किसी भी देश के लिए बौद्धिक सम्पदा अधिकार(Intellectual Property Rights) का बहुत महत्व है। इसके महत्व को तभी समझा जा सकता है जब इसके विषय में जानकारी प्राप्त हो।
वर्ल्ड बौद्धिक सम्पदा संगठन(WIPO), संयुक्त राष्ट्र संघ की विशिष्ट एजेंसियों में से एक है यही संगठन पुरे विश्व में बौद्धिक सम्पदा को प्रोत्साहित करने के लिए कार्यरत है। भारत इसका सदस्य है। इसका मुख्यालय जेनेवा में है।
बौद्धिक सम्पदा अधिकार(Intellectual Property Rights)
इसके अनुसार अगर कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार का बौद्धिक सृजन जैसे कोई अविष्कार, रचना, कोई खोज करता है तो सबसे पहले उस पर इस व्यक्ति का अधिकार होना चाहिए। जिस व्यक्ति के द्वारा यह कार्य किया गया है। चूँकि यह अधिकार व्यक्ति के बौद्धिक सृजन के लिए दिया जाता है इसीलिए इसे बौद्धिक सम्पदा अधिकार कहा जाता है
इसका यह मतलब नहीं हो जाता कि उस व्यक्ति का सदैव के लिए अधिकार हो जायेगा। यह एक निश्चित समय के लिए और निर्धारित भौगोलिक क्षेत्र के लिए ही मान्य होगा बौद्धिक सम्पदा अधिकार देने का मूल उद्देश्य मानवीय बौद्धिक रचनात्मकता का विकास करना है।
बौद्धिक सम्पदा अधिकार (Intellectual Property Rights) कितने प्रकार का हो सकता है?
इसे वर्गीकृत करना एक चुनौती है क्यों कि दुनिया में भिन्नताओं का स्वरुप व्यापक है एवं उसी व्यापकता में अधिकार, नियम संबंधों को निर्धारित करना और भी अधिक आवश्यक हो जाता है।
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कॉपीराइट
ऐसे अधिकार जो किसी व्यक्ति को उसकी साहित्यिक रचना या कलात्मक कृत्यों के लिए दिया जाता हो। कॉपीराइट कहलाता है। इसके अधिकार के अंतर्गत सिनेमा, संगीत, डेटाबेस, मानचित्र, किताबें, कला, विज्ञापन आदि को शामिल किया जाता है। जब कोई व्यक्ति अपनी रचनात्मकता से किसी सृजन को जन्म दे उसकी अभिव्यक्ति करे तो उस पर कॉपीराइट लागू होगा।
इसके अलावा भी उपाधियों, नारों और लोगो(Logo) पर भी कॉपीराइट का प्रदान किया जा सकता है।
कॉपीराइट पर दो प्रकार के अधिकार दिए जाते हैं।
- आर्थिक अधिकार: इसके तहत किसी व्यक्ति द्वारा कृति को उपयोग करने के लिए कॉपीराइट अधिकार प्राप्त व्यक्ति को वित्तीय सहायता फीस के रूप में दी जाती है।
- नैतिक अधिकार: इसके तहत लेखक या रचनाकार के नैतिक हितों का संरक्षण किया जाता है। नैतिक हित वह हैं जो आर्थिक हितों से भिन्न हों।
कॉपीराइट की चर्चा के समय कॉपीलेफ्ट को जानना जरुरी है। कॉपीलेफ्ट के तहत कॉपीराइट का मालिक किसी व्यक्ति को सॉफ्टवेयर या किसी भी अन्य विषम में प्रतिलिपि तैयार करने, उसे बदलने और पुनर्वितरित करने की स्वतंत्रता देता है।
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ट्रेडमार्क
इसे आज के समय में एक चिन्ह के रूप में जाना जाता है। इस चिन्ह का इस्तेमाल किसी एक इंडस्ट्री की वस्तुओं और सेवाओं को दूसरे इंडस्टीज की वस्तुओं और सेवाओं से अलग करने के लिए किया जाता है। यह चित्र, चिन्ह, कोई विशेष ध्वनि या कोई विशिष्ट प्रकार का रंग भी हो सकता है। ट्रेडमार्क का राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय स्तर पर पंजीकरण करवाना आवश्यक होता है ऐसा ट्रेडमार्क के संरक्षण के लिए किया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व बौद्धिक सम्पदा संगठन के मैड्रिड अभिसमय के जरिये भी ट्रेडमार्क संरक्षण प्राप्त किया जा सकता है।
ट्रेडमार्क मिलने से उत्पादन को एक पहचान मिलती है जिसके माध्यम से विज्ञापन भी किया जा सकता है तथा उस उत्पाद की गुणवत्ता का भी पता चलता है।
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पेटेंट
किसी अविष्कार के लिए अविष्कार कर्ता को दिया जाने वाला अधिकार पेटेंट होता है। इस अधिकार से कोई अन्य व्यक्ति बिना अविष्कार कर्ता की अनुमति के न तो उस अविष्कार को बना सकता है और न ही उसका उपयोग कर सकता है।
पेटेंट का अधिकार मिलने पर इसकी अवधि पेटेंट दर्ज करने की तिथि से 20 वर्षों के लिए हो सकती है। पेटेंट एक क्षेत्रीय अधिकार है, इसके लिए कुछ मापदंड बनाये गए है जिसके आधार पर यह तय किया जाता है कि अविष्कार पेटेंट योग्य है या नहीं।
- वह अविष्कार विश्व में कहीं भी सार्वजनिक नहीं हुआ हो। पेटेंट की प्राप्ति तक अविष्कार कर्ता अविष्कार को गुप्त रखे। ऐसा न कर पाने की स्थिति में गैर- प्रकट समझौते को कार्यान्वित करे।
- अविष्कार ऐसा होना चाहिए जिससे यह जाहिर हो कि अविष्कार उपलब्ध किसी प्रक्रिया या उत्पाद में प्रगति को बढ़ावा देगा।
- अविष्कार ऐसा होना चाहिए जिसका निर्माण औद्योगिक स्तर पर किया जा सके।
कुछ आधार ऐसे भी हैं जिनके आधार पर अविष्कार को पेटेंट योग्य नहीं माना जायेगा।
- ऐसे अविष्कार जिस पर कोई कानून बना हुआ हो जैसे मानव या जीवजंतु के उपचार, या ऐसे अविष्कार जो मनुष्य या जीवों के लक्षणों को जानने में प्रयुक्त हों।
- ऐसे अविष्कार जो अनैतिक, आक्रामक छवि को दिखते हों
पेटेंट कार्यालय या न्यायलय में अविष्कार को चुनौती दी जा सकती है ऐसा कह कर कि अविष्कार में कुछ भी नया नहीं है।
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भौगोलिक संकेतक
भौगोलिक संकेतक से अभिप्राय उत्पाद पर प्रयुक्त चिन्ह से है इन उत्पादों का विशेष भौगोलिक स्थान होता है। उस स्थान के कारण ही इसमें विशिष्ठ गुण पाए जाते हैं। जैसे- तिरुपति(आंध्रप्रदेश) के लड्डू, कश्मीरी पश्मीना, कश्मीरी केसर आदि।
भारत में भौगोलिक संकेतक अधिनियम 1999 बना हुआ हैं इसके आधार पर भौगोलिक संकेतक टैग(GI Tag) दिया जाता हैं
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औद्योगिक डिजाइन
इसके द्वारा वस्तु को सुन्दर और कलात्मक रूप दिया जाता है। औद्योगिक डिज़ाइन के माध्यम से उत्पाद को बेहतर रूप दिया जाता है। उसके कार्य की कुशलता, एवं प्रस्तुति को बढ़ाया जाता है। भारत में डिज़ाइन अधिनियम 2000 के अनुसार- डिज़ाइन का अभिप्राय- आकर, अनुक्रम विन्यास, प्रारूप या अलंकरण, रेखाओं या वर्णों का संगठन जिसे किसी ऐसी वस्तु पर इस्तेमाल किया जाये जो या तो द्विविमीय हो या त्रिविमीय या दोनों रूपों में हो।
डिज़ाइन पंजीकरण से औद्योगिक डिज़ाइन को संरक्षण मिलता है। डिज़ाइन पंजीकरण से कोई अन्य व्यक्ति उस डिज़ाइन का उपयोग नहीं कर सकता जब तक कि अनुमति न हो।
बौद्धिक सम्पदा अधिकार (Intellectual Property Rights) में भारत की स्थिति
बौद्धिक सम्पदा इंडेक्स में भारत की स्थिति 2020 में 38.46% के स्कोर के साथ 53 देशों की सूची में 40वें स्थान पर रही। जबकि 2019 में भारत 36वें स्थान पर था। सूचकांक में शामिल दो नए देशों, ग्रीस और डोमिनिकन गणराज्य की स्थिति भारत से अच्छी है।
बौद्धिक सम्पदा अधिकार (Intellectual Property Rights) में अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय
- पेरिस कंवेंशन(1883): ट्रेडमार्क और औद्योगिक डिज़ाइन अविष्कार के पेटेंट शामिल हैं
- बर्न कंवेंशन(1886): इसमें उपन्यास, नाटक, गाने , संगीत, पेंटिंग, मूर्तिकला और वास्तुशिल्प शामिल है
- मराकेश(2013): किसी किताब को ब्रेल लिपि में छपे जाने पर बौद्धिक सम्पदा का उल्लंघन नहीं माना जायेगा। इस संधि को सबसे पहले भारत द्वारा अपनाया गया।
सरकार के प्रयास
भारत में सबसे पहले 1911 में भारतीय पेटेंट और डिजाइन अधिनियम बनाया गया था। फिर 1970 में पेटेंट अधिनियम बनाया गया जिसे 1972 से लागू किया गया है। इस अधिनियम में पेटेंट संशोधन अधिनियम 2002 और फिर 2005 के द्वारा बदलाव किया गया।
2016 में राष्ट्रीय बौद्धिक सम्पदा अधिकार नीति को लाया गया और 12 मई 2016 को भारत सरकार के द्वारा बौद्धिक सम्पदा अधिकार नीति को मंजूरी दे दी गयी।
बौद्धिक सम्पदा अधिकार (Intellectual Property Rights) को लेकर विवाद
अमेरिका और भारत को लेकर अक्सर विवाद रहता है। अमेरिका के द्वारा कई बार भारत पर जालसाजी, पायरेसी जैसे आरोप लगाए जाते हैं उसका मानना है कि भारत में नियम कानून बौद्धिक सम्पदा अधिकार को लेकर बहुत कमजोर है।
दवाओं और टेक्नोलॉजी के स्तर पर भी दोनों देशों में विवाद रहता है भारत जेनेरिक दवाओं का बहुत बड़ा निर्यातक देश है। अफ्रीकी देशों में जेनेरिक दवाओं के कारण सस्ती दवा उपलब्ध हो रही है। जो विवाद का कारण है।
भारत ने सोलर कार्यक्रम को बढ़ाने के लिए घरेलू सोलर उपक्रमों को यही के सोलर पैनल्स के साथ बनाने पर जोर दिया इस पर भी अमेरिका के द्वारा आपत्ति जताई गयी।
अमेरिका जैसे विकसित देशों के द्वारा भारतीय आयुर्वेद का अगल फायदा उठाया जाता है और पेटेंट को खुद के नाम करा लिया जाता है जिसके लिए आयुष मंत्रालय का निर्माण किया गया।
इनके अलावा भारत की निजी खामियां है। जो अंतर्राष्ट्रीय विवादों से एकदम अलग है। इन कमियों के कारण हम बौद्धिक सम्पदा को लागू करने के स्तर पर पिछड़ रहे हैं। अभी भारत में पेटेंट करवाना एक जटिल कार्य है।
दूरदराज गाँव के स्तर पर लोग नहीं जानते है कि बौद्धिक सम्पदा अधिकार (Intellectual Property Rights) होता क्या है कैसे पेटेंट लिया जाता है। किसी नयी खोज, नए अविष्कार को कैसे पंजीकृत कराया जाये। अगर पंजीकृत करने के स्तर पर पहुंच भी जाया जाये तो सिस्टम की पारदर्शिता न होने से भ्रष्ट आचरण के कारण भी लोग अपने हक़ से दूर हो जाते हैं।