने संसाधन उगाहने की शक्ति देने की अनुशंसा की।
- पंचायतों के विघटन के बाद चुनाव 6 महीने के अंदर कराने की अनुशंसा की। पंचायतों में अनुसूचित जाति और जनजातियों को उनकी जनसँख्या के अनुपात में सीटें आरक्षित करने की सिफारिश की। इस समिति ने ‘पंचायती राज वित्त निगम’ की स्थापना का भी सुझाव दिया।
- भारत के मुख्य निर्वाचन आयोग की सलाह पर राज्य निर्वाचन आयोग को पंचायतों के चुनाव कराने का सुझाव दिया।
जी वी के राव समिति
- 1985 में इस समिति के द्वारा मुख्य सुझावों में वित्त आयोग के गठन, पंचायतों का कार्यकाल 5 वर्ष तथा त्रिस्तरीय पंचायतों के गठन का सुझाव दिया गया।
लक्ष्मीमल सिंघवी समिति
- 1986 में इस समिति के द्वारा पंचायतों को संवैधानिक आधार प्रदान करने की सिफारिश की गयी। इस समिति के द्वारा भी त्रिस्तरीय पंचायतों के गठन की बात की गयी।
इन समितियों के अलावा भी कई समितियां बनायीं गयी। किन्तु ये कुछ महत्वपूर्ण समितियां थीं।
73 वां संविधान संसोधन
1993 में कांग्रेस पार्टी की सरकार ने पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा देने का निश्चय किया। इसके पूर्व ही लक्ष्मीमल सिंघवी समिति द्वारा पंचायती राज को संविधान में सम्मिलित करने की बात कही जा चुकी थी। इसी वजह से 24 अप्रैल 1993 में संसद में 73 वां संविधान संशोधन पारित किया गया, जिसके तहत भाग-9 तथा 11 वीं अनुसूची जोड़ी गयी। यह संविधान संशोधन राज्यों को कानून बनाने के लिए एक ढांचा प्रदान करता है जिसके तहत राज्यों को 1 वर्ष के अंदर कानून निर्माण के लिए कहा गया था।
इसके तहत त्रिस्तरीय पंचायती राज की स्थापना की गयी तथा जिन राज्यों की आबादी 20 लाख से कम है, वहां दो स्तर के पंचायती राज की स्थापना की जनि थी, उदहारण- गोवा व मणिपुर में ग्राम स्तर एवं जिला स्तर पर पंचायती राज की स्थापना की गई।
73 वें संविधान संशोधन के अंतर्गत 11 वीं अनुसूची में पंचायतों को 29 विषय प्रदान किये गए हैं। इन विषयों में परिवार कल्याण, महिला एवं बल विकास, पशुपालन, डेयरी, लघु उद्योग, पेयजल, कृषि और कृषि विकास, सड़क एवं पुलिया जैसे 29 विषय शामिल हैं। इन विषयों पर पंचायतों को योजना निर्माण का अधिकार है।
पंचायती राज व्यवस्था(Panchayati Raj Vyavastha) और लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण
73 वें संविधान संशोधन के द्वारा पंचायती चुनाव में भागीदारी के लिए 21 वर्ष की उम्र का निर्धारण किया गया है। गांव, खंड और जिला स्तर पर पंचायतों के सभी सदस्य लोगों द्वारा सीधे चुने जायेंगे। इसके अलावा खंड या जिला स्तर पर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव निर्वाचित सदस्यों द्वारा उन्ही में से अप्रत्यक्ष रूप से होगा, जबकि गांव स्तर पर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव राज्य के विधानमंडल द्वारा निर्धारित तरीके से किया जायेगा।
73 वें संविधान संशोधन के द्वारा भारत में संघीय शसन के तीसरे स्तर का निर्माण किया गया है जिसका मूल उद्देश्य केवल प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण नहीं है। बल्कि सामाजिक न्याय की स्थापना करना है। इसके लिए सभी स्तर पर अनुसूचित जातियों, जनजातियों का आरक्षण उनकी जनसंख्या के अनुपात में किया गया है। पिछड़े वर्गों के लिए पंचायतों के सभी स्तर पर आरक्षण का निर्धारण राज्य विधान सभाओं के द्वारा किया जायेगा और ज्यादातर राज्य विधानसभाओं ने पिछड़े वर्गों के लिए 27% सीटें आरक्षित की हैं।
संविधान के द्वारा पंचायतों के सभी स्तरों के लिए 1/3 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की गयी हैं और राज्य सूची का विषय होने के कारण आरक्षण की यह सीमा बढ़ाकर 50% तक कर दी है।
आरक्षण केवल सदस्यों के लिए ही नहीं अपितु अध्यक्ष स्तर के लिए भी किया गया है। जिसका निर्धारण राज्य विधानसभाओं के द्वारा किया जायेगा।
वित्तीय विकेन्द्रीकरण
73 वें संविधान संशोधन में यह उल्लेखित है कि राज्य विधानसभा के द्वारा पंचायतों को निम्नलिखित वित्तीय शक्तियां प्रदान की जायेगीं
- कर, फीस, पथकर, शुल्क लगाने की शक्ति पंचायतों को सौपना।
- कर, पथकर, फीस, शुल्क पंचायतों को प्रदान करना।
- पंचायतों को अनुदान प्रदान करना।
- पंचायतों को वित्तीय संचयन के लिए संस्थाओं का निर्माण करना।
पंचायतों के वित्तीय स्रोत
- पंचायतों को केंद्र द्वारा प्रायोजित पैसे प्राप्त होते हैं।
- राज्य और पंचायतों के बीच करों के विभाजन से प्राप्त होने वाली राशि।
- राज्य की संचित निधि से दिया गया अनुदान।
- पंचायतों के द्वारा लगाए गए और बसूले गए टैक्स, फीस, पथकर, प्रशुल्क।
- 14 वें वित्त आयोग के द्वारा पंचायतों को सुदृढ़ करने के लिए पहली बार पंचायतों को दिए गए अनुदान को दो भागों में विभाजित कर दिया- सामान्य अनुदान और निष्पादन अनुदान।, सामान्य अनुदान सभी राज्यों को प्राप्त होंगे। परन्तु निष्पादन अनुदान केवल उन्ही राज्यों को दिया जायेगा जिन्होंने पंचायतों को ज्यादा से ज्यादा शक्तियां हस्तांतरित की है और पंचायतो को सुदृढ़ बनाने का काम किया है।
राज्य वित्त आयोग
73 वें संविधान संशोधन के द्वारा राज्य वित्त आयोग का प्रावधान किया गया है। जिसके अनुसार संशोधन के लागू होने के एक वर्ष की अवधि के भीतर राज्य वित्त आयोग का गठन किया जायेगा। इस सम्बन्ध में वित्त आयोग की संरचना और सेवा शर्तों का निर्धारण राज्य विधानसभा करेगी।
73 वें संविधान संसोधन में राज्य वित्त आयोग के निम्नलिखित कार्यों का उल्लेख किया गया है।
- राज्यों और पंचायतों के बीच करों का विभाजन।
- पंचायतों की वित्तीय स्थिति मजबूत करने के उपाय।
- राज्यपाल के द्वारा पंचायतों के सुदृढ़ वित्तीय हित में राज्य आयोग से सलाह ली जाएगी।
- करों और शुल्कों को पंचायतों को हस्तांतरित करना।
वित्तीय विकेन्द्रीकरण में समस्या
- राज्य सरकारों के द्वारा पंचायतों को महत्वपूर्ण कर एवं शुल्क हस्तांतरित नहीं किये गए है।
- पंचायतें कभी अपने वित्तीय संसाधनों के दोहन का प्रयत्न नहीं करती।
पंचायती राज व्यवस्था(Panchayati Raj Vyavastha) के वित्तीय स्वायत्तता के बिना प्रशासनिक एवं राजनितिक विकेन्द्रीकरण का विचार आधा एवं अधूरा है। इसीलिए पंचायतों को वित्तीय रूप में शक्तिशाली बनाने के लिए संविधान संशोधन की मांग हो रही है।