MSP क्या है(MSP kya hai)?

MSP kya hai:

बाजारवाद की भूमिका को देखते हुए सरकार के द्वारा MSP सिस्टम को लागू किया गया। हाल ही में कृषि सुधारों को लागू करने हेतु केंद्र सरकार के द्वारा 3 कृषि कानूनों को लाया गया। किन्तु किसानों की सहमति इस कानून के प्रति नहीं बन पाने से सरकार के द्वारा इन तीनों कानूनों को वापस लेना पड़ा।

किसानों का मानना है कि केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों से जहाँ मंडी सिस्टम खत्म हो जायेगा तो साथ ही MSP सिस्टम को भी धीरे धीरे खत्म कर दिया जायेगा। वहीँ केरल राज्य के द्वारा सब्जियों के लिए भी MSP लागू करने की घोषणा की गयी।

MSP क्या है(MSP kya hai)?

MSP(न्यूनतम समर्थन मूल्य) वह व्यवस्था है। जो किसान को खेती की उपज के लिए पारिश्रमिक रूप में एक न्यूनतम राशि दिया जाना सुनिश्चित करता है। इसका भुगतान सरकार की एजेंसी द्वारा किसी विशेष फसल की खरीद करते समय किया जाता है।

MSP की शुरुआत 1960 के दशक के मध्य में की गयी थी। उस समय की स्थितियों को देखते हुए सरकार गेंहू और धान जैसी फसलों के उत्पादन को बढ़ाना चाहती थी ताकि देश की खाद्यान जरूरतों को पूरा करने में मदद मिल सके। ऐसा करने से देश में हरित क्रांति को प्रोत्साहन मिलता किन्तु किसान बिना किसी निश्चित लाभ की गारंटी के अधिक लागत वाली फसलों को उपजना नहीं चाहते थे।

इसमें किसानों की चिंता का कारण यह था यदि किसी फसल का उत्पादन बहुत ज्यादा हो जाता है तो उस फसल के अच्छे दाम नहीं मिल सकेंगे और उसकी लागत भी नहीं निकल सकेगी। किसानों की इन चिंताओं को देखते हुए सरकार ने 1964 में एल. के. झा. के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया। जिसका काम अनाजों की कीमते तय करना था। समिति की सिफारिश लागू होने के बाद पहली बार 1966-67 में पहली बार गेंहू के लिए 54 रूपये प्रति क्विन्टल MSP को तय किया गया।

किन्तु गेंहू पर MSP को तय करने से किसान गेंहू की फसल उगाने पर अधिक जोर देने लगे लिहाजा अन्य फसलों की पैदावार कम होने लगी। इस स्थिति से बचने के लिए सरकार ने फिर धान, तिलहन, और दलहन जैसी फसलों पर भी MSP देना शुरू कर दिया।

वर्तमान में केंद्र सरकार 23 कृषि जिंसों के लिए MSP तय करती है। जिसमें 7 अनाज (धान, गेंहू, मक्का, बाजरा, ज्वार, रागी और जौ), 5 दालें(चना, अरहर, उड़द, मूंग और मसूर) 7 तिलहन(सरसों, मूंगफली, सूरजमुखी, सोयाबीन, सेसामम, सेफ्लोवर, और नाइजरसीड) और 4 जाणिज्यिक फसलें (कपास, गन्ना, कच्चा जूट, और कोपरा) शामिल हैं।

MSP से जुड़ी समस्यायें

  • MSP के कार्यान्वयन में सबसे बड़ी समस्या यह हैं कि सरकार के द्वारा गेंहू और धान के अलावा अन्य फसलों की बहुत कम मात्रा में या नाममात्र खरीद ही की जाती हैं और ऐसा भी नहीं हैं कि सरकार किसी वर्ष में धान और गेंहू की पूरी पैदावार की खरीद कर पाती हैं । 2019-20 के आंकड़े बताते हैं कि इस वर्ष में धान की कुल पैदावार लगभग 118 मिलियन टन के करीब हुई थी जिसका मात्र 43% ही सरकार के द्वारा खरीद की जा सकी थी। इसी प्रकार से अन्य दलहन और तिलहन फसलों की खरीद 5-10 प्रतिशत से अधिक नहीं थी।

गेंहू और चावल की खरीद का अन्य फसलों के मुकाबले अधिक होने का कारण यह हैं कि सरकार Public Distribution System (PDS)  प्रणाली के माध्यम से गेंहू और चावल को अत्यंत कम दामों पर गरीबों को उपलब्ध कराती हैं ऐसे में अन्य फसलों की आवश्यकता नहीं होती हैं।

  • MSP तय करने के बाद सरकार स्थानीय एजेंसियों के माध्यम से फसलों की खरीद करके Food Corporation of India(FCI) और National Agricultural Cooperative Marketing Federation of India Ltd.(NAFED) के पास अनाज का भण्डारण करती हैं।
  • MSP की एक समस्या यह हैं कि यह कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं। Commission for Agricultural Costs & Prices(CACP) आयोग के माध्यम से किया जाता हैं। CACP की अनुशंसाएँ सरकार के सलाहकारी होती हैं। MSP केवल एक सरकारी नीति हैं जो प्रशासनिक निर्णय के रूप में लागू की जाती है।
  • गन्ना एक मात्र ऐसी फसल हैं जिसके लिए अलग से प्रावधान किये गए हैं। गन्ने की फसल के लिए कीमतों का निर्धारण आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत जारी किये गए गन्ना नियंत्रण आदेश 1966 द्वारा निर्धारित किया जाता हैं। इस आदेश के तहत गन्ने के लिए FRP का निर्धारण किया जाता हैं। जिसके भुगतान की जिम्मेदारी गन्ना खरीद के 14 दिनों के भीतर चीनी मीलों की होती हैं।

MSP में सुधार के लिए प्रयास

  • CACP अपनी मूल्य नीति रिपोर्ट में MSP को एक कानून बनाने का सुझाव दिया किन्तु इसकी चर्चा संसद द्वारा पारित तीनों नये कृषि कानूनों में नहीं की गयी। नए कानून का MSP से कोई खास सम्बन्ध नहीं है बल्कि इनका उद्देश्य किसानों और व्यापारियों को APMC मंडियों से बाहर कृषि उपज को खरीदने और बेचने की स्वतंत्रता प्रदान करने से है।
  • केरल राज्य ने एक कदम आगे निकलते हुए सब्जियों पर भी MSP को लागू किया है। यहाँ पर MSP का निर्धारण सब्जी की उत्पादन लागत से 20 फीसदी अधिक पर किया जायेगा और इसे नियमित रूप से संशोधन करने का प्रावधान भी किया गया है।

कृषि सुधारों का मुद्दा देश के आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक तीनों पहलुओं से जुड़ा हुआ है। सरकार को किसानों की आय का भरोषा देते हुए आय में बढ़ोत्तरी के उपाय करने चाहिए। आज भी ऐसे किसान है जिन्हे MSP क्या है(MSP kya hai)? इसके बारे में जानकारी नहीं है। MSP से फायदा उठा पाना उनके लिए दूर का विषय है। ऐसा देखा जाता है कि अधिकांशतः MSP का फायदा ज्यादातर बड़े किसान ही उठा पाते हैं। अर्थात सरकार के द्वारा ऐसे कदम उठाने चाहिए जिनके जरिये छोटे किसानों आर्थिक रूप से मजबूत किया जा सके।

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