24 अक्टूबर को united nation को बने हुए 75 साल पुरे हो चुके हैं। इन पिछले 75 साल में भारत की क्या भूमिका रही है United Nation में, इस बात को ही जानने का प्रयास करते हैं। भारत का यूनाइटेड नेशन (India in united nation) में समय उतार चढ़ाव से भरा रहा है जिसमें 21वीं शताब्दी तक तो समस्याये ही रही हैं। किन्तु UN में भारत की स्थिति को समय के अनुसार 3 भागों में अलग कर दिया है।
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India in united nation
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1945-1990
इस समय UN में भारत के द्वारा विकाशसील देशों को एकजुट करने का प्रयास किया गया। USA or USSR दोनों ही अपनी अपनी विचारधाराओं को लेकर आमने सामने थे। एक तरह से गृहयुद्ध कि स्थिति थी। USA का मानना था पूंजीवाद को दुनिया में फैलाने का, वहीं USSR का प्रयास विश्व में समाजवाद को फैलाने का था। ऐसी स्थिति में जवाहर लाल नेहरू का प्रयास था कि न तो USA और न ही USSR का साथ दिया जाये। बल्कि 3rd world कहे जाने वाले देशों को अपने विकास को ध्यान में रखकर हित साधने का प्रयास करना चाहिए।
इस प्रयास में भारत के द्वारा गुट निरपेक्ष आंदोलन (NAM) को चलाया गया जिसका मुखिया भारत था और इसी प्रयास में 3rd world देशों को गुट निरपेक्षता में लाने का प्रयास किया। भारत का प्रयास था कि UN के द्वारा उपनिवेशवाद-विरोधी, नस्लवाद-विरोधी, परमाणु निरस्त्रीकरण, पर्यावरण संरक्षण और पर्यावरण आर्थिक विकास जैसे हितों को पूरा किया जाये। किन्तु
भारत को UN की विश्वसनीयता पर भरोषा कम ही था क्यों कि USA और UK जैसे देश कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ दे रहे थे। पाकिस्तान के साथ युद्ध की स्थिति में USA द्वारा पाकिस्तान का साथ दिया गया तो भारत के पक्ष में USSR खड़ा हुआ।
1962 के समय जब भारत का चीन से युद्ध हुआ तो भारत को उम्मीद थी कि NAM सदस्य देश भारत का साथ देगें। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। बल्कि UN में भी इंडिया के पक्ष में कुछ नहीं हुआ। इस बात से भारत को यह समझ में आ गया कि दो देशों के विवाद को खुद के स्तर पर ही खत्म करने का प्रयास करना चाहिए।
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1990-2000
1990 के बाद देश की इकॉनमी में अस्थिरता बहुत अधिक थी। 1991 से लेकर 1996 के बीच नरसिंम्हा राओ प्रधानमंत्री थे। भारत उस समय बैलेंस ऑफ़ पेमेंट(भुगतान संतुलन का संकट) के संकट से जूझ रहा था। कश्मीर में हालत ख़राब थी। नक्सलवाद भी बहुत अधिक बढ़ गया था।
USSR के भी टुकड़े हो गए थे। जो भारत के लिए भी बहुत अच्छी खबर नहीं थी। USSR के टूट जाने के बाद USA ही दुनिया में एक बड़ी शक्ति बचा था। दुनिया में एकध्रुवीय करण हुआ। जबकि भारत के USA के साथ सम्बन्ध कोई खास नहीं थे। भारत की स्थिति ख़राब होने से भारत UN में सक्रिय रूप से भागीदारी नहीं कर सका।
फिर भारत ने अपनी फॉरेन पालिसी में बदलाव किया। जब ईरान ने कुवैत पर आक्रमण कर कब्ज़ा कर लिया था तो UN सहित बाकि देशों ने भी कुवैत को ईरान से छुड़ाने के लिए अपनी अपनी सेना भेज दी।
UN में जब ईरान का मुद्दा उठा, उस पर पाबंदी लगाने के लिए, तो भारत के द्वारा भी ईरान के विपक्ष में वोट किया गया। जबकि भारत के ईरान के साथ अच्छे रिश्ते थे।
1990 के समय कश्मीर में आतंकवाद काफी बढ़ गया था, तो पाकिस्तान इंडिया को UN में मानवाधिकारों के नाम पर घेरने का प्रयास कर रहा था। ऐसी स्थिति में भारत के द्वारा पाकिस्तान को घेरने के लिए UN के मंच पर अधिक प्रयास करने पढ़ रहे थे। वहीं
यूरोप का एक देश यूगोस्लाविया, जो अब नहीं है। NAM का भी सदस्य देश था। 1999 के समय में यूगोस्लाविया कई देशों में टूट गया। नाटो के द्वारा इस देश की संप्रभुता का ख्याल नहीं रहा गया तो भारत ने रूस और चीन के साथ मिलकर प्रयास किया कि नाटो के द्वारा वहां पर हवाई सैन्य कार्यवाही बंद हो। किन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। भारत हमेशा कहता रहा है कि सभी देशों को एक दूसरे की सम्प्रभुता का ख्याल रखना चाहिए। किन्तु सैन्य कर्यवाही को बंद नहीं किया गया।
1996 में भारत के द्वारा United Nation में सीट के लिए जापान के साथ नॉन परमानेंट सीट के पद पर चुनाव लड़ा किन्तु भारत इसमें बहुत बुरी तरह हार गया। इसके बावजूद भारत समय समय पर अपने मतभेद जाहिर करता रहा।
1995 में NPT(non-proliferation treaty) जिसमें UN के 5 सदस्य देशों को परमाणु हथियार रखने से मना नहीं किया गया था। भारत ने इसका विरोध किया। 1996 में Comprehensice Test Ban Treaty का भी भारत के द्वारा विरोध किया गया। इन सब के बावजूद 1998 पोखरण परमाणु परीक्षण कर भारत के द्वारा परमाणु हथियारों को अपना लिया गया।
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2001-2020
इसके बाद 21वीं शताब्दी में भारत की स्थिति बेहतर होना शुरू होती है। भारत फास्टेस्ट ग्रोइंग इकॉनमी बना। भारत की United Nation में भागीदारी बढ़ी। UN के शांति सैन्य अभियानों में भारत के द्वारा मुख्यरूप से सेना को भेजा गया।
इसके बाद UN के Non-Traditional Security Issues में भी इंडिया जिम्मेदार भूमिका में रहा। पर्यावरण, सैन्य हथियारों, स्वस्थ्य के मामलों में भी भारत के द्वारा जिम्मेदार स्टैंड लिया गया। भारत का UN के बजट में भी सहभागिता बढ़ी जो 0.34% से 0.83% हुआ।
भारत ने UN में 21वीं शताब्दी में जो साख बनायी थी उससे भारत को फायदा भी बहुत हुआ। चाहे वह Human Right Council हो, या फिर World Bank . UN की सभी संस्थाओं में भारत सदस्य बना।
भारत UN में अपने दो सपनों को साकार नहीं कर सका। पहला Draft Comprehensive Convention on Internation Terrorism पर भारत सभी देशों की सहमति एक साथ नहीं ला सका। जिसमें आतंकवाद की परिभाषा को तय करना था। ऐसा इसलिए नहीं हुआ कि एक देश का दोस्त दूसरे का दुश्मन हो सकता है।
एवं दूसरा है United Nation Security Council में संख्या को बढ़ाया जाये। भारत के द्वारा इस पर प्रयास किये जाते रहे हैं किन्तु इस पर कोई सफलता प्राप्त नहीं हुई। India in United nation की अभी तक की पूरा सफर संक्षेप में सामने है एवं आगे की राह के लिए भारत प्रयास करता रहता है।