Indian report on climate change: भारत के द्वारा पहली बार climate change को लेकर रिपोर्ट जारी की गयी। इस रिपोर्ट का नाम Assessment of Climate Change over the Indian Region रखा गया जिसे Ministry of Earth Sciences के द्वारा जारी किया गया।
1981 में सरकार के द्वारा एक डिपार्टमेंट बनाया गया जिसका नाम department of Ocean development रखा गया और आगे इस मंत्रालय को बदलकर Feb 2006 में Ministry of ocean development कर दिया गया।
इसके कुछ महीने बाद ही फिर से नाम में बदलाव कर जुलाई 2006 में Ministry of Earth Sciences कर दिया।
इस मिनिस्ट्री के अंतर्गत कई मुख्य डिपार्टमेंट भी शामिल किये गए हैं जिसमें Indian Meteorological Department(IMD), India institute of Tropical Meteorology(IITM) and National Centre for Medium Range Weather Forecasting(NCMRWF) हैं।
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Indian report on climate change क्या है?
Ministry of Earth Sciences के द्वारा जारी रिपोर्ट में समस्याओं के निवारण की चर्चा नहीं की गयी। इस रिपोर्ट में यह बताने का प्रयास किया गया है कि अभी तक मौसम में क्या बदलाव आये हैं और भविष्य में क्या बदलाव आ सकते हैं। जैसे कि – तापमान, मानसून, सूखा, समुद्री जलस्तर का बढ़ना, ट्रॉपिकल चक्रवात और एक्सट्रीम मौसम की घटनायें।
इस रिपोर्ट में साफ शब्दों में कहा गया है कि Climate Change पर ग्रीन हाउस गैसों का दुष्प्रभाव तो है ही साथ ही साथ बढ़ता हुआ वायु प्रदुषण और भूमि के उपयोग के तरीकों में बदलाव भी एक बड़ी समस्या है।
रिपोर्ट में जो आंकड़े दिए गए हैं उसके अनुसार 1901-2018 तक भारतीय तापमान में 0.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है जो समय के साथ अधिक नहीं है। किन्तु रिपोर्ट में यह कहा गया है कि 21वीं शताब्दी के अंत तक भारतीय क्षेत्र के औसत तापमान में 4.4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो जाएगी।
अनुमान यह है कि यदि तापमान में बढ़ोत्तरी होती है तो अप्रैल से जून के महीने में चलने वाली Heat Wave की संख्या में 3 से 4 गुना बढ़ोत्तरी हो जाएगी। इस कारण मौसम में बहुत अधिक बदलाव होगें। सूखा और फसलों के कुचक्र से होकर गुजरना होगा। मौसम में बदलावों के बढ़ते स्तर से जीवन और जीविका में बदलाव होगा।
वर्षा के स्तर में बदलाव
Summer monsoon(June-September) – 1951-2015 तक वर्षा के स्तर में 6% की गिरावट आ चुकी है। जिसमें अधिकतर गिरावट गंगा के क्षेत्र(Indo-Gangetic plains) में और western ghats में आयी है।
ऐसे क्षेत्र जिन जगह पर वर्षा कम होती है उन जगहों पर अचानक से भारी बारिश आने की समस्या बढ़ सकती है जैसे उत्तराखंड में cloudburst की अचानक से घटना हुई थी।
Climate Change का असर किन पर होगा।
भारत एक कृषि प्रधान देश है। उस हिसाब से खेती में सबसे अधिक नुकसान होगा। सूखा पड़ने की समस्या में बढ़ोत्तरी होगी, खासकर Central India , Southwest coast , Southern Peninsula और North-eastern Indian region में,
जिस प्रकार से अनुमान जताया गया है उसके अनुसार हर दशक में 2 सूखा अधिक आने की संभावना बढ़ जाएगी। पिछले 70 साल में सूखाग्रस्त क्षेत्र में 1.3% क्षेत्र की वृद्धि हुई है।
Climate Change का Sea level पर प्रभाव
North Indian Ocean(NIO) क्षेत्र में 1874-2004 तक हर साल समुद्री जलस्तर में 1.06-1.75 mm की बढ़ोत्तरी हुई है। किन्तु आने बाले समय में 21 वीं शताब्दी के खत्म होने तक 300 mm (30 cm) वृद्धि दर्ज की जाएगी।
Tropical Cyclones को लेकर भी उनके आने की वृद्धि को बताया गया है। अनुमान है कि हर 10 साल के बाद 1 Tropical Cylone के आने की दर में वृद्धि होगी। जो आने वाले 70 साल में बढ़कर 6 से 7 हो जाएगी।
हिमालयन क्षेत्र पर असर
1951-2014 तक हिन्दू कुश हिमालयन क्षेत्र में 1.3 डिग्री सेल्सियस तापमान में वृद्धि हुई है इसके साथ ही यहाँ पर बर्फ़बारी भी कम हुई है। जिस कारण हिमनदों के पिघलने की दर बढ़ गयी है, आने वाले समय में यह समस्या और भी बढ़ेगी जिस कारण से निचले इलाकों में बाढ़ आने की समस्या में वृद्धि हो जाएगी।
वहीँ अगर काराकोरम रेंज की बात करें तो सर्दी के समय में बारिश की मात्रा में बढ़ोत्तरी हुई है। अगर इस क्षेत्र के तापमान में बढ़ोत्तरी को देखतें हैं तो 21 वीं शताब्दी के अंत तक अनुमान अनुसार 5.2 डिग्री सेल्सियस तापमान में वृद्धि की संभावना है। जो इस पूरे क्षेत्र के लिए काफी अधिक खतरनाक साबित हो सकता है।
दुनिया के सभी देश Climate Change को लेकर अलग अलग मंचों पर बातें करते रहते हैं। लेकिन उनसभी के द्वारा climate change को लेकर गंभीरता में कमी दिखाई देती है। पेरिस क्लाइमेट चेंज में धरती के तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखने का प्रयास असंभव ही प्रतीत होता है। इसी प्रकार से (Indian report on climate change) भारत के द्वारा अपने क्षेत्र को लेकर जो रिपोर्ट प्रकाशित की गयी है। वह क्लाइमेट चेंज के असर को भारत के लिए गंभीरता से लेने पर ध्यान केन्द्रित कराती है। climate change के विषय पर सभी राष्ट्रों को तेज़ी से विचार करना चाहिए और शक्तिशाली देशों को आगे आकर अपनी जिम्मेदारी को निभाना चाहिए। यह किसी देश की समस्या नहीं है बल्कि विश्व की समस्या है।