कृषि विधेयक 2020: किसानों के द्वारा विरोध, कितना फायदा कितना नुकसान ?

सरकार की तरफ से कोरोना काल के समय किसानों के लिए जून महीने में एक अध्यादेश लाया गया। चूँकि अब संसद चालू हो चुकी है तो सरकार इन अध्यादेशों को कानून  की सकल देने में लगी हुई है जिन्हे सरकार के द्वारा लोकसभा से पास भी करा लिया गया है और अब राज्य सभा से पारित कराने की बारी है। इन कृषि विधेयक 2020 में शामिल है-

  • कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020
  • मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता
  • कृषि सेवा विधेयक 2020

हरियाणा और पंजाब के किसानों के द्वारा इन कृषि विधेयकों को किसान विरोधी बता कर विरोध प्रदर्शन किये जा रहे हैं। भारत के किसान की आय का संघर्ष आज तक रहा है। वहीँ सरकार का कहना है कि ये विधेयक किसानों कि आय दोगुनी करने में सहायक सिद्ध होगें।

किन्तु इस बात के इतर यह भी एक सच है कि किसानों को, जो देश का अन्नदाता है, अपने हक़ एवं आय के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहा है उस पर पुलिस के द्वारा लाठी चार्ज की जाती है।

कृषि विधेयक 2020 का विरोध क्यों?

  • किसानों का तर्क है कि सरकार कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक के जरिये APMC मंडियों को खत्म करने का प्रयास कर रही है।

अभी किसान अपनी उपज को APMC मंडियों में जाकर बेचता है मंडी में जो  बिचौलिये होते हैं वह किसान की उपज की खरीद करवाने में सहायता करते हैं।हरियाणा और पंजाब के किसानों में लगभग 28000 रजिस्टर बिचोलिये हैं किसान द्वारा बिचौलिये को लगभग 2.5 % कमीसन दिया जाता है।

  • किसानों का दूसरा विरोध, मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा विधेयक को लेकर इसलिए है कि किसानों का मनाना है कि इससे खेत के स्तर पर ही उसके उत्पादन का भाव कंपनी के द्वारा तय कर दिया जायेगा और उस फसल को किसान से सस्ता खरीद कर कंपनी के द्वारा स्टोर कर लिया जायेगा

इस मॉल को कम्पनी के द्वारा तब बेचा जायेगा जब उसकी बाजार में कीमत अधिक होगी। इससे कंपनी का अधिपत्य कृषि पर अधिक होता जायेगा।

  • किसानों का मानना है कि तीसरे विधेयक के जरिये सरकार MSP(न्यूनतम समर्थन मूल्य) को ख़त्म करना चाहती है अभी सरकार के द्वारा लगभग 22 फसलों पर MSP तय किया जाता है।

सरकार का तर्क

सरकार का कहना है कि इस कृषि विधेयक 2020 से APMC मंडियों को ख़तम करने का प्रयास नहीं किया जा रहा।

बल्कि किसानों को अपनी फसल APMC मंडियों के बहार भी बेचने का मौका मिलेगा। इससे इंटरस्टेट ट्रेड को बढ़ावा मिलेगा किसान अपनी फसलों को बाहर के राज्यों में जाकर भी बेच सकेगें। बिचौलिये जो कृषि से जुड़े हुए है उनके खत्म होने से किसानों को भाव अच्छा मिलेगा एवं उनकी अधिक बचत संभव होगी इस बिल के जरिये सरकार one country one market की पालिसी को प्राप्त करना चाहती है। 

दूसरे विधेयक पर सरकार का मत है कि इससे खेती में आय के रिस्क को कम किया जा सकता है। किसान एग्रीमेंट के तहत अपनी फसल को बेच सकेगा और बाजार का हिस्सा बनेगें।

तीसरे विधेयक पर सरकार का कहना है कि इससे बाजार भाव को नियंत्रित किया जा सकेगा जिससे किसानों को अधिक फायदा होगा किसानों को आजादी मिलेगी। खेती में कंपनियों के निवेश को बढ़ाया जा सकेगा खेती में भी private sector/foreign direct investment को लाया जा सकेगा।

दूसरे देशों और बिहार राज्य से तुलना

बिहार राज्य में आज के समय में APMC मंडियां नहीं है। 2006-07 में सरकार के द्वारा इस सिस्टम को ख़त्म करते समय किसानों को बहुत सारे सपने दिखा दिए गए किन्तु आज कृषि में बिहार के किसानों की हालत बेहद ख़राब है आंकड़ों के अनुसार बिहार का एक किसान सालाना लगभग 45000 के लगभग कमाता है अर्थात मासिक आय सिर्फ 4000 से भी कम।

इसकी तुलना अगर पंजाब के किसान से करते हैं तो पंजाब के किसान की सालाना आय 2 लाख 20 हजार के करीब है। इसमें आय में सभी प्रकार कि आय शामिल है जैसे पशु धन से आय, खेती से आय, मजदूरी से आय।

अगर यूरोपियन देशों या USA की बात करें तो वहाँ पर कोई MSP सिस्टम नहीं है खेती में कोई मंडी सिस्टम नहीं है। कंपनियों के द्वारा उपज को खरीद लिया जाता है। खेती के लिए सरकार के द्वारा बहुत बड़ी कीमत सब्सिडी के रूप में दी जाती है।

किसानों की हालत ऐसी है कि वह बिना सरकारी मदद के कीमत भी नहीं निकल सकते हैं। USA के सरकारी विभाग के द्वारा ही किसानों की ख़राब स्थिति को उजागर किया गया।

एक अनुमान के मुताबिक यूरोपियन देशों में एक किसान को सब्सिडी के तोर पर 6000 डॉलर सालाना मिलता है वहीं भारत के एक किसान को सब्सिडी के रूप में 200$ सालाना मिलता है।

अगर सरकार कृषि विधेयक 2020 को पास करवा लेती है। तो क्या वह यूरोपियन देशों की तरह सब्सिडी मुहैया करा पायेगी  जहाँ पर भी खेती में कंपनियों, कॉर्पोरेट घरानों का प्रभाव है। वहाँ पर किसान सब्सिडी की बदौलत खेती कर पा रहे हैं।

बिहार ने मंडियों को ख़त्म कर कृषि में सुधार के लिए रिफार्म किया लेकिन वह भी पूरी तरह फ़ैल हो गए। दूसरे देशों और बिहार में जब यह मॉडल सफल नहीं हो पाया तो इसे पूरे देश में क्यों लाया जा रहा।

सरकार जिम्मेदारियों से कैसे बच रही

देश का किसान सबसे बड़ा अर्थशास्त्री हैं उसे पता हैं क्या सही हैं क्या गलत। सरकार इस बिल के जरिये पावर कम्पनीज, कॉर्पोरेट घरानों को दे रही हैं सरकार अपनी जिम्मेदारियों से बच रही हैं।

इस बिल में अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्‍याज़ आलू को आवश्‍यक वस्‍तुओं की सूची से हटाने का प्रावधान हैं। सरकार फिर कैसे कह रही हैं कि MSP का फायदा किसानों को मिलता रहेगा। वैसे आंकड़े बताते हैं कि केवल 6% किसान ही अपने उत्पाद को सही MSP के कीमत पर बेच पाते हैं।

अर्थात गरीब किसान के पास इतना समय ही नहीं होता कि वह सरकार की खरीद का इंतजार करे।

अभी तक सरकार या FCI के द्वारा गोदामों में भण्डारण किया जाता था और इसे सरकार समय समय पर राशन की दुकानों और सही समय पर, संकट के समय लोगों तक पहुँचती थी। किन्तु अब किसानों से कृषि की उपज कंपनियों के द्वारा खरीद कर भण्डारण किया जायेगा।

एक किसान के नजरिये से ही नहीं आम जन की तरह से भी यह इस लिए अहम् हो जायेगा कि बाजार की शक्ति कॉर्पोरेट घरानों के पास पहुंच जाएगी। बाजार को काबू करने में कंपनियों की भूमिका बढ़ेगी। उत्पाद को कब बाजार में बेचना हैं यह वह तय करेंगी। मंहगाई के हिसाब से फायदे के लिए कंपनियों द्वारा काम किया जायेगा।

सरकार के द्वारा कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की ओर किसानों को ले जाने का प्रयास किया जा रहा है किसानों के द्वारा जो प्रदर्शन किये जा रहे हैं उस पर पहले से ही विपक्ष का साथ मिल रहा पंजाब में बीजेपी की सहयोगी अकाली दल के द्वारा अब किसानों का साथ दिया जा रहा है। अकाली दल से हरसिमरन बादल के द्वारा मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया गया है।

अब ये मुद्दा किसानों के साथ राजनैतिक पार्टियों के लिए खुद के फायदे का मामला भी हो गया है। कृषि विधेयक 2020 का भविष्य किस ओर जाता है। यह अभी सोच के परे है सरकार अपनी जिद पर अटल है।

 

 

 

 

 

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