Labour Laws of india 2020 क्या हैं ?

भारत सरकार की तरफ से श्रम कानूनों में अदलाव किये गए हैं यह बदलाव ऐसे समय पर किए गए हैं जब देश तीव्र आर्थिक संकट से जूझ रहा है। इस आधार पर labour laws का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता हैं।

इसके अलावा भी कोरोना महामारी में श्रमिक वर्ग का हाल, जो देश के सामने आया उस लिहाज से भी भारत के श्रम कानूनों(labour laws of india) के लिए लेबर लॉज़ में बदलाव जरुरी है। इसी प्रक्रिया में-

23 सितम्बर को लोकसभा के द्वारा 3 नए श्रम संहिताओं (Labour codes) को पारित किया गया।

  1. औद्योगिक संहिता विधेयक 2020 (Industrial Code Bill 2020)
  2. सामाजिक सुरक्षा संहिता विधेयक 2020 (social security code Bill 2020)
  3. व्यावसायिक सुरक्षा, स्वस्थ्य तथा कार्य स्थिति संहिता विधेयक 2020 (Occupational safety Health and working conditions code Bill 2020)

इन तीनों विधेयकों में क्या कहा गया है? यह जानना आवश्यक हैं इसके बाद इन्हे समझना आसान होगा।

भारत के श्रम कानूनों(labour laws of india) में बदलाव के लिए विधेयक

1. औद्योगिक संहिता विधेयक 2020

इस विधेयक के अंदर किसी भी इंडस्ट्रीज के अंदर standing order को मानने के लिए 100 लोगों की संख्या होनी चाहिए थी जिसे अब 300 workers की संख्या में बदल दिया गया है। अर्थात अब किसी भी इंडस्ट्री में 300 लोगों तक किसी प्रकार का standing order को मानने की आवश्यकता नहीं होगी।

Industrial Employment (Standing Orders) Act 1946 के अनुसार पहले कोई भी ऐसी इंडस्ट्रीज जहाँ 100 या 100 से अधिक वर्कर काम करते थे। उस इंडस्ट्रीज को साफतौर पर यह बताने की आवश्यकता होती थी कि उसका आचरण (conduct), स्थायी निर्देश, नियम क्या रहेगें? अब इसी को बढ़ाकर 300 कर दिया गया है। इस सीमा तक कोई भी standing Order अपनाने की जरुरत नहीं है।

इस स्टैंडिंग आर्डर उन्ही इंडस्ट्रीज पर लागू होगा जहाँ 300 या इससे अधिक वर्कर काम कर रहे होंगे अथवा पिछले एक साल में किसी दिन 300 या 300 से अधिक वर्कर ने काम किया है।

पहले किसी भी ऑर्गनाइज़ेशन को 100 से अधिक वर्कर्स हायरिंग या फायरिंग के लिए सरकार से पूछना पड़ता था अब इस संख्या को 300 से अधिक कर दिया गया है। अर्थात 300 वर्कर्स को कभी निकाला या लिया जा सकता है।

अब किसी भी विवाद पर मध्यस्थता को अपनाने की बात कही है एवं इंडस्ट्रीज के किसी भी व्यक्ति द्वारा हड़ताल करने की स्थिति में 60 दिन पहले नोटिस देना होगा और यदि ऐसा कोई मामला ट्रिब्यूनल  में चल रहा है तो भी उसे 60 दिन पहले नोटिस देना होगा। अगर ट्रिब्यूनल द्वारा फैसला आ जाता है तो  भी उसके 60 दिन बाद ही हड़ताल की जा सकती है।

इस बिल के मुद्दे:

300 वर्कर्स को कभी भी निकाला जा सकता है और कभी भी लिया जा सकता है। इससे वर्कर्स के हित प्रभावित किये जा सकते है कंपनी के द्वारा अपने फायदे के लिए मनमाने ढंग से कदम उठाया जा सकता है।

अगर कोई व्यक्ति आवाज उठाता भी है तो अब हड़ताल करने के लिए 60 दिन पहले नोटिस देना होगा इस नियम से कंपनी के पास पर्याप्त समय मिलेगा कि वह वर्कर्स की मांग को दबा कर मुद्दे को भटका सकेगें। यह एक तरीके से वर्कर्स के हड़ताल के हक़ को छीनने जैसा है एवं असुरक्षा को बढ़ाने वाला है।

2.सामाजिक सुरक्षा संहिता विधेयक 2020 (social security code Bill 2020)

इस बिल में कहा गया है कि एक National Social Security Board बनाया जायेगा जिसका काम वर्कर्स को अलग अलग बाँट कर जैसे- unorganised worker, gig workers , platform workers के लिए सरकार के द्वारा स्कीम बनाने में सहायता करना होगा।

(Gig Worker- इस शब्द से जुड़ा हुआ एक दूसरा शब्द है जिसे gig economy कहा जाता है यह एक तरीके का फ्री मार्किट सिस्टम होता है जहाँ पर organization में टेम्पररी पोजीशन जो होती है वह ऑफर की जाती है। गिग शब्द का प्रयोग ऐसी जॉब के लिए किया जाता है जो एक निश्चित समय के लिए ही की जाती है।)

इस बिल में यह भी कहा गया है कि वह कर्मचारी जो gig workers को रोजगार दे रहे हैं। उन्हें अपनी सालाना कमाई का 1-2% सोशल सिक्योरिटी में देना होगा और यह 5% से अधिक नहीं हो सकता जो उन्होंने अपनी gig workers and platform workers को दिया हैं।

3.व्यावसायिक सुरक्षा, स्वस्थ्य तथा कार्य स्थिति संहिता विधेयक 2020 (Occupational safety Health and working conditions code Bill 2020)

इस बिल के अंतर्गत कोई वर्कर एक राज्य से दूसरे राज्य में जाकर वह 18000 रूपये तक कमा रहा है तो इसे inter-state migrant worker कहा जायेगा।

इसके तहत एक नियम को ख़तम कर दिया गया है जिसके तहत worker कंस्ट्रक्शन साइड पर रहने के लिए कच्चा मकान बना लेते थे। अब किसी एक वर्कर को अपने घर से कंस्टक्शन साइड पर आने तक का खर्चा कर्मचारी के द्वारा दिया जाया करेगा।

भारत के श्रम कानूनों(labour laws of india) में सुधार

  • कठोर और पुरातन श्रम कानूनों में संशोधन आज तक सिर्फ नीतियों में ही रहा है। कोरोना के समय मजदूरों के घर पलायन की स्थिति पूरे देश ने देखी है।
  • आज तक तो ऐसा ही देखा गया है कि श्रम सुधार की प्रक्रिया सिर्फ कंपनी में वर्कर्स के निकालने और उन्हे काम पर रखने तक ही सीमित रही है। जिसमें सरकार की मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती।
  • कोरोना ने लेबर लोस की असली हकीकत को उजागर किया जिस पर सरकार के द्वारा आज तक कार्य नहीं किया गया। उन्हें basic safety nets भी उपलब्ध नहीं है। कोरोना संकट में मजदूर वर्ग में जो अविश्वास पैदा हुआ है। उसे फिर से बहाल कर पाना कठिन कार्य है।
  • वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा और संरचनात्मक विकास सरकार के द्वारा उपलब्ध जमीनी स्तर पर होनी चाहिए।
  • वास्तव में व्यावसायिक उतार चढ़ाव से निपटने के लिए फर्मों को अधिक लचीलापन प्रदान करने की आवश्यकता है। हालाँकि 300 से कम श्रमिकों वाले फर्मों के लिए स्थायी आदेशों (standing order) की समाप्ति (जिसके दायरे में प्रायः सभी फर्म आ जाते हैं) अधिकांश संगठनों में श्रमिकों के मूल अधिकारों को प्रभावहीन करने के सामान हैं, जिससे श्रमिकों की सौदेबाजी की शक्ति प्रभावित होती है

सरकार के द्वारा जो कदम उठाये गए है यह कितना दूरगामी साबित होंगे यह तो समय के साथ ही पता चल सकेगा जब असल में कानून का अनुपालन होगा। वैसे भारत के श्रम कानूनों(labour laws of india) को लेकर आज तक कोई नीतिगत बड़े कदम उठाये नहीं गए जिससे कि वह अधिक बेहतर जिंदगी की और बढ़ सकें।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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