Lab Grown Meat के विषय में लोगों को काफी कम जानकारी है। इसके पीछे बहुत सी भ्रांतियां भी है। इन्ही सब विषयों को जानने की कोशिश इस आर्टिकल में की गयी है।
Lab Grown Meat को कई नामों से जाना जाता है। जैसे- इसे lab meat , synthetic meat , culture meat , cell based meat के अलावा भी कई अन्य नामों से जानते है।
ऐसा विभिन्न देशों की इंडस्ट्रीज ने अपनी सुविधा के अनुसार इन नामों को रख लिया है। जो अब साधारण रूप से प्रचलन में है। सिंगापुर दुनिया का पहला देश है जहाँ पर Lab grown meat को मंजूरी दे दी गयी है। यहां पर US की एक बहुत बड़ी कम्पनी है- Eat Just , इस कंपनी को ही सिंगापुर फ़ूड एजेंसी के द्वारा मंजूरी दी गयी है। यह कंपनी अब culture meat को सिंगापुर में बेच सकती है। इस कंपनी के द्वारा बाजार में इसे Good Meat कहा जा रहा है, जो कि इस मीट का ही नया नाम है।
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Lab Grown Meat होता क्या है?
इस मीट को बनाने में किसी जानवर को मारा नहीं जाता, किसी जानवर को तड़पाया नहीं जाता। इस प्रक्रिया में मीट को किसी जानवर की सेल से in vitro cell culture के जरिये लैब में बनाया जाता है। इसको और साधारण भाषा में इस प्रकार से समझ सकते हैं, regenerative medicine में tissue engineering techniques का इस्तेमाल किया जाता है। जब कोई अंग क्षतिग्रस्त हो जाता है तो उसे फिर से बनाने के लिए स्टेम सेल इंजीनियरिंग टेक्निक्स का इस्तेमाल किया जाता है। इसी समान प्रकार से लैब मीट को भी बनाया जाता है।
इसका पहली बार प्रचलन Jason Matheny के द्वारा सन 2000 के करीब किया गया था किन्तु आने वाले 10 साल तक इस पर कोई गौर नहीं किया गया 2012 में इस पर चर्चा प्रारंभ हुई। और फिर यह लोग की जानकारी में आना शुरू हुआ।
Lab Grown Meat की आवश्यकता क्यों?
इस विषय पर व्यक्ति के दो पक्ष हो सकते हैं। एक पक्ष तो नैतिक हो सकता है। क्यों कि इस प्रक्रिया में जानवर को किसी प्रकार से प्रतारणा नहीं दी जाती उसे मारा नहीं जाता। किसी भी जानवर के tissue से stem cell का उपयोग कर लैब में एक लम्बी प्रक्रिया के बाद culture meat को प्राप्त किया जा सकता है।
दूसरा कारण यह है कि कोरोना महामारी का इंसानों में फैलाने का कारण, किसी न किसी जानवर के मीट को खाने को ही माना जाता है। इससे पहले भी कई ऐसी बीमारियां हो चुकी हैं जो जानवरों के मीट को खाने से हुई हैं। कोरोना महामारी ने लोगों के मन में मीट के सेवन के प्रति एक डर पैदा किया है। इस कारण भी लैब मीट को अपनाया जा रहा है।
एक कारण यह भी है जब किसी जानवर से मीट प्राप्त किया जाता है तो slaughterhouse में साफसफाई का ज्यादा ध्यान नहीं रखा जाता। मीट प्राप्त करने की प्रक्रिया नैतिक है या नहीं , किसी प्रकार की दवा का इस्तेमाल तो नहीं किया गया। यह कारण भी हैं जो लैब मीट को अपनाने में सकारात्मक नजरिया देता है।
Lab Grown Meat से फायदे
इस मीट के द्वारा ज्यादा से ज्यादा लोगों का पेट भरा जा सकता है। और यह पारम्परिक मीट का बेहतर विकल्प है। लैब मीट को प्राप्त करने में किसी प्रकार की जीव हिंसा नहीं होती है। लैब मीट का प्रोडक्शन हमारे पर्यावरण को भी साफ और स्वच्छ रखेगा।
वैज्ञानिकों का मानना है कि 1 KG मीट को प्राप्त करने के लिए 9000 litres पानी की आवश्यकता होती है। जबकि synthetic meat का 1 KG प्राप्त करने के लिए मात्र 94 litres पानी की आवश्यकता होती है। यह प्रकृति पर्यावरण के लिहाज से भी अच्छा है। इससे ग्लोबल वार्मिंग की समस्या में भी कमी आएगी। USA का Good Food Institute(GFI) के द्वारा एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी है जिसमें कहा गया है कि लैब मीट को अपनाने से nutrient Pollution में 94%, climate change emissions में 74-87%, भूमि के प्रयोग में 95%, की कमी आएगी।
GFI, USA का एक NGO है जिसे 2016 में बनाया गया था यह NGO , synthetic Meat के उपयोग को बढ़ावा दे रहा है।
Lab Grown Meat में बाजार
GFI की ही एक रिपोर्ट में 2019 में यह कहा गया था कि 55 कंपनियां ऐसी है जो लैब मीट पर कार्य कर रही हैं। जिसमें भारत की delhi based company clean Meat , turkey की Biftek , netherlands की meatable , ऐसी बहुत सी कंपनी हैं जो बाजार में आने का प्रयास कर रही हैं। अभी तक तो सिंगापुर ही अकेला देश हैं जहाँ लैब मीट को मंजूरी मिली है।
चुनौतियां
किसी भी देश की सरकार के द्वारा इसके पीछे की चुनौतियों को भी ध्यान में रखना होगा। भविष्य में जब लैब मीट की मांग बढ़ेगी अन्य देशों के द्वारा भी मंजूरी मिलने लगेगी। इस स्थिति में कंपनियों के बीच होड़ सी लग सकती है। ऐसी स्थिति के लिए सरकार के द्वारा कंपनियों के लिए मानक तय किये जाने चाहिए। जिस विधि का प्रयोग करके लैब मीट बनाया जाता है उस विधि से तो किसी भी प्रकार का Lab Grown Meat बनाकर कंपनियों के द्वारा बेचा जा सकता है। इस विधि में प्राकृतिक नियमों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।