लोनार लेक वैज्ञानिकों के लिए रहस्य(Lonar lake in hindi)

लोनार लेक(Lonar lake in hindi) दुनिया की खारे पानी की एकमात्र ऐसी लेक है जो क्रेटर उल्कापिंड के टकराने से बनी है। यह लेक महाराष्ट्र में स्थित है। इस लेक की भौगोलिक रचना ऐसी है कि नासा और इसरो के वैज्ञानिक भी इस लेक के रहस्यों को समझने का प्रयास कर रहे हैं।

लोनार लेक की आयु के विषय में अंदाजा लगातार बदलता रहता है किन्तु फिर भी इसे लगभग 52000 साल पुराना तो माना जाता है। वैज्ञानिकों के हिसाब से यह एक ऐसी जगह है जो मंगल और चन्द्रमा पर बने क्रेटर्स को समझने के लिए जरुरी साबित हो सकती है। यहाँ की खोजबीन से कुछ ऐसे तथ्य प्राप्त हुए हैं जो उनकी खोज में जरुरी हो सकते हैं। हालाँकि भारतीय संस्कृति के हिसाब से इस जगह का अपना महत्व है। जिसके पीछे कई धार्मिक कहानियां भी जुड़ी हुई हैं।

लोनार लेक(Lonar lake in hindi)

यह लेक महाराष्ट्र के बुलधाना जिले में स्थित है। इस लेक को Geological Survey of India ने Geological Heritage का दर्जा दिया है। इस लेक का लोनार नाम लोनासुर राक्षस के नाम पर रखा गया है। यह पृथ्वी पर मौजूद अकेला ऐसा क्रेटर(गड्ढा) है जो तेज़ गति से किसी पिंड के टकराने से बना है। यह क्रेटर बेसाल्टिक चट्टान में बना हुआ है।

(क्रेटर- साधारणतः उन जगहों को कहते हैं जो अंतरिक्ष में  तेज़ गति से घूम रहे उल्कापिंडों के टकराने से बनते हैं। पृथ्वी की तुलना में चाँद पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव बहुत कम होने से उल्का पिंड बहुत आसानी से चन्द्रमा के वातावरण में प्रवेश कर जाते हैं। इसी वजह से चन्द्रमा की सतह पर अधिक गड्ढे दिखाई देते हैं।)

लोनार क्रेटर के विषय में वैज्ञानिकों का मानना है कि कोई उल्कापिंड ध्वनि की रफ़्तार से 42 गुना तेज़ी से पृथ्वी से टकराया था। इस पिंड का वजन लगभग 2 मिलियन टन रहा होगा। इस वजन और रफ़्तार के कारण पृथ्वी से टकराने पर 1.5 किलोमीटर लम्बा और 150 मीटर गहरा गड्ढा बन गया। जिसके आसपास समय के साथ जंगल बन चुका है। इस लेक में पानी के दो अलग अलग pH है अर्थात लेक की ऊपरी सतह पर पानी 7pH तथा लेक के अंदर की ओर 11 pH का पानी मिलता है जो पीने योग्य नहीं रहता है। यह लेक वनस्पति और जीव जंतुओं के लिहाज़ से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में कई ऐसे जीव पाए जाते हैं जो दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलते। जैसे मॉनिटर लिज़ार्ड, 

वैज्ञानिकों के लिए यह लेक इस लिहाज़ से भी खास कि कोई लेक एकसाथ क्षारीय और लवणीय कैसे हो सकती है। इस क्रेटर के कुछ क्षेत्र में कम्पास कार्य करना बंद कर देता है। यहाँ कुछ ऐसे सूक्ष्मजीव पाए जाते हैं जो कहीं और नहीं पाए जाते। इन्ही सूक्ष्म जीवों की वजह से लोनार लेक का रंग पिंक हो गया था। नदी के पिंक होने की इस घटना में वैज्ञानिकों ने पाया कि Haloarchea microbe के बहुत अधिक हो जाने के कारण यह लेक पिंक हो गयी थी। यह माइक्रोब खारे पानी में अधिक तेज़ी से फैलता है, गरमी तथा अन्य कारणों से लेक के खारे पानी में वृद्धि हुई जिस वजह से माइक्रोब के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा हो गयी।

पौराणिक महत्व

क्रेटर के मध्य में बनी इस लेक को भारतीय पौराणिक कथाओं से भी जोड़ा जाता है। वाल्मीकि रामायण में इस लेक को पंच अवसर की तरह बताया गया है।  कालिदास ने अपने प्रख्यात लेख रघुवंश में इस लेक को दर्शाया है। इस लेक के पीछे एक भगवन कृष्ण की कहानी भी प्रख्यात है। इस कहानी के अनुसार इस लेक के खारे पानी में लोनासुर नाम का एक राक्षस रहता था जिसे भगवान कृष्ण के द्वारा मारा गया। इस कहानी से प्रेरित होकर चालुक्य वंश के राजा ने दैत्य सुदन मंदिर बनवाया था। द्राविण शैली में बना यह मंदिर आज भी अपनी विशेष विरासत को बचाये हुए है।

लोनार लेक(Lonar lake in hindi) भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के लिए शोध का विषय है। इस लेक से इस प्रकार के पत्थर प्राप्त हुए हैं जो चन्द्रमा पर मिले पत्थरों के समान है। प्राकृतिक कांच के भी इस जगह से अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस जगह सरकार को द्वारा पर्याप्त संरक्षण देने की आवश्यकता है।

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