प्रकाश प्रदुषण(Light Pollution in Hindi), प्रदुषण का ऐसा स्वरुप है जिसे साधारण लोगों द्वारा प्रदुषण के रूप में स्वीकारा ही नहीं जाता है। ऐसा इसलिए भी हो सकता है क्यों कि इंसानों के लिए प्रकाश सुविधा के रूप में एक माध्यम है। किन्तु रात कृत्रिम प्रकाश की चकाचोंध प्रकृति के नियमों के विरुद्ध है। ऐसे बहुत से अध्ययन है जो यह साबित करते है कि पक्षी मृत्यु दर के लिए कृत्रिम लाइट सिस्टम बहुत हद तक जिम्मेदार है साथ ही यह रात्रिचर प्राणियों की जीवनशैली में बदलाव का भी कारण बन रहा है।
अध्ययन बनातें हैं कि प्रकाश प्रदुषण की शुरुआत कोई हाल की ही घटनाएं नहीं हैं बल्कि इसकी शुरुआत 1884 में हो गयी थी। जब प्रकाश प्रदुषण की वजह से Porzana carolina नामक वाटरबर्ड की मिसिसिपी घाटी में लाइट टावर से टकराने से मृत्यु देखी गयी थी।
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प्रकाश प्रदुषण क्या हैं?(Light Pollution in Hindi)
कृत्रिम प्रकाश का अत्यधिक मात्रा में उपयोग किया जाना प्रकाश प्रदुषण कहलाता है इसे और भी सरल रूप में कहे तो कृत्रिम प्रकाश का हमारे आसपास इतनी अधिक मात्रा में होना कि उसका प्रकृति पर नकारात्मक असर हो प्रकाश प्रदुषण कहलाता हैं।
अत्यधिक प्रकाश प्रदुषण के कारण कई अन्य प्रकार की समस्याएं भी सामने आती हैं। जैसे- रात में आकाश में तारों की चमक का धूमिल होना, खगोलीय अनुसंधान में बाधा उत्पन्न होना, पारिस्थितिक तंत्र को नष्ट करना, ऊर्जा की बर्बादी आदि।
प्रकाश प्रदुषण पर रॉयल कमीशन ऑन एनवायर्नमेंटल पॉल्यूशन ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि जीव प्राकृतिक प्रकाश के उतार चढ़ाव से प्रभावित होते हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रकाश का स्तर जीवों के भोजन, गतिविधि, उद्द्भव, मौसमी प्रजनन, प्रवास जैसी क्रियाओं को प्रभावित करता है। इसलिए रात में कृत्रिम प्रकाश की उपस्थिति वन्य जीवों के जीवन और उनके व्यवहार को प्रभावित करती है।
प्रकाश प्रदुषण के प्रभाव
कृत्रिम प्रकाश द्वारा वन्यजीवों के जुड़ी एक घटना अक्टूबर 2020 में फिलाडेल्फिआ में घटी, इस घटना में हज़ारों प्रवासी पक्षी इमारतों से टकराने से मर गए। इसी प्रकार अमेरिका के शिकागो शहर में प्रकाश प्रदुषण पर किये गए अध्ययन में पक्षी मृत्यु दर के लिए आर्टिफीसियल लाइट को बहुत हद तक जिम्मेदार माना गया है। यह अध्ययन इंटरनेशनल डार्क स्काई एसोसिएशन स्टेट द्वारा किया गया है। इस अध्ययन में अमेरिका के सभी शहरों में से शिकागो को पक्षियों के लिए सबसे अधिक जोखिम भरा बताया गया। शिकागो स्थित मैककॉर्मिक स्थान से ही अकेले 4000 से अधिक मृत पक्षियों को बरामद किया गया।
इसमें सबसे अधिक मौतें इमारतों में लम्बी रोशनी नुमा खिड़कियों से टकराने की वजह से होती है यह मृत्युदर शरद और बसंत ऋतु में 6 से 11 गुना तक बढ़ जाती है। पक्षियों को रात्रि में मार्ग खोजने में इमारतों में लगे शीशों की वजह से भ्रम उत्पन्न होता है और इस वजह से घरों से टकराने से उनकी मृत्यु हो जाती है।
ऐसा नहीं है कि कृत्रिम प्रकाश का असर केवल पक्षियों पर ही हो रहा है बल्कि इसका असर इंसान, पेड़ पौधे, समूचे जीवन चक्र पर पड़ रहा है। रात के समय का प्रकाश पौधों में प्राकृतिक photoperiod में बदलाव कर देता है। ऐसे किस्म के पौधों जो रात में खिलते हैं, या परागण करते हैं, कृत्रिम प्रकाश के कारण उनकी प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है।
उसी प्रकार रात में सक्रिय होने वाले जीव अपनी दैनिक क्रियाओं को रात के अनुसार शुरू करते हैं, जैसे- चमगादड़, उल्लू आदि। रात्रिचर प्राणी विचरण और शिकार के लिए मूनलाइट और स्टार लाइट का सहारा लेते हैं तथा कृत्रिम प्रकाश की वजह से इन जीवों के प्रजनन दर पर भी असर पड़ रहा है। समुद्री कछुए समुद्र के तटों पर अंडे देते हैं किन्तु शहरों की चमक धमक से यह अपने मार्ग से भटक जाते हैं।
प्रकाश प्रदुषण के घटक
- चकाचौंध(Glare)- अत्यधिक चमक जो कि दृष्टि-सीमा में रूकावट पैदा करे।
- प्रकाश अतिचार(Light Trespass)- प्रकाश का उस जगह पर होना जहाँ उसकी जरुरत न हो जैसे घरों के गेट पर बड़ी बड़ी लाइट का होना।
- स्काईग्लो(Skyglow)- आवासीय स्थानों पर रात में अत्यधिक चमक का होना स्काई ग्लो कहलाता हैं। यह अधिकांशः हाईवे लगी हुई टाइट, गाड़ियों की लाइट पर अथवा चमचमाती इमारतों की वजह से होता है।
- क्लटर(Clutter)- भ्रमित करने वाला प्रकाश स्रोतों का समूह।
समाधान के उपाय
प्रकाश प्रदुषण को नियंत्रित करने की जरुरत है। इसके लिए नियम और कानून बनाने चाहिए साथ ही बड़े स्तर पर जागरूकता अभियान चलाये जाने चाहिए।
रात के समय गैर जरुरी प्रकाश को बंद कर देना चाहिए ताकि जानवरों को प्रकाश प्रदुषण का कम से कम सामना करना पड़े।
वन क्षेत्रों, राजमार्गों और सड़क पर प्रकाश व्यवस्था के संबंध में उचित दिशा निर्देश लागू किये जाये साथ ही प्रमाणित प्रकाश स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा दिया जाये। कृत्रिम लाइट को इस प्रकार से लगाया जाये की उसकी रोशनी आसमान की ओर न होकर जमीन की ओर हो।
प्रकाश प्रदुषण(Light Pollution in Hindi) ने जानवरों की दृष्टि क्षमता को बाधित किया है और समय के साथ कृत्रिम प्रकाश का दायरा बढ़ता ही जा रहा है। रात्रिकालीन जानवरों के लिए दिशा निर्देशन का कार्य आसमान में चमकते तारे करते हैं जो कि प्रकाश प्रदुषण के कारण ओझल हो जाते हैं। अभी तो प्रकाश प्रदुषण को आमजन के द्वारा प्रदुषण के रूप में देखा भी नहीं जाता है। इसके लिए जागरूकता भी एक जरुरी उपाय हो सकता है।