जेंडर गैप(Gender gap) को पाटने की पहल

Gender gap: हाल ही में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने महिला क्रिकेटरों के लिये समान वेतन की घोषणा की है। यह बोर्ड की तरफ से उठाया गया जिम्मेदारी भरा कदम है। 21 वीं सदी में लोग महिला और पुरुषों के बराबरी की बात तो करते हैं, पर ऐसा बातों के अलावा कहीं और दिखाई नहीं देता है।

USA की टेनिस प्लेयर Serena Jameka Williams ने सबसे पहले महिला प्लेयर्स के समान वेतन के मुद्दे को उठाया। उसके बाद से ही महिलाओं के समान वेतन को लेकर बाते उठती रहती हैं।

तत्कालीन विषय

■ न्यूजीलैंड क्रिकेट बोर्ड ने जुलाई में घोषणा की थी कि पुरुष और महिला दोनों खिलाड़ियों को मैचों के लिये समान रूप से भुगतान किया जाएगा।

■ समान रूप से भुगतान करने के मामले में अब BCCI दूसरी ऐसी क्रिकेट संस्था बन जाएगी।

लैंगिक असमानता और जेंडर पे गैप ?

लैंगिक असमानता

■ लैंगिक असमानता का तात्पर्य किसी समाज में लैंगिक आधार पर पुरुष और महिलाओं में अंतर करने से है। लैंगिक असमानता जैविकीय व सामाजिक दोनों अर्थों में हो सकती है। अर्थात लिंग का तात्पर्य एक ऐसी रचना से है जिसमें कुछ विशेष प्रकार की मानसिक व शारीरिक रचनाओं का समावेश होता है।

■ दूसरे शब्दों में लैंगिक असमानता का तात्पर्य उन सामाजिक मूल्यों और मानदंडों से vec 5 जो सामाजिक स्तर पर स्त्री व पुरुष में से किसी एक को महत्त्वपूर्ण मानकर उन्हें वैवाहिक, सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्र vec pi अधिक अधिकार मिलते vec 5

जेंडर पे गैप/लैंगिक वेतन समानता

समान वेतन से तात्पर्य समान कार्यस्थल पर समान पद के लिये समान वेतन देने से है। वेतन समानता में लैंगिक आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता है।

भारत में स्थिति

ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में भारत को कुल 146 देशों में 135वें स्थान पर रखा गया है। भारत का कुल स्कोर 0.625 (2021 में) से सुधरकर 0.629 हो गया है, जो पिछले 16 वर्षों में इसका सातवाँ सर्वोच्च स्कोर है। वर्ष 2021 में भारत 156 देशों में से 140वें स्थान पर था।

■ विश्व असमानता रिपोर्ट, 2022 के अनुसार, भारत में पुरुष, श्रम आय का 82% प्राप्त करते हैं जबकि महिलाएँ केवल 18% 1

समान वेतन की आवश्यकता

■ ILO की ‘ग्लोबल वेज रिपोर्ट 2020-21 ‘: कोरोना महामारी ने मज़दूरी पर भारी दबाव डाला और पुरुषों की तुलना में महिलाओं की कुल मजदूरी को असमान रूप से प्रभावित किया।

■ इसका अर्थ है कि पहले से मौजूद लिंग वेतन अंतर व्यापक हो गया है। ■ वर्ष 1993-94 में भारतीय महिलाओं ने पुरुष समकक्षों की तुलना में 48% कम आय अर्जित की है। ■ वर्ष 2018-19 में यह अंतर घटकर 28% रह गया।

■ महामारी के दौरान, वर्ष 2018-19 और 2020-21 के बीच इस अंतर में 7% की वृद्धि हुई। लघु और दीर्घकालिक प्रभाव

■ जेंडर पेगैप सहित श्रम बाजार में भेदभाव और असमानता को दूर करने में विफलता, पहले से ही अस्वीकार्य रूप से कामकाजी गरीब महिलाओं की संख्या में वृद्धि करती है और अधिक महिलाएँ गरीब की सीमा रेखा में प्रवेश कर जाती हैं।

एक महिला के कामकाजी जीवन पर लैंगिक वेतन अंतर के दीर्घकालिक प्रभावों में से एक उसकी सेवानिवृत्ति में एक विशाल पेंशन अंतराल है। ■ आँकड़ों के अनुसार, दुनिया भर में अत्यधिक गरीबी में रहने वाली बुजुर्ग

महिलाओं की संख्या बढ़ रही है। ■ वर्तमान में मजदूरी रोजगार में लगभग 40 प्रतिशत महिलाएँ पेंशन, मातृत्व सुरक्षा योजनाओं, व्यावसायिक बीमारी और दुर्घटना बीमा और अन्य सहित सामाजिक सुरक्षा उपायों में योगदान नहीं करती हैं।

■ वे बुनियादी सामाजिक सुरक्षा गारंटी से आच्छादित नहीं हैं जो राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित की जा सकती हैं।

■ सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा की कमी के साथ लैंगिक वेतन और पेंशन अंतराल गंभीर रूप से सतत विकास लक्ष्यों (लैंगिक समानता और सभ्य कार्य की उपलब्धि और सभी उम्र के लोगों के लिये स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती को बढ़ावा देना) की पूर्ति को खतरे में डालते हैं, जो गरीबी और भुखमरी को समाप्त करने का आह्वान करते हैं।

सुधार

■ लैंगिक वेतन अंतर को समाप्त करने के लिये उपायों के एक पैकेज की आवश्यकता है, जिसका केंद्र सभ्य कार्य है।

■ लैंगिक वेतन अंतराल को कम करने के सबसे प्रभावी और तेज तरीकों में से एक न्यूनतम जीवित मजदूरी और सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा है न्यूनतम जीवित मजदूरी सभी कम वेतन वाले श्रमिकों को लाभान्वित करती है।

■ चूँकि महिलाओं को कम वेतन वाले कार्यों में बहुत अधिक प्रतिनिधित्व दिया जाता है इसलिये यह कदम महिलाओं को अधिक नाटकीय रूप से लाभान्वित करेगा।

■ इसे सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा द्वारा समर्थित करने की आवश्यकता है, औपचारिक और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में श्रमिकों (जिनमें से अधिकांश महिलाएँ हैं) के लिये आय सुरक्षा, भुगतान मातृत्व अवकाश, बच्चे की देखभाल और अन्य सामाजिक और स्वास्थ्य देखभाल सहायता, बीमारी के लिये बीमा और सेवानिवृत्ति में पर्याप्त पेंशन के प्रावधान किये जाने की आवश्यकता है।

■ यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि श्रमिकों को संघ बनाने की स्वतंत्रता है और सामूहिक रूप से संगठित होने और सौदेबाजी करने का अधिकार है।

■ गुणवत्तापूर्ण सार्वजनिक बाल और बुजुगों की देखभाल सेवाओं का प्रावधान, परिवार के अनुकूल कार्य स्थल नीतियाँ और पुरुषों को देखभाल की जिम्मेदारियों को साझा करने के लिये प्रोत्साहित करने वाले नीतिगत

उपायों की आवश्यकता है।

■ वेतन से संबंधित मानदंडों और निर्णयों में कंपनियों के भीतर पारदर्शिता से भी लैंगिक पक्षपात को रोकने में मदद मिल सकती है।

GLOBAL GENDER GAP INDEX 2022

Released by World Economic Forum

GENDER EQUALITY 135 रैंक 146 में से

अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप

■ संयुक्त राष्ट्र ने अपने कार्यों के केंद्र में लैंगिक असमानता के विभिन्न रूपों को समाप्त करने की चुनौती रखी है।
■ अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन (ILO) ने अपने संविधान में ‘समान मूल्य के काम के लिये समान वेतन’ को शामिल किया है।
■ महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (CEDAW), लैंगिक समानता को साकार करने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।

■ समान वेतन अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन (EPIC) 2017 की स्थापना की। • ILO, UN महिला और आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) के नेतृत्व में एक बहु-हितधारक पहल की गई।

भारत द्वारा उठाए गए कदम

■ न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 19481

■ समान पारिश्रमिक अधिनियम, 19761

■ मज़दूरी पर कोड, 20191

■ महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA), 20051

■ सीधे कार्यक्रम में भाग लेने वाली महिला श्रमिकों के वेतन स्तर में वृद्धि की गई।

■ परोक्ष रूप से- उच्च आय के माध्यम से कृषि व्यवसायों में शामिल महिलाओं को अर्जित लाभ।

■ संशोधित मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 (2017)
■ 10 कर्मचारियों को रोजगार देने वाले प्रतिष्ठानों में काम करने वाली

महिलाओं के लिये ‘वेतन सुरक्षा के साथ मातृत्व अवकाश’ को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया गया है।

■ औपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करने वाले औसत और उच्च वेतन पाने वालों में मातृत्व वेतन अंतर को कम करना।

■ स्किल इंडिया मिशन और

■ सीखने से आजीविका के अंतर और लिंग वेतन अंतर को पाटने के लिये महिलाओं को बाज़ार-प्रासंगिक कौशल से लैस किया जा रहा है।

जबकि लैंगिक वेतन अंतराल धीरे-धीरे कम हो रहा है, प्रगति की वर्तमान दर पर इसे पूरी तरह से समाप्त करने में 70 साल से अधिक समय लगेगा। लैंगिक वेतन अंतर को बढ़ने से रोकने और मौजूदा अंतर को समाप्त करने के लिये त्वरित और साहसिक कार्रवाई की आवश्यकता है।

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