Methane Gas in Hindi: इस साल ग्लास गो में COP26 जलवायु परिवर्तन सम्मलेन में भारत का प्रतिनिधित्व प्रधानमंत्री मोदी ने किया। इस सम्मलेन के शुरूआती मुद्दों में मीथेन गैस के उत्सर्जन में निरंतर हो रही वृद्धि पर चिंता व्यक्त की गयी। इस सम्मलेन में यूरोपियन संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका ने संयुक्त रूप से 2030 तक ग्रीनहाउस गैस मीथेन के उत्सर्जन में कटौती करने का संकल्प किया गया। इसके लिए दोनों देशों ने नेतृत्व करते हुए ग्लोबल मीथेन प्लेज को लांच किया। इस प्लेज पर 90 से अधिक देशों ने हस्ताक्षर किये।
इस सम्मलेन में विभिन्न देशों द्वारा कई मुद्दे उठाये गए। जिसमें वनों की कटाई, वन एवं भूमि का उपयोग जैसे मुद्दे शामिल किये गए हैं।
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मीथेन क्या है?(Methane Gas in Hindi)
आज के समय में दुनिया ग्लोबल वार्मिंग के कारण जिस समस्या का सामना कर रही है उसका 25% मीथेन गैस के कारण है। मीथेन एक ग्रीनहाउस गैस है। यह प्राकृतिक गैस का एक घटक है। चूंकि कि यह एक ग्रीन हाउस गैस है। ऐसे में वातावरण में इसकी बढ़ती उपस्थिति से पृथ्वी के तापमान वृद्धि हो रही है। मानव और प्राकृतिक स्रोतों सहित मीथेन के विभिन्न स्रोत हैं- मानवीय स्रोतों में जीवाश्म ईंधन के जलने, लैंडफिल में अपघटन और कृषि क्षेत्र में गतिविधियां, कोयला खनन, अपशिष्ट जल उपचार और औद्योगिक प्रक्रियाएं इसमें शामिल हैं। इसके अलावा तेल और गैस क्षेत्र सबसे अधिक योगदान कर्ताओं में शामिल हैं।
अमेरिकी एजेंसी नासा के अनुसार मीथेन के मानवजनित स्रोत मीथेन के 60% हिस्से के लिए जिम्मेदार है। जिसमें मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन का जलना, लैंडफिल और कृषि क्षेत्र जिम्मेदार है। इसके अलावा कोल बैड मीथेन गैस भी मीथेन का एक प्रकार है। इस प्रकार की मीथेन कोयले से दबी एक परत में भूमिगत होती है और इसे ड्रिलिंग करके निकाला जाता है।
ग्लोबल मीथेन प्लेज
वैश्विक मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिए इस प्लेज की शुरुआत की गयी है। इस प्लेज का उद्देश्य वर्ष 2030 तक मीथेन उत्सर्जन को 2020 के स्तर से 30% तक कम करना है। जलवायु परिवर्तन पर International Union of Pure and Applied Chemistry(IUPAC) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार पूर्व औद्योगिक युग के बाद से वैश्विक औसत तापमान में 1.0 डिग्री सेल्सियस की शुद्ध वृद्धि का लगभग आधा हिस्सा मीथेन से आता है। कार्बन डाई ऑक्साइड, और अन्य ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा के साथ मीथेन की मात्रा को भी तेज़ी से कम करना होगा।
जलवायु परिवर्तन में मीथेन की भूमिका
मीथेन ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन का लगभग 5 वां हिस्सा है और वातावरण को गर्म करने में CO2 की तुलना में 25 गुना अधिक शक्तिशाली है। मानव संबंधी गतिविधियों के कारण वातावरण में मीथेन सांद्रता 2 गुने से ज्यादा हो गयी है भले ही मीथेन कार्बन डाई ऑक्साइड की तुलना में अल्प कलिक गैस है किन्तु यह इससे अधिक शक्तिशाली है। ऐसे में मीथेन की मात्रा कम करने से एक सकारात्मक लक्ष्य को पाया जा सकता है।।
अमेरिका और यूरोपियन यूनियन का यह कदम इस लिहाज़ से भी महत्वपूर्ण है। मीथेन गैस के उत्सर्जन के लिए प्राकृतिक और मानवजनित दोनों स्रोतों ही जिम्मेदार हैं। मीथेन को ऊर्जा स्रोत के रूप में प्रयोग किया जा सकता है और अधिक कार्बन उत्सर्जन करने वाले ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता को कम किया जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी IEA(International Energy Agency) के मुताबिक मीथेन का वायुमंडलीय जीवनकाल बहुत कम है। किन्तु वातावरण में रहने के दौरान यह अधिक ऊष्मा को अवशोषित करती है। इसलिए यह अधिक खतरनाक मानी जा रही है।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक वातावरण में मुक्त होने के 20 साल बाद मीथेन की ग्लोबल वार्मिंग क्षमता कार्बन डाई ऑक्साइड से लगभग 80 गुना अधिक दर्ज की जाएगी। जीवाश्म ईंधन के उत्पादन वितरण और उपयोग से सालाना लगभग 110 मिलियन टन मीथेन उत्सर्जित होने का अनुमान है। IEA के द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार 75% मीथेन उत्सर्जन को आसानी से कम किया जा सकता है। इसमें 40 प्रतिशत मीथेन ऐसी है जिसे बिना किसी लागत के भी कम किया जा सकता है।
मीथेन उत्सर्जन में भारत की स्थिति
भारत शीर्ष मीथेन उत्सर्जन देशों में शामिल है। इसका कारण भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था और मवेशियों की बड़ी आबादी है। भारत मीथेन को काबू करने और इसे उपयोग में लाने की योजना पर कार्य कर रहा है।
मीथेन को ऊर्जा के स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया जा सके। भारत में मानव जनित मीथेन उत्सर्जन तेज़ी से बढ़ रहा है। कोरोना के समय में आर्थिक गतिविधियों के थमने से कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर तो गिरा है किन्तु मीथेन की मात्रा रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गयी थी।
भारत के द्वारा इस प्लेज में हिस्सा लेने का कोई आधिकारिक कारण नहीं बताया गया है। किन्तु जानकारों का मानना है कि इस प्लेज में हिस्सा लेने भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रतिबंध के रूप में भी हो सकता है। जो अर्थव्यवस्था के लिए सही नहीं होगा। भारत द्वारा किया जाने वाला व्यापार WTO के नियमों के अनुसार ही होता है। भारत इसका सदस्य है। चुकि भारत एक विकासशील देश है अतः यह उसके विकास की प्रक्रिया में बाधक हो सकता है।
अगर भारत इस मीथेन प्लेज को मान्यता देता है तो ऐसे में भारत को कई नियम कानूनों में बदलाव की जरुरत होगी। सरकार आर्थिक और बुनियादी ढांचे के विकास को प्रोत्साहित करने का प्रयास कर रही है। इसके मध्यनजर भारत पर एक जिम्मेदारी यह बढ़ जाएगी कि उसे वन आच्छादन क्षेत्र को बढ़ाना होगा इससे जलवायु परिवर्तन से निपटा जा सकेगा। भारत का लक्ष्य है भूमि के 1/3 भाग पर वृक्षों तथा वनों को लगाना है जो अभी तक लगभग 22% है।
भारत एक कृषिप्रधान देश है जहाँ की अधिकांश जनसँख्या कृषि पर निर्भर है। इसके साथ ही डेरी और पशुपालन भारत में बड़े स्तर पर किया जाता है। इस लिए भारत तत्कालीन कोई भी निर्णय लेने से बच रहा है।
भारत को जलवायु परिवर्तन के खतरों से बचाने के लिए कार्बन डाई ऑक्साइड और मीथेन को 45% तक कम करना होगा। इसके लिए आधुनिक तकनीक की सहायता ली जनि अनिवार्य है। मीथेन के उत्सर्जन को कम करने के लिए कृषि को ध्यान में रखकर रणनीति बनायी जानी चाहिए। मीथेन(Methane Gas in Hindi) के उत्सर्जन को कम करने से स्वास्थ्य, साँस और अस्थमा जैसी बिमारियों को भी कम किया जा सकता है।