इस लेख में LAC क्या है?(LAC kya hai)? तथा भारत और चीन से जुड़ी सीमाओं पर किन जगहों पर विवाद है आदि के विषय में जानने का प्रयास किया गया है।
The Line of Actual Control (LAC), भारत और चीन के बीच की सीमा रेखा को कहा जाता है। यह असल सीमा से अलग है। इस सीमा रेखा के हिसाब से Aksai Chin का भाग भारत के अंतर्गत नहीं आता जो कि भारत का ही भाग है। दोनों देशों के बीच विवाद की खबरे आती रही हैं इसका एक मुख्य कारण यह भी है कि अभी तक दोनों देशों के द्वारा आपसी सहमति के आधार पर सीमारेखा को नहीं खींचा गया।
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LAC शब्द(LAC kya hai)
इस शब्द का इस्तेमाल 1959 के Zhou Enlai के द्वारा पंडित नेहरू को लिखे गए पत्र में किया गया था। LAC को 1962 में अनौपचारिक युद्धविराम रेखा के रूप में बनाया गया और 1993 द्विपक्षीय समझौता के तहत आधिकारिक तौर पर मान्यता प्रदान की गयी किन्तु कोई सरहदबंदी नहीं हुई।
भारत द्वारा LAC को 3488 km लम्बा माना जाता है। किन्तु चीन इसे सिर्फ 2000 km की लाइन मानता है। LAC को पहले सिर्फ वेस्टर्न सेक्टर की सीमा माना जाता था किन्तु 1990 के दशक में यह पूरे चीन क्षेत्र की सीमा के लिए उपयोग किया जाने लगा।
LAC का विभाजन
LAC को तीन भागों में विभाजित किया गया है।
- Eastern Sector
- Middle sector
- Western sector
Eastern sector(मैक मोहन लाइन)
यह ब्रिटिश इंडिया और तिब्बती सरकार के बीच 1914 के शिमला एग्रीमेंट के तहत खींची गयी रेखा है। जिसमें हिमालय, असम और बर्मा शामिल था। यह रेखा 890 km लम्बी है जो ईस्टर्न भूटान से लेकर बर्मा बॉर्डर के Isu-Razi-Pass तक है। जिस पर विवाद है।
चीन मैकमोहन लाइन के एग्रीमेंट को नहीं मानता उसका तर्क है कि शिमला एग्रीमेंट में चीन कि भागीदारी नहीं थी और इस प्रकार के बॉर्डर लाइन को तय करने के लिए तिब्बत किसी भी अधिकार के अंतर्गत नहीं आता, तिब्बत हमेशा से चीन का भाग था। इसलिए चीन ही बॉर्डर एग्रीमेंट में निर्णय ले सकता है। इस सीमा विवाद में चीन पूरे अरुणाचल प्रदेश को ही अपना क्षेत्र बताता है।
LAC को लेकर ईस्टर्न क्षेत्र में विवाद कम होता है। क्यों कि 1959 में मैकमोहन लाइन को Zhou Enlai के द्वारा LAC माना गया था। मैकमोहन लाइन को भारत अपनी बॉर्डर लाइन मानता है जिसे चीन स्वीकार नहीं करता है।
अरुणाचल के क्षेत्र में स्थित Tawang , Longju , Asaphila को लेकर मुख्य विवाद रहता है। हालाँकि चीन द्वारा पूरे अरुणाचल प्रदेश के क्षेत्र पर अपना दावा किया जाता है। जो बुनियादी रूप से पूरी तरह गलत है।
- Asaphila: यह 100 sq km का फारेस्ट और माउंटेन क्षेत्र है। जो LAC के पास Subhansari के ऊपरी क्षेत्र में है। 1962 के युद्ध में यह मुख्य क्षेत्र था जहाँ चीन के द्वारा हमले हुए। asaphila अभी किसी के सीमा क्षेत्र में नहीं है इसी वजह से यहां सेनाओं के बीच झड़पें होती रहती हैं।
- Longju: यहाँ 1962 से चीन का कंट्रोल हैं यह migyitun से 2.5 km दक्षिण में है। migyitun भारत चीन बॉर्डर की ऐतिहासिक पोस्ट थी। Longju पहले भारत की पोस्ट थी जिसे चीन के द्वारा कब्ज़ा कर लिया गया जिसे भारत द्वारा वापस नहीं लिया गया। बल्कि भारत ने 10 km दूरी पर Maja पर एक बॉर्डर पोस्ट का निर्माण किया।
- Tawang: Namkachu River valley तवांग से लगभग 60 km दूर है। यहाँ से 1960 की लड़ाई शुरू हुई। इस क्षेत्र को चीन अपना अंग बताता है। Sumdorang Chu Valley भी तवांग में है जिसे चीन के द्वारा 1986 की झड़प में कब्ज़ा कर लिया। इसके खिलाफ भारत ने Yangste of Tawang पर कब्ज़ा कर लिया।
Middle Sector
यह लद्दाख के Demchok से लेकर नेपाल के बॉर्डर तक 545 km का लम्बा क्षेत्र है। जो सबसे कम विवादित क्षेत्र है। यहाँ का बाराहोती प्लेन जो कि उत्तराखंड के चमोली जिले में पड़ता है। यहां सैनिकों की स्थिति को लेकर विवाद रहता है। कभी कभी गस्त के समय एक दूसरे के क्षेत्र में जाने की घटनाएं विवाद का कारण बनती हैं।
Western Sector
यह काराकोरम पास से लेकर डेमचोक तक है। यह क्षेत्र विवाद का मुख्य केंद्र है। अक्साई चीन यहाँ का सबसे बड़ा विवादित क्षेत्र है। जो 3800 sq km में फैला है। भारत के आधिकारिक मैप में यह लद्दाख के क्षेत्र में पड़ता है। लेकिन चीन 1950 से इसे अपना क्षेत्र बताता है। चीन का नेशनल हाईवे जो तिब्बत को जोड़ता है, अक्साई चीन से होकर गुजरता है। इसके बनाने भारत द्वारा घोर विरोध किया गया।
1962 के युद्ध के बाद चीन के द्वारा अक्साई चीन के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया गया। अभी अक्साई चीन का क्षेत्र चीन के Hotan प्रान्त के अंतर्गत नियंत्रित किया जाता है।
Demchok: यह लेह में स्थित एक मिलिट्री बेस है। जो लगातार समाचारों में रहता है। Nov 2017 में यहाँ सिचाई नहर के निर्माण को लेकर दोनों देशों में संघर्ष की स्थिति बनी।
Galwan Valley: 15 june 2020 को भारत और चीन के बीच सबसे बड़ी झड़प हुई। जिसमें कई भारतीय सैनिक शहीद हो गए।
भारत का मत
भारत ने 1959 और 1962 के चीन के LAC Version को नामंजूर कर दिया। भारत द्वारा कहा जाता है कि LAC बहुत से बिंदुओं का समूह है जिसे कई तरीके से लाइन के रूप में जोड़ा जा सकता है। और चीन इसी बात का फायदा उठाकर विवाद को जन्म देता रहता है।
भारत LAC को 1962 के पहले की स्थिति के हिसाब से खींचे जाने की बात करता है। और LAC को एक पूरी सीमारेखा होनी चाहिए न कि मैप में दर्शाये गए कुछ बिंदु। इस पूरी लाइन में सबसे मुख्य वेस्टर्न सेक्टर है जो ऐतिहासिक और भौगोलिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
वेस्टर्न सेक्टर के अक्साई चीन क्षेत्र में विवाद
अक्साई चीन रणनीतिक तोर पर मुख्य भाग है। इसकी ऊंचाई 17000 फिट है। यह चीन को वेस्टर्न सेक्टर में शक्तिशाली स्थिति प्रदान करता है। इस स्थिति का मुख्य कारण, इस क्षेत्र को लेकर इतिहास में कोई फॉर्मल एग्रीमेंट नहीं था। Indian Express की रिपोर्ट के अनुसार अक्साई चीन 19 वीं शताब्दी में ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन था। किन्तु ब्रिटिश इंडिया में नहीं, उस समय जम्मू कश्मीर एक रियासत था।
1865 Johnson Line को लाया गया जिसने अक्साई चीन को भारत में लाया और इस लाइन जम्मू कश्मीर के राजा ने स्वीकार कर लिया लेकिन इस लाइन के प्रस्ताव को चीन के सामने नहीं रखा गया।
1895 में Mc.Cartney-MacDonald लाइन को लाया गया। और इसमें अक्साई चीन का भाग चीन के पास चला गया। इस प्रस्ताव को चीन के समक्ष रखा गया जिस पर चीन की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गयी। इसलिए 1947 तक यहाँ की सीमा रेखा किसी भी प्रकार से तय नहीं की गयी। और भारत 1865 की Johnson लाइन का पालन करता रहा।
1954 में पंडित नेहरू के द्वारा भारतीय सीमा को मैप में दिखाने का आर्डर दिया गया। इसी समय चीन के द्वारा वेस्टर्न रोड बनाना शुरू किया गया जिसे अक्साई चीन से होकर गुजरना था। भौगोलिक स्थिति बहुत दुर्गम होने के कारण भारत को इस बारे में (1957) देर से पता चला। 1958 से चीन के द्वारा उसके कई मैपों में इसे दिखाया गया। जिसके खिलाफ भारत ने आवाज उठायी। जो 1962 के युद्ध का एक कारण बना।
चीन के द्वारा कहा गया कि वह केवल Mc.Cartney-MacDonald लाइन को मानता है। क्यों कि ब्रिटिशर्स ने उसी को चीन के सामने प्रस्तुत किया था।
1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में चीन ने लद्दाख के कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद चीन ने 21 Nov 1962 को unilateral Ceasefire की घोषणा कर खुद की सेना को LAC से 20 km अंदर कर लिया। Zhou Enlai की LAC लाइन को नेहरू ने स्वीकार नहीं किया। किन्तु इसके बाद चीन और भारत के बीच समय समय पर बढ़ते टकराव को रोकने के लिए 1993 में agreement on the maintenance of peace and tranquility के तहत LAC को आधिकारिक रूप से मान्यता दी गयी। लेकिन इसमें भी पारदर्शिता नहीं थी।
1996 में दोनों देशों के बीच Map-Exchange की बात हुई ताकि LAC के पास सैन्य संरेखण(military alignment) को सही रूप में किया जा सके। यह मैप 2001 में सिक्किम में बदले (exchange) गए। वेस्टर्न सेक्टर में इस प्रकार से कोई मैप नहीं बदले गए। और 2001 के बाद दोनों देशों के द्वारा सभी प्रयास बंद कर दिए गए।
2013 में दोनों देशों के मध्य Daulat beg oldi टकराव सामने आया। इसके बाद दोनों देशों के बीच Border Defence Corporation पर हस्ताक्षर किये गए। ताकि सेनाओं के गस्त करते समय कोई armed conflict न हो।
जानकारों का मानना है कि चीन सीमा विवाद को जानबूझ कर बनाये रखना चाहता है। ताकि भारत के साथ उसकी सौदेबाजी की शक्ति खत्म न हो।
LAC क्या है?(LAC kya hai)? इस पर हमारी जानकारी आपको कैसी लगी कमेंट कर आप बता सकते हैं। या आपका कोई सवाल है तो वह भी लिख सकते हैं धन्यवाद्!