लंदन में आयोजित माइंड स्पोर्ट ओलम्पियार्ड में मानसिक गणना विश्व चैम्पियनशिप चल रही है जिसमें नीलकंठ भानु प्रकाश ने स्वर्ण पदक जीत कर विश्व रिकॉर्ड बनाया है। ऐसा करके उन्होंने ‘मानव कैलकुलेटर’ के रूप में ख्याति प्राप्त की है। वह अभी दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज से गणित में स्नातक कर रहे हैं। यह एक प्रतिष्ठित अंतराष्ट्रीय प्रतियोगिता है। नीलकंठ भानुप्रताप की तरह भारत में रहे Human computer या Human calculator, जिन्होने मशीनों की गणनाओं को हराया हो।
-
शकुन्तला देवी
इन्हे विश्व स्तर पर human computer के नाम से जाना जाता है। अभी हाल ही में इनके जीवन पर एक फिल्म शकुन्तला देवी आयी है। इनका जन्म बंगलौर (कर्नाटक) में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ बेहद गरीब होने के कारण इनके द्वारा किसी प्रकार की औपचारिक एजुकेशन हांसिल नहीं की गयी मात्र 16 वर्ष की उम्र में इन्होने अपने समय के सबसे तेज़ कंप्यूटर को 13 अंको की संख्याओं के गुणनफल के लिए, 10 सेकंड के अंतराल से हराया था। शकुन्तला देवी को इनकी प्रतिभा के लिए वाशिंगटन डी सी में रामानुजन मैथमेटिकल जीनियस अवार्ड से सम्मानित किया गया, 2013 में मृत्यु के उपरांत इन्हे लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से भी सम्मानित किया गया है।
-
श्रीनिवास रामानुजन
कोयंबटूर(तमिलनाडु) के छोटे से गांव ईरोड में श्रीनिवास रामानुजन का जन्म हुआ जब रामानुजन 11वीं क्लास में थे तो इनका प्रेम गणित से इतना बढ़ चुका था कि यह दूसरी क्लासेज में भी गणित निकाला करते इस वजह से ऐसा हुआ कि यह 11वीं क्लास में गणित को छोड़ कर और सभी विषयों में फ़ैल हो गए। 1907 में जब इन्होंने 12वीं के एग्जाम दिए तो यह फिर से फ़ैल हो गए इस कारण इनकी पढ़ाई भी बंद हो गयी। इनकी संघर्ष भरी जिंदगी में बदलाव जिलाधिकारी रामचंद राव से मिलने के बाद आता है। उन्होंने रामानुजन की काबीलियत को पहचाना और 25 रुपये छात्रवृत्ति का प्रबंध करा दिया इसके बाद रामानुजन ने एक साल मद्रास में रहते हुए पहला शोधपत्र “जर्नल ऑफ़ इंडिया मैथमेटिकल ऑफ़ सोसायटी” में प्रकाशित किया। मात्र 33 वर्ष की उम्र तक 3884 प्रमेयों का संकलन कर दिया और 33 की उम्र में ही तपेदिक से उनकी मृत्यु हो गयी। इनका जीवन बेहद संघर्षभरा रहने के बाद भी गणित से प्रेम नहीं छोड़ा और अपने अंतिम समय तक स्वयं ही गणित की कड़ियों को सुलझाते रहे।