यह बायोटेक्नोलॉजी के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण एवं जटिल विषय है। Human Genome Project(मानव जीनोम परियोजना) की शुरुआत 1990 में हुई। इस परियोजना को अमेरिकी ऊर्जा विभाग तथा अमेरिकी राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान के द्वारा 15 वर्षों में पूर्ण करने की अवधि राखी गयी लेकिन समय से 2 वर्ष पहले ही 2003 में इस परियोजना को पूर्ण कर लिया गया।
इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य मानव जीनोम का अध्ययन था जिसके अंतर्गत मानव के समस्त आनुवांशिक पदार्थो की समझ विकसित करनी थी एवं जीनों के कुल संख्या का निर्धारण कर, सभी नाइट्रोजन क्षार अनुक्रमों और आनुवांशिक कोड के आंकड़ों को संगृहीत करना था। ऐसा करने से DNA की संरचना, संगठन एवं कार्यों के बारे में आसानी से समझा जा सकेगा।
इस परियोजना में कार्य को करने के लिए Sequence Annotation नामक जटिल तकनीक का प्रयोग किया गया है तथा प्राप्त आनुवांशिक आंकड़ों को सुपर कंप्यूटर की सहायता से संगृहीत किया गया है। किसी भी मानव जीनोम में 1 लाख तक की संख्या में जीन हो सकते हैं।
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जीनोम अनुक्रमण (Genome Sequencing)
जीनोम अनुक्रमण (Genome Sequencing) के अंतर्गत DNA अणु के अंदर न्यूक्लियोटाइड के सटीक क्रम का पता लगाते हैं तथा डीएनए में मौज़ूद चारों तत्त्वों- एडानीन (A), गुआनीन (G), साइटोसीन (C) और थायामीन (T) के क्रम पहचान करते हैं।
जीनोम के अध्ययन को जीनोमिक्स कहा जाता है।
Human Genome Project(HGP) के परिणाम
मानव जीनोम परियोजना के बाद निम्नलिखित जानकारियाँ प्राप्त होती हैं
- मनुष्य में जीनों की कुल संख्या लगभग 24000 होती हैं।
- किसी भी मनुष्य जाती में 99.9% आनुवांशिक समानता होती हैं केवल 0.1 % भिन्नता उसके विशिष्टता का कारण है।
- किसी कोशिका में कुल जीनों का 2% ही प्रोटीन के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाता है एवं यह 2% सक्रिय जीन अलग अलग कोशिकाओं में अलग अलग होते हैं।
- मानव जीनोम में पाए जाने वाले आनुवांशिक पदार्थों की बढ़ी हुई मात्रा repeated sequence में पायी जाती है। जिसे जंक डीएनए कहते है। यह प्रोटीन निर्माण में भाग नहीं लेता है।
Human Genome Project(HGP) के लाभ
Human Genome Project(मानव जीनोम परियोजना) से आनुवांशिक बीमारियों के विषय में एवं उससे जुड़े जीन की पहचान कर सही उपचार दिया जा सकता है। हृदय रोग, रक्त सम्बन्धी रोग, दमा आदि के सहायक आनुवांशिक आधारों के बारे में भी जाना जा सकता है।
किसी भी व्यक्ति के जीन में उपस्थित कमी को पहचान कर जीन चिकित्सा के द्वारा रोगों का उपचार किया जा सकता है एवं इसके अलावा मानव जीनोम के अनुरूप custom drug का निर्माण कर इलाज किया जा सकता है।
HGP की सहायता से आंकड़ों के द्वारा किसी जीन की कार्यप्रणाली और उसके द्वारा बनाये जाने वाले प्रोटीन की पहचान की जा सकती है। HGP के प्राप्त आंकड़ों के आधार पर मानव के विकास क्रम, मानव विस्थापन और अन्य जीवों के साथ मानव के संबंधों का निर्धारण किया गया है। इस कार्य के लिए मानव के जीनोम अध्ययन के साथ कई अन्य जीवों के जीनोम का भी अध्ययन किया गया।
HGP से जुड़े मुद्दे
जीनोम आंकलन से किसी भी सरकार के द्वारा किसी खास क्षेत्र के व्यक्तियों के साथ उनके आँकड़ों के आधार पर भेदभाव किया जा सकता है। जीनोम से मिले आँकड़ों के आधार पर डिजाइनर बेबी की संकल्पना को अधिक प्रोत्साहन मिलेगा।
किसी भी व्यक्ति के जीनोम अध्ययन से प्राप्त गोपनीय तथा व्यक्तिगत आनुवंशिक जानकारी का दुरुपयोग निजता को भंग करने में किया जा सकता है। किसी व्यक्ति को भविष्य में होने वाली बीमारी का पता पहले ही लगा लेना, उस पर मनोवैज्ञानिक दवाब का कारण बन सकती है।
भारत में जीनोमिक्स
भारत में जीनोम अध्ययन की शुरुआत 2002 में मानी जाती है। जब भारत बहुराष्ट्रीय चावल जीनोम परियोजना का सहभागी बना। इस परियोजना में फिलीपींस, चीन, जापान अन्य देश भी शामिल थे। भारत में चावल की कई प्रजातियों का जीनोम अध्ययन किया जा चुका है।
चावल के जीनोम से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत सुपर राइस का विकास कर रहा है यह आनुवांशिक रूप से परिवर्तित चावल होगा जिसकी पैदावार अधिक होगी, उवर्रकों का प्रयोग कम होगा एवं कई पशक तत्वों एवं विटामिनों से युक्त होगी।
इसके अलावा भी कई अन्य फसलों एवं पादपों का जीनोम अध्ययन किया जा रहा है। जैसे- गेंहूँ, सरसों, चना आदि। औषधीय गुणों वाले पौधों पर भी अध्ययन किया जा रहा है
ICMR(Indian Council of Medical Research) के द्वारा भारत में जीनोम पर अध्ययन किया जा रहा है। जिसका उद्देश्य भारत में पाए जाने वाली बिमारियों के आनुवांशिक आधारों को खोजना है। जैसे- हृदय रोग, मधुमेय, और कई प्रकार के कैंसर रोग आदि।
भारत में मानव जीनोम मैपिंग परियोजना (Human Genome Mapping Project)
इस परियोजना में 20,000 भारतीय जीनोम की स्कैनिंग करने का विचार है। इसे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology-DBT) द्वारा लागू किया जाना है।
इस परियोजना के पहले चरण में 10,000 स्वस्थ व्यक्तियों के जीनोम का अनुक्रमण किया जाएगा एवं द्वितीय चरण में 10000 रोगग्रस्त व्यक्तियों के जीनोम का अनुक्रमण होगा। यह एक बड़ी परियोजना है इसके लिए डाटा संग्रहण की जिम्मेदारी, नेशनल सेंटर फॉर सेल साइंसेज (National Centre for Cell Sciences) को दी गयी है यह मानव आंत (Human gut) से माइक्रोबायोम (Microbiome) के नमूने एकत्र करेगा।
समय के साथ बीमारियाँ भी बढ़ती जा रही हैं। यह स्थिति केवल भारत जैसे विकसित देश की ही नहीं हैं अपितु समस्त विश्व की है। जीनोम अनुक्रमण से मनुष्य के जीन के विषय में जो जानकारी प्राप्त होंगी वह जानकारी गंभीर आनुवंशिक और गैरअनुवांशिक बिमारियों से बचाव करने में कारगर साबित होगी।
इसके अलावा हम जीन की जाँच के द्वारा भविष्य में होने वाले रोगों की पहले से ही जानकारी प्राप्त कर सकेगें। जिससे स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। भारत के द्वारा भी Human Genome Project(मानव जीनोम परियोजना) पर शोध कार्य किये जा रहे हैं एवं भारत को भी इसके नैतिक और सुरक्षात्मक पक्षों को ध्यान में रखते हुए डाटा संग्रहण करना होगा।