सरकार के द्वारा पाम आयल की खेती(Palm Oil Farming) को बढ़ावा देने के लिए नेशनल मिशन ऑन एडिबल ऑयल्स-आयल पाम (NMEO-OP) लाया गया है। इस मिशन के तहत सरकार पूर्वोत्तर भारत साथ ही अंडमान निकोबार द्वीप समूह में पाम आयल की खेती आगे लाएगी।
सरकार के द्वारा 6.5 लाख हेक्टर अतिरिक्त भूमि क्षेत्रफल का विकास किया जायेगा जिस पर आयल पाम की खेती की जाएगी। इसके आलावा कच्चे पाम आयल का उत्पादन 2025-26 तक 11 लाख टन किया जायेगा जिसे 2029-30 तक बढ़ाकर 28 लाख टन तक पहुंचाया जायेगा।
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Palm Oil Farming ही क्यों ?
भारत दुनिया में सबसे अधिक खाद्य तेल उपयोग करने वाला देश है। कृषि प्रधान देश होने के बावजूद भारत बहुत बड़े स्तर पर खाद्य तेल आयत करता है। अगर देश में आयल पाम की खेती को बढ़ावा दिया जायेगा तो आयल पाम पर जो आयात निर्भरता है, उसे बहुत हद तक दूर किया जा सकेगा।
आयल पाम की खेती से कम क्षेत्र में अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही आयल पाम की खेती से किसी भी अन्य तेल उत्पादक फसल से 3 गुना अधिक तेल उत्पादन किया जा सकता है।
योजना में क्या शामिल है?
इस योजना में किसानों को पाम आयल की खेती करने के लिए प्रोत्साहन के रूप में viability price(व्यवहार्यता मूल्य) दिया जायेगा। जिससे पाम आयल की खेती के लिए किसानों में आकर्षण पैदा हो। यह viability price एक प्रकार से न्यूनतम समर्थन मूल्य की तरह ही है। सरकार के द्वारा 1 NOV-31 OCT के बीच की अवधि को oil Palm Year के रूप में मनाया जायेगा। इस oil palm Year के दौरान जो भी खेती होगी उसके माध्यम से किसान को एक price assurance (मूल्य आश्वासन) दिया जायेगा। अथवा
पूर्वोत्तर और अंडमान क्षेत्र में पाम आयल की खेती करने वाले किसानों को सरकार की ओर से विशेष सहायता दी जाएगी।
इस योजना से जुड़ी पर्यावरणीय चिंताएं
- आयल पाम की खेती करने में जल की खपत बहुत अधिक मात्रा में होती है। ऐसा माना जाता है कि इसकी खेती करने के लिए प्रतिदिन 300 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। पर्वावरण चिंतको की चिंता है कि जिन क्षेत्रों में पाम आयल की खेती होगी वहां के जल स्तर में गिरावट आ सकती है।
- इसकी खेती को परिपक्व होने में एक लम्बा समय लगता है। इस समय में किसान अपनी आय के लिए क्या करेगा?
- पाम आयल खेती को करने में अन्य किसी फसल का उगना संभव नहीं होता जिस वजह से किसान केवल आयल पाम की खेती ही कर सकेंगे। इससे मोनोकल्चर कृषि को बढ़ावा मिलेगा।
- नार्थ ईस्ट और अंडमान निकोबार दोनों ही क्षेत्र सामुदायिक स्वामित्व वाले आदिवासी क्षेत्र है। ऐसे में इन आदिवासी समाजों को नुकसान हो सकता है।
- आयल पाम की खेती से पर्यावरण को नुकसान हो सकता है। नार्थ ईस्ट और अंडमान निकोबार वाले क्षेत्र जैवविविधिता से संपन्न क्षेत्र हैं। पाम आयल की खेती के लिए जंगलों को काटा जायेगा। इन सभी कारणों से जैव संकट पैदा हो सकता है।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र को लेकर पाम आयल की खेती को आक्रामक प्रजाति के तौर पर देखा जा रहा है। भारत में केरल कर्नाटक दक्षिण भारत के अन्य राज्यों में पाम आयल की खेती अच्छे से की जाती है।
- अंडमान निकोबार का अधिकांशतः भाग संरक्षित वन क्षेत्र के अंतर्गत आता है। लेकिन पाम आयल की खेती से वहां की स्थिति में बदलाव संभव है। निकोबार के कचाव द्वीप पर 40 वर्ष पहले ही उच्चतम न्यायालय द्वारा पाम आयल की खेती पर रोक लगा दी गयी थी।
Palm Oil Farming को बढ़ाने के कारण
पाम आयल की भूमि उत्पादकता उत्तम है जिस वजह से खाद्य तेल की आपूर्ति को पूरा किया जा सकता है। सरकार के अनुसार पूर्वोत्तर राज्यों के लिए भूमि की पहचान की गयी है जहाँ पर पाम आयल की खेती करना संभव है। ICAR का कहना है कि भारत में 28 लाख हेक्टेयर भूमि ऐसी है जाना पाम आयल की खेती हो सकती है, इसमें 9 लाख हेक्टेयर भूमि पूर्वोत्तर राज्यों में पड़ती है।
सरकार के अनुसार वैज्ञानिक जाँच और आंकड़ों को महत्व देते हुए कार्य किया जायेगा। पाम आयल की खेती से मांग और आपूर्ति की खायी को कम करने में सहायता मिलेगी।
Palm Oil Farming के लिए किसानों को प्रशिक्षित करना आवश्यक है। किसानों को पाम आयल की खेती एक समय उपरांत ही लाभ मिलना संभव होता है। उस समय में किसान खेती से किस प्रकार से अपनी आय अर्जित करेगा इस पर भी विचार करना होगा।