Nationalism Definition in India/media का प्रभाव

Nationalism Definition

यह एक बड़ी विचारधारा है। राष्ट्रवाद की सही डेफिनेशन देना ही अपूर्ण हो जाता है किन्तु इस विचार को समझने की कोशिश की जा सकती है। राष्ट्र के हित के लिए लोगो में पैदा होने वाली भावना जो जातीयता, धर्म, परंपरा, संस्कृति से आगे निकल कर एक होने के लिए प्रयासरत हो। यह भावना अलग अलग समय में वहाँ की परिस्थिति के आधार पर रहती है। जैसे आजादी के समय राष्ट्र की एकता को पैदा करने के लिए गाँधी जी ने बहिष्कार, धरना , अनसन, असहयोग जैसे कार्यक्रम किये । भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु, फांसी पर चढ़ गए और वे सभी  फ्रीडम फाइटर्स जिन्हे किताबो में भी जगह नहीं मिली, आजादी और राष्ट्र निर्माण के लिए लड़ते रहे। मार्क्स ने दुनिया के मजदूरों एक हो जाने का नारा दिया। ये सभी राष्ट्र निर्माण के लिए एक सकारात्मक विचार धारा थी किन्तु आज के परिपेच्छ में इसका बदलता हुआ रूप भी सामने आ रहा है और यह सवाल करता है कि क्या यह सकारात्मक दिशा में जा रहा है?

In today’s era the definition of Nationalism

आज के समय में राष्ट्रवाद कि परिभाषा को संकीर्ण होते देखा जा रहा है। देश हित को हिन्दू राष्ट्रवाद के नाम पर जोड़ दिया जाता है, गाय के नाम पर राष्ट्रवाद कि परिभाषा बनाई जा रही यह एक ऐसी भावना को पैदा कर रही जिसमे जाति और धर्म को आगे रखा जाता है लेकिन इससे एक वर्ग ऐसा भी है जो इससे परे सोचता है।

कुछ वर्षो में इस भावना में तेज़ी आयी है। ऐसा देखा जा रहा है कि लोकतंत्र के मूल्यों से  ऊपर राष्ट्रवाद को रख कर सत्ता चमकाई जा रही है। किसी भी देश कि सोच को बनाने में media का हाथ सबसे अधिक होता है और यह आज के इंटरनेट के युग में और भी बढ़ जाता है।

Age of media

मीडिया और  सरकार दोनों को पावर मिलती है लोगो से, इसलिए दोनों कि जवाबदेही लोगो से होनी चाहिए, मीडिया का काम है सवाल करना और उन सवालो के जवाब जनता तक पहुंचना लेकिन आज के समय में ऐसा लग नहीं रहा है। T.V. debate में सवालो का स्तर ही नहीं बचा। सवाल खोते जा रहे। असम की बाढ़ में कितने घर तबाह हो गए ? कितने लोग बाढ़ के बाद प्रभावित होंगे,जो बजट दिया गया है सरकार के द्वारा वह काफी भी है या नहीं , ऐसा आगे से न हो उसके लिए क्या कदम उठाये , lockdown में कितने लोग भूख से मर गए ? रोजगार पर बात नहीं होती, फिर से भूखमरी दस्तक दे सकती है क्या कोरोना में ? कोरोना में दवाई के लिए सरकार क्या कर रही ? और भी ऐसे ही हजारो सवाल हैं जो कि main stream media सरकार से, इन कुछ सालो से नहीं कर रही ।

मीडिया हाल के समय में कर क्या रही ? वह सवालो को दवा रही। दिनभर हिन्दू मुस्लिम डिबेट कर झूठे राष्ट्रवाद को खास लोगो के लिए बुन दे रही। अभी देश में फ्रांस से राफेल भेजे गए। लेकिन मीडिया को  ऐसा लगा जैसे चाइना से जंग जीत गए हो। किसी भी बड़े रिपोर्ट हाउस ने यह नहीं दिखाया कि असम का क्या हाल है इसके लिए जिम्मेदार कौन? प्रकृति , ऐसा जवाब भी आ जाता है तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए।corona से अब डेली 50000 मरीज सामने आ रहे। क्या सरकार के पास कोई अच्छा प्लान है? अब स्थिति बाकि देशो में सुधर रही है और हमारे यहां हालत और भी ख़राब होती जा रही। किन्तु 5 राफेल पूरी चाइना से जीत दिला देंगे भाव तो ऐसे दिखते हैं। लोगो में nationalism vs patriotism की भावना भी एक होती जा रही। राफेल पर इतनी खुसी तो मोदी जी को भी नहीं हुई होगी जितनी मीडिया को हो रही है।

सरकार क्या कर रही? ऐसा लग रहा सरकार मीडिया के जरिये हर सही को गलत और गलत को सही कर रही। किसी एक मुद्दे को दबाने के लिए दूसरा मुद्दा होता है अगर कुछ भी नहीं बचता सरकार के पास तो राष्ट्रवाद कि पुड़िया पुरे देश को दे दी जाती जैसे अभी rafael के मुद्दे ने बाकि सब मुद्दे दबा दिए। अगर यह नहीं होता तो कोई और मुद्दा आ जाता। मुद्दों कि कोई कमी नहीं है।

इसका प्रभाव क्या हो सकता ?

भारत कि अधिकांश जनसँख्या टेलीविज़न देखती है जो देखती है उस पर भरोसा भी किया जाता है अगर जागरूक लोग भरोसा न भी करे तो इनफार्मेशन का जाल उसे यह भरोसा दिला देता है कि जो चल रहा है वही सच है। अगर अधिकांश समय मीडिया के द्वारा हिन्दू-मुस्लिम और भारत-चीन, भारत-पाकिस्तान करके निकाल देंगे तो जनता को तो उग्र बना ही दिया जा रहा, ऐसा एहसास खुद में नहीं होगा। आपको इसका एहसास भी नहीं होता कि आप उग्र राष्ट्रवाद के समर्थक हो गए है। इसका चुनाव खुद को करना है कि कैसे सही nationalism define किया  जाये? या  सही Nationalism Definition को दिया जाये ?

    “Is media a slow poison that’s altering our reality”

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