दुनिया के देशों के द्वारा 1967 में आउटर स्पेस ट्रीटी को बनाया गया जिसके अनुसार स्पेस का कोई भी भाग किसी राष्ट्र विशेष की सम्पती नहीं है, किसी भी देश के द्वारा अनुसंधान किया जा सकता है। इसके साथ ही भारत की स्पेस एजेंसी ISRO(Indian Space Research Organisation) भी अपनी भूमिका को दुनिया के सामने प्रदर्शित कर रहा है।
स्पेस जगत में स्पेस को परिभाषित करने के लिए समुन्द्र तल से 100Km की ऊंचाई पर Karman Line नामक काल्पनिक रेखा को माध्यम बनाया गया है। इस रेखा के नीचे देश का वायु क्षेत्र है एवं इसके ऊपर अंतरिक्ष को माना गया है। इस रेखा के द्वारा ही किसी देश की राजनैतिक सीमा का निर्धारण किया जाता है।
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Indian Space Research Organization (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन)
डॉ विक्रम साराभाई की अध्यक्षता में 1962 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति का गठन किया गया। 15 अगस्त 1969 में इसके द्वारा ISRO(Indian Space Research Orgnisation) की स्थापना की गयी। अंतरिक्ष अनुसंधान को स्वतंत्र अस्तित्व प्रदान करने के लिए 1972 में राष्ट्रीय अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू किया गया एवं इसके अलावा अंतरिक्ष आयोग एवं अंतरिक्ष विभाग का भी गठन किया गया इसको अंतरिक्ष विभाग के अंतर्गत रखा गया।
इसरो की विभिन्न महत्वपूर्ण इकाइयाँ
इनके माध्यम से ISRO(Indian Space Research Organization) विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों को संचालित करता है।
- विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र(VSSC- Vikram Sarabhai Space Centre): थुम्बा (तिरुअनंतपुरम), यह इसरो का सबसे बड़ा केंद्र है यहाँ पर इसरो प्रक्षेपण यान के डिज़ाइन और उनके विकास पर काम करता है। भारत के सभी प्रक्षेपण यानों को इसी केंद्र में विकसित किया जाता है।
- इसरो उपग्रह केंद्र (ISAC- ISRO Satellite centre): बंगलुरु
- अंतरिक्ष प्रयोग केंद्र (SAC-Space Application Centre): अहमदाबाद
- शार केंद्र (SHAR- Sri Harikota High Altitude Range): श्रीहरिकोटा
- द्रव प्रणोदन प्रणाली केंद्र (LPSC- Liqued Propulsion System Centre): तिरुअनंतपुरम
- मुख्य नियंत्रण सुविधा केंद्र (MSF- Master Control Facility): हासन(कर्नाटक)
- राष्ट्रीय दूर-संवेदी एजेंसी (NRSA- National Remote Sensing Agency): हैदराबाद
इसरो का उद्देश्य
- स्पेस के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना।
- दूरसंचार, मौसम अध्ययन एवं प्रबंधन के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी को विकसित करना।
- स्पेस से संबंधित सेवाएं उपलब्ध कराना, इसके लिए स्पेस यानों, उपग्रहों का निर्माण करना।
- इसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक विकास में सहयोग करना है।
इसरो के द्वारा प्रमोचन यान का चरणबद्ध विकास
ISRO(Indian Space Research Organisation) के द्वारा उपग्रह प्रक्षेपण यान विकसित करने के लिए कार्यक्रम को चार चरणों में बाँटा जा सकता है
पहला चरण SLV का विकास:
यह भारत का पहला प्रमोचन यान था जिसमें चार चरण थे और इन सभी चरणों में ठोस ईंधन का प्रयोग किया गया इसके द्वारा 40kg भार के उपग्रह को निकट भू-कक्षा में प्रमोचित किया जा सकता था। SLV का 4 बार प्रक्षेपण किया गय्या जिसमें पहला प्रयोग पूर्णता विफल रहा। इसके बाद के अन्य प्रयोग आंशिक एवं पूर्णतः सफल रहे।
दूसरा चरण ASLV का विकास:
इसके विकास का उद्देश्य आगामी प्रमोचन यान के विकास के लिए आवश्यक तकनीकों को परीक्षण एवं प्रदर्शित करना था यह पांच चरणों वाला राकेट था जिसमें ठोस ईंधन का प्रयोग किया गया था ASLV के विकास में शुरुआती दो प्रयास असफल रहे किन्तु तीसरे प्रयास में ASLV-D3 प्रक्षेपण यान के द्वारा हमनें SROSS-3 उपग्रह को सफलता पूर्वक प्रक्षेपित किया। इस रॉकेट के द्वारा 150 kg भार के उपग्रह(Satellite) को LEO(Low Earth Orbit) में पहुंचाया जा सकता था।
तीसरा चरण PSLV का विकास:
यह भारत का पहला कार्यरत उपग्रह प्रमोचन यान है इसके साथ इसरो ने देश के लिए कई कीर्तिमान स्थापित किये हैं। यह चार चरण की प्रमोचन यान प्रणाली है इसके प्रथम और तीसरे चरण में ठोस ईंधन एवं दूसरे और चौथे चरण में तरल ईंधन का प्रयोग किया जाता है। इसके द्वारा 1750 kg के उपग्रह को Polar Orbit (620 km) की ऊंचाई तक एवं 1420 kg के उपग्रह को GTO(Geosynchronous Transfer Orbit-36000 km) की उचाई पर प्रक्षेपित करने की क्षमता है।
PSLV में तरल ईंधन के इस्तेमाल के लिए इसरो के द्वारा विकास इंजन को विकसित किया गया। इसके द्वारा चंद्रयान और मंगलयान अंतरिक्ष मिशनों को पूरा किया गया है नाविक के उपग्रहों का प्रमोचन किया गया है
अभी तक PSLV के द्वारा 50 मिशन किये जा चुके हैं, इसके 50 वें मिशन को PSLV-C48 के द्वारा 9 विदेशी उपग्रहों और एक भारतीय defence satellite RISAT-2BRI को 576km ऊंचाई पर LEO(Low Earth Orbit) में स्थापित किया गया था।
चौथा चरण GSLV का विकास:
यह भारत के प्रक्षेपण यान कार्यक्रम का सबसे महत्वपूर्ण चरण है। यह एक ऐसा राकेट है जिसके लिए भारत ने खुद की क्रायोजेनिक तकनीक का विकास किया । भारत के पास GSLV के तीन संस्करण है
- GSLV-Mark1(प्रयोग में नहीं)
- GSLV-Mark2(2500 kg वजन के उपग्रह को GTO में पहुंचने में सक्षम एवं 5000 kg वजन तक के उपग्रह को LEO तक पहुँचा सकता है)
- GSLV-mark3/LVM-3(4000 kg वजन के उपग्रह को GTO में पहुंचने में सक्षम एवं 8000 kg वजन तक के उपग्रह को LEO तक पहुँचा सकता है)
GSLV को तीन चरण में बनाया गया है इसके GSLV mark-3 के पहले चरण में ठोस ईंधन, द्वितीय चरण में तरल ईंधन एवं तृतीय चरण में Cryogenic engion को जोड़ा गया है Jul 22, 2019 को इसरो के द्वारा GSLV-Mark 3-M1 के द्वारा Chandrayaan-2 मिशन प्रक्षेपित किया गया इस मिशन के अंर्तगत रोबर और उपग्रह दोनों को शामिल किया गया था इस मिशन में रोबर की चन्द्रमा की सतह पर हार्ड लैंडिंग होने के कारण यह मिशन आंशिक रूप से असफल रहा। इसलिए इसरो चंद्रयान मिशन 3 पर कार्य कर रहा है।
Indian Space Research Organization द्वारा क्रायोजेनिक तकनीक/क्रायोजेनिक इंजन का विकास
GSLV के विकास में सबसे बड़ी बाधा क्रायोजेनिक इंजन के विकास की थी। भारत का रूस के क्रायोजेनिक तकनीक और इसके इंजन को लेकर करार था किन्तु अमेरिका के दवाब में रूस ने करार तोड़कर तकनीक को देने से माना कर दिया और केवल क्रायोजेनिक इंजन को ही भारत में भेजा गया। इस कारण भारत ने खुद की क्रायोजेनिक तकनीक का विकास किया। अमेरिका का मानना था कि इस तकनीक के बल पर भारत उपग्रह प्रक्षेपण के साथ Inter continental मिसाइल का भी निर्माण कर लेगा।
इस तकनीक में ईंधन के रूप में तरल Hydrogen और ऑक्सीकारक के रूप में तरल Oxygen का प्रयोग किया जाता है इस तकनीक की सबसे बड़ी जटिलता अत्यंत कम ताप [Hydrogen(-253°C) एवं Oxygen(-183°C)]और कम दाब पर ईंधन और ऑक्सीकारक का संग्रहण है। इसके साथ ही ऐसी पम्प और नलिकाओं का निर्माण करना जो अति कम ताप और दाब को सह सके।
इसरो के भविष्य में महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट
RLV(Reusable Launch vehicle) तकनीक का विकास
23 मई 2016 को इसरो के द्वारा RLV का पहला तकनीकी परीक्षण सफलता पूर्वक किया गया। यह प्रमोचन यान एवं वायुयान का जटिल रूप है। यह भी सामान्य प्रमोचन यान की तरह launch pad से एक सॉलिड बूस्टर की सहायता से ऊपर उठता है और नियत ऊँचाई पर उपग्रहों को प्रमोचित कर पृथ्वी के वायुमंडल में वायुयान की तरह प्रवेश करता है और हवाई पट्टी पर सकुसल उतर जाता है।
यह भारत की अत्यंत महत्वाकांक्षी परियोजना है अगर इसरो(Indian Space Research Organization) के द्वारा भविष्य में इस परियोजना को सफलता पूर्वक पूरा कर लिया जाता है, तो परियोजना से भारत को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होंगे।
- अंतरिक्ष मिशनों का खर्च वर्त्तमान खर्च के 10 वें हिस्से के बराबर लाया जा सकता है।
- भारत की स्पेस के क्षेत्र में धाक बढ़ेगी, व्यवसायिक प्रमोचन सेवा का मूल्य कम होगा इससे लाभ की संभावना अधिक हो जाएगी।
- इसके द्वारा भारत अंतरिक्ष पर्यटन के क्षेत्र में अपने सपने को पूरा कर पायेगा।
RLV के विकास के क्रम में इसे 4 प्रकार के परीक्षणों से गुजरना होगा
- HEX(Hypersonic Flight Experiment): 23 मई 2016 को इसका प्रयोग सफलता पूर्वक संपन्न किया गया। जिसका उद्देश्य प्रमोचन यान को प्रमोचित कर सफलता पूर्वक वायुमंडल में प्रवेश करना था।
- LEX(Landing Experiment): यह दूसरा परीक्षण होगा जिसमें विमान हाइपरसोनिक गति से वायुमंडल में प्रवेश करेगा और निरंतर गति काम करते हुए सबसोनिक गति से रनवे पर उतरेगा।
- REX(Return Flight Experiment): यह तीसरा परीक्षण होगा जिसमें प्रमोचन यान को पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करा कर वापस वायुमंडल में भेजा जायेगा फिर वापस वायुमंडल में लेकर रनवे पर उतर लिया जायेगा।
- SPEX(Scramjet Flight Experiment): यह RLV का अंतिम परीक्षण होगा जिसमें Scramjet इंजन का प्रयोग किया जायेगा जो RLV को पूर्ण रूप से तैयार करेगा।
USA की प्राइवेट कंपनी Space-x के द्वारा RLV का सफल परीक्षण किया जा चुका है, चीन भी इस तकनीक पर काम कर रहा है एवं उसके द्वारा शुरुआती परीक्षण किये जा रहे हैं।
Aditya-L1
यह Indian Space Research Organization(ISRO) का पहला सूर्य के अध्ययन के लिए समर्पित मिशन होगा। इसे NOV 2015 में सरकार के द्वारा मंजूरी दे दी गयी। इस उपग्रह में कुल 6 स्वदेशी उपकरण लगे होगें जिनके द्वारा सूर्य के photosphere. chromosphere, एवं corona का अध्ययन किया जायेगा। इसमें ऐसे सेंसर्स का उपयोग किया जायेगा जिसके द्वारा सूर्य से प्राप्त सूक्ष्म कणों की जानकारी मिल सकेगी।
आदित्य-L1 को एक विशिष्ट कक्षा में स्थापित किया जायेगा जिसे Langrangean Point-1 नाम से जानते हैं। यह अंतरिक्ष का वह बिंदु हैं जहाँ दो बड़े खगोलीय पिंडों का सामूहिक गुरुत्वाकर्षण बल का मान, उस बिंदु का चक्कर लगा रहे किसी पिंड पर आरोपित centrifugal force के मान के बराबर होता है।
सूर्य और पृथ्वी के बीच 5 langrangean point उपस्थित हैं। इन बिन्दुओ को अंतरिक्ष का पार्किंग फील्ड भी कहते हैं।
मानव अंतरिक्ष मिशन
इसरो(Indian Space Research Organization) 2025 में मानव को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी कर रहा है इसके लिए एक विशिष्ट रूप से स्पेस कैप्सूल तैयार किया गया है। इस कैप्सूल की सहायता से GSLV Mark-3 के द्वारा अंतरिक्ष यात्रियों को निम्न भू कक्षा में भेजा जायेगा। यह एक बेहद जटिल मिशन है। जिसमें अंतरिक्ष यात्रियों को कम दाब और कम ताप से सुरक्षित रखा जाता है उन्हें अंतरिक्ष के उच्च ऊर्जा विकिरणों से बचाया जाता है।
इस मिशन के लिए crew module या स्पेस कैप्सूल का निर्माण HAL बंगलुरु के द्वारा किया जा चुका है। अभी तक USA, Russia, Japan, Canada, European Union, China के द्वारा ही इस उपलब्धि को हाँसिल किया गया है।
Indian Space Research Organization(ISRO) द्वारा पूरे किये जा चुके महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स
चंद्रयान मिशन (2008)
यह भारत का चन्द्रमा के लिए पहला मिशन था। जिसे oct 2008 में PSLV-XL के द्वारा प्रमोचित किया गया इसका उद्देश्य चन्द्रमा के चारों ओर परिक्रमा कर चाँद की सतह से आंकड़ों को प्राप्त करना था। यह मिशन 2 वर्ष का था किन्तु अगस्त 2009 में ही इसरो का उपग्रह से संपर्क टूट गया। संपर्क खोने से पहले इसके द्वारा प्राप्त आंकड़ों के द्वारा चाँद पर सतह के नीचे जल के होने की पुष्टि की जा चुकी थी।
चंद्रयान-2 (2019)
Indian Space Research Organization(ISRO) के द्वारा जुलाई 2019 में चंद्रयान-2 मिशन लॉन्च किया गया इस मिशन में 3 भाग थे। 1. ऑर्बिटर 2. लैंडर 3. रोवर
ऑर्बिटर का कार्य चन्द्रमा की सतह की जानकारी लेना एवं उसकी कक्षा में चक्कर लगाना था, लैंडर के द्वारा रोवर को चाँद की सतह पर उतारा जाता एवं रोवर वहाँ भ्रमण करते हुए जानकारी इकठ्ठा करता।
किन्तु इस मिशन में रोवर लैंडर के द्वारा लैंड कराते समय हार्ड लैंडिंग से इसरो का लैंडर और रोबर से संपर्क टूट गया इस कारण यह मिशन पूरी तरह सफल नहीं रहा। ऑर्बिटर आज भी चन्द्रमा की महत्वपूर्ण जानकारियां भेज रहा है। इसके बाद से इसरो चंद्रयान-3 पर कार्य कर रहा है।
मंगलयान(MOM)-2013
मंगलयान Indian Space Research Organization(ISRO) का पहला अंतरग्रहीय मिशन है। इसे Nov 2013 में PSLV C-25 के द्वारा पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया एवं अगले 10 महीने में मंगलयान अपनी कक्षा को की ऊंचाई धीरे धीरे बढ़ाते हुए 24 sep 2014 को मंगल की दीर्घ वर्ताकार कक्षा में स्थापित हुआ। यह मिशन इसरो के द्वारा 450 करोड़ में पूरा कर लिया गया। जो दुनिया के लिए कीर्तिमान था। इस मिशन के साथ भारत दुनिया में ऐसा पहला देश बन गया जिसने पहले ही प्रयास में मंगल मिशन में सफलता प्राप्त की।
मंगल तक पहुंचने वाले देशों में भारत दुनिया में चौथा देश है और एशिया में पहला। यह एक कक्षीय मिशन है जिसका वैज्ञानिक उद्देश्य मंगल की सतह पर खनिज एवं वायुमंडल का अध्ययन करना है। मंगल उपग्रह में कुल 5 पेलोड लगाए गए हैं जिनका कुल भार 15 kg है।
IRNSS-Indian Regional Navigation Satellite System (नाविक)
GPS प्रणाली पर निर्भरता कम करने के लिए Indian Space Research Organization(ISRO) ने अपना क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह विकसित किया है। यह भारत की मुख्य भूमि और भारतीय सीमा से 1500 km दूर तक नेविगेशन संकेतों को उपलब्ध करा सकता है।
इसके अंतर्गत 7 IRNSS उपग्रहों के समूह लगे होंगे जिसमें से 3 geostationary orbit में और 4 geosynchronous orbits में स्थापित किये जायेगें। यह अब पूरी तरह कार्य कर रहा है। इसके आने से भारत को विदेशी नौवहन प्रणाली पर निर्भर नहीं रहना होगा।
IRNSS के द्वारा दो प्रकार के नौवहन संकेत प्राप्त होगें।
- SPS(Standard Positioning Signals): यह सामान्य नागरिको के लिए उपलब्ध होगा
- PPS(precise positioning signals): इसकी सेवा सिर्फ रणनीतिक और प्रतिरक्षा के क्षेत्र में दी जाएगी। यह अत्यंत शुद्ध नौवहन संकेत होंगे जिनकी प्राप्ति के लिए विशिष्ट उपकरणों की जरुरत होती है।
इसरो आज के समय में भारत सरकार की हर तरह से मदत करने में सक्षम हो चुका है चाहे वह सैन्य क्षेत्र में हो, आपदा प्रबंधन में हो, दूरसंचार प्रणाली के लिए तकनीक का विकास करने में हो। इसके अलावा आतंकवाद या अपने शत्रु देशों पर नजर रखने की स्थिति में भी Indian Space Research Organization(ISRO) इसरो की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसरो खुद के लिए और भी बड़े मिशन खड़े करके नयी नयी खोजों की ओर बढ़ रहा है। जो देश दुनिया के हितों में भागीदार साबित हो रही हैं।