jammu’s purple Revolution, जम्मू और कश्मीर के लिहाज से सुर्खियों में है, खासकर जम्मू का डोडा गांव। इस गाँव में लगभग 500 किसान लोग निवास करते हैं। इन किसानों की आय में कुछ समय से अच्छा मुनाफा हुआ है। इसका मुख्य कारण खेती के स्वरुप में बदलाव है। अब यहां के किसानों के द्वारा मक्का(maize) की खेती को छोड़कर लैवेंडर की खेती को वरीयता दी जा रही है।
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लैवेंडर है क्या?(Jammu’s Purple Revolution)
यह एक झाड़ी नुमा पौधा है। जिस पर बैगनी रंग के फूल/फल आते हैं। इसका इस्तेमाल सुगंधित पदार्थ रूप में सौन्दर्य प्रसाधनों में किया जाता है। इसके फलों का तेल भी स्किन केयर के लिए बहुत किफायती होता है। यह कई रंगो में पाया जाता है- जैसे पिंक, ब्लू , वायलेट, वाइट।
यह पूरे सालभर होने वाला पौधा है। इसकी खेती के लिए लिए शुष्क जलवायु और धूप की आवश्यकता होती हैं। किन्तु बहुत अधिक वर्षा वाले स्थान पर इसकी खेती नहीं करनी चाहिए। लैवेंडर की खेती के लिए मृदा में कैल्शियम कार्बोनेट की मात्रा बेहतर होनी चाहिए।
Aroma Mission क्या है?
2016 में सरकार के द्वारा Aroma Mission लाया गया। इस मिशन के अंतर्गत सरकार के द्वारा लैवेंडर जैसे सुगंधित आयुर्वेदिक औषधीय पौधों को लगाने पर जोर दिया गया। इस मिशन को चलाने की जिम्मेदारी CSIR(Council of Scientific and Industrial Research) और IIM(Indian Institute of Integrative Medicine) Jammu , को दी गयी है।
Aroma Mission से जुड़ी नोडल एजेंसी
- CSIR-Central Institute of Medical and Aromatic Plants(CSIR-CIMAP), Lucknow
The Participating Laboratories
- CSIR- Institute of Himalayan Bioresource Technology(CSIR-IHBT), Palampur
- CSIR- Indian Institute of Integrative Medicine(CSIR-IIIM), Jammu
लैवेंडर के लिए बाजार
लैवेंडर आयल की बाजार में कीमत 10000 प्रति लीटर से अधिक है। यह एक बड़ा कारण है किसकी वजह से किसानों को फायदा हुआ है। पहले सुगंधित औषधीय द्रव्यों को बाहर के देशों से आयात किया जाता था। किन्तु अब स्थिति में बदलाव संभव लग रहा है।
अभी किसानों को 5-6 रूपये में एक पौधा बेचा गया है। आंकड़े बताते हैं कि लैवेंडर की खेती के लिए 1 हैक्टर जमीन से लगभग 40 लीटर तेल प्राप्त किया जाता है।
लैवेंडर का सिर्फ तेल ही उपयोग में नहीं लाया जाता बल्कि लैवेंडर वॉटर भी निकाला जाता है जिसका उपयोग लैवेंडर स्टिक्स(धूपबत्ती) बनाने में किया जाता है। इसके अलावा जब लैवेंडर का डिस्टिलेशन(आसवन) किया जाता है। उस प्रक्रिया में Hydrosol नाम से उत्पाद निकलता है, जिसका उपयोग साबुन और रूम फ्रेशनर बनाने में होता है।
IIIM-Jammu लैवेंडर के प्रोडक्शन को बढ़ाने में किसानों की मदद कर रहा है। एवं मुंबई की कंपनियां Ajmal Biotech Private limited, Aditi International and Navnetri Gamika के द्वारा लैवेंडर आयल को खरीद कर प्रोडक्ट्स (कैंडल, एरोमा आयल आदि) को बनाया जाता है।
अब धीरे धीरे किसानों में इसे लेकर जागरूकता बढ़ रही है। जिस कारण जम्मू के अन्य जिलों (राजौरी, रामबन, पुलवामा आदि) में भी इसकी खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। CSIR और IIIM जम्मू के द्वारा बढ़ती डिमांड को देखते हुए नए डिस्टिलेशन प्लांट लगाए जा रहे हैं। जो कि बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए जरुरी है।
लैवेंडर की खेती से फायदे क्या हैं।
इसकी खेती से सबसे बड़ा फायदा किसानों की आय को लेकर हुआ हैं। उसके बाद दूसरा बड़ा फायदा महिलाओं को हुआ है। लैवेंडर की खेती से महिलाओं को एम्प्लॉयमेंट मिल रहा है। महिलाएं अपने घरों में इसको पैदा कर रही हैं जो उनकी आय के लिए फायदेमंद हो रहा है।
लैवेंडर की खेती में फायदा यह भी है कि इसे जानवरों के द्वारा भोजन के रूप में उपयोग में नहीं लिया जाता। जिससे फसल को जानवरों के द्वारा ख़राब करने का खतरा कम होता है। इसके लिए उर्वरता युक्त भूमि और पानी की भी कोई खास जरुरत नहीं होती है।
इसकी खेती से लोगों की आय में बढ़ोत्तरी के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो थी है। लैवेंडर की खेती ने निर्यात के नए आयाम खोल दिए हैं। सरकार के द्वारा प्रयास किया जा रहा है। देश सुगंधित द्रव्य के मामले में आत्मनिर्भर बन सके। और इसका निर्यात करना भी संभव हो।
इसके फायदों को देखते हुए अन्य राज्यों के द्वारा भी इसकी खेती पर विचार किया जा रहा जैसे नागालैंड, असम, उत्तराखंड। एरोमा मिशन के फेज 1 के सफलता पूर्वक पूरा होने के बाद एरोमा मिशन फेज 2 शुरू किया गया है। इस मिशन के अंतर्गत अगले तीन साल में 1500 हैक्टर जमीन पर लैवेंडर की खेती को फैलाया जायेगा।
भविष्य में क्या किया जाये?
लैवेंडर की खेती के लिए जेनेटिक शुद्धता(purity) को बनाये रखना इसकी गुणवत्ता के लिए आवश्यक है। CSIR और IIIM के द्वारा प्रयास हो रहा है कि किसानों को खेती के लिए सही तरीके से तैयार किया जा सके लैवेंडर की खेती के लिए, किसानों में खेती के लिए स्किल पैदा हो, ताकि खेती में किसी प्रकार की जेनेटिक मिक्सिंग पैदा न हो। इसके लिए जम्मू कश्मीर की एक संस्था SKUAST के साथ मिलकर किसानों की स्किल को बेहतर बनाने पर ध्यान दिया जा रहा है।
एरोमेटिक प्लांट की सफलता को देखते हुए अन्य राज्य भी इसे अपनाने के लिए आगे आ रहे हैं। जैसे गुजरात, मराठवाड़ा का क्षेत्र , राजस्थान, आंध्रप्रदेश, उड़ीशा आदि। एरोमेटिक प्लांट की बड़ी श्रृंखला है। जिसमें असीम संभावनाएं छुपी हैं। इन संभावनाओं तक पहुंच के लिए किसानों को तकनीकी और वित्तीय, दोनों प्रकार की मदद मुहैया होना आवश्यक है। लैवेंडर की खेती से निकला शब्द Jammu’s Purple Revolution, देश के अन्य हिस्सों में भी किसानों की आय को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो सकता है।