भारत इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों के सबसे बड़े बाजारों में से एक है। ई-कचरे(E-Waste in Hindi) पर United Nations University (UNU) की रिपोर्ट Global E-waste के अध्ययन में यह कहा गया है कि ई-कचरा पैदा करने के मामले में USA और China के बाद भारत का दुनिया में तीसरा स्थान है।
वहीं राज्यों के स्तर पर देखें तो महाराष्ट्र देश का का सबसे अधिक ई-कचरा पैदा करने वाला राज्य है। आज के समय में ई-कचरे की यह समस्या भारत सरकार के स्वच्छ भारत अभियान के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। जहाँ एक तरफ सरकार डिजिटल इंडिया की बात करती है तो उसके सामने कचरा, प्लाष्टिक, जैसी समस्यायें भी सामने खड़ी हैं।
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ई-कचरा क्या है?(what is E-Waste in Hindi)
E-Waste से सीधा तात्पर्य electronic waste से है। आज हम सभी की दुनिया फ़ोन, लैपटॉप, टीवी, आदि इलेक्ट्रॉनिक्स मशीनों से भर गयी है। जब ये इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण बेकार हो जाते हैं, उस स्थिति में ये उपकरण लोगों के लिए किसी काम के नहीं रहते, तो यही इलेक्ट्रॉनिक्स कचरे का ढेर E-waste कहलाने लगता है।
ई-कचरे के प्रभाव(E-Waste in Hindi)
कहरे में शामिल विषैले तत्व और उसके निस्तारण में उपयोग असुरक्षित तरीकों से मनुष्य के स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है और जिसकी वजह से तरह तरह की बिमारियों की सम्भावनायें बनी रहती हैं। ऐसा माना जाता है कि एक कंप्यूटर के निर्माण में 51 प्रकार के ऐसे घटक होते हैं जिन्हे जहरीले माना जाता है। ये पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक होते हैं। ई कचरे में शामिल ज्यादातर सामग्रियों में पारा, कैडमियम, और क्रोमियम जैसे कई विषैले तत्व शामिल होते हैं। ये तत्व जलाये जाने पर सीधे वातावरण में घुलते हैं। जिसके गंभीर परिणाम लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ते हैं।
दुनिया आज जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने का प्रयास कर रही है तो वहीं विकल्प के रूप में उसकी जगह इलेक्ट्रॉनिक और लिथियम आयन बैटरी तथा अन्य प्रकार की बैटरियों की ओर अपनी निर्भरता को बड़ा रही हैं। सरकारों के द्वारा इलेक्ट्रिक वाहनों को तेज़ी से बढ़ावा दिया जा रहा है। किन्तु इनमें लगी बैटरियों के ख़राब होने पर उन्हें कचरे के रूप में फेंका दिया जाता है। इन्हे नष्ट करने पर लेड जैसी भारी धातुएं निकलती हैं। लेड जैसी भारी धातुओं को चपेट में आकर दुनियाभर में हर साल लाखों लोग की जान जाती है।
साधारणतः ई कचरे के निस्तारण में ताम्बा, सोना, चाँदी जैसी महँगी धातुएं भी निकलती हैं। ई-कचरे के निस्तारण की प्रक्रिया में विषैला धुआं निकालता है जिससे फेफड़े और दिल की बीमारियां होती हैं। ई-कचरे के निस्तारण में ज्यादातर लोग गरीब और निचले तबके के होते हैं जो कि विषैले तत्वों की जानकारिओं से पूरी तरह अंजान होते हैं।
जानकारों के अनुसार ई कचरे को पुनः उपयोग में लाने में खतरा कम है किन्तु जब इसे जलाया या एसिड में गलाया जाता है तो इससे गंभीर खतरे उत्पन्न होते हैं। भूमि में कचरे को दबाकर भी इसका निस्तारण करने के प्रयास किये जाते हैं किन्तु इससे भू-जल के दूषित होने की समस्याएं भी सामने आती हैं। इस प्रकार से इन विषैले तत्वों का हमारे खाद्य श्रृंखला में शामिल होने का खतरा भी बढ़ जाता है जो तत्कालीन तो नहीं किन्तु दुर्गामी गंभीर समस्याएं के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।
ई-कचरे की समस्या(E-Waste in Hindi)
बढ़ते कचरे के साथ भारत में प्लास्टिक की समस्या भी बढ़ती जा रही है। देशभर में प्रतिवर्ष लगभग 62 मिलियन टन कचरा पैदा होता है जिसमें 5.6 मिलियन टन प्लास्टिक का योगदान है। देश में पैदा हो रहे इस 62 मिलियन टन कचरे में से सिर्फ 43 मिलियन टन कचरा ही एकत्र किया जाता है जिसमें से महज 11.9 मिलियन टन कचरा ही recycle हो पाता है। एक अनुमान के मुताबिक 2030 तक यही कचरा बढ़कर 165 मिलियन टन या उससे भी अधिक होने की संभावना है।
देश में कचरा शोधन की दर अभी बहुत कम है। देश में महज 30 फीसदी कचरे का शोधन ही हो पाता है। देश में अभी ठोस कचरे और एनर्जी कचरे दोनों के निस्तारण प्लांट अभी बहुत कम हैं।
कचरे के निस्तारण के लिए प्रयास(E-Waste in Hindi)
देश में कई ऐसे संस्थान हैं जो ई कचरे के निस्तारण में प्रयास कर रहे हैं। IIT मद्रास के शोधार्थियों ने ई-सोर्स नाम से एक प्लेटफॉर्म बनाया है जो ई कचरे की मरम्मत और उसे फिर से उपयोग में लाने के अवसर बढ़ाने में मदद करेगा। इसके अलावा कई ऐसे NGO हैं जो ई-कचरे को निपटाने के लिए कार्य कर रहे हैं। बंगलुरु स्थित ‘साहस’ नाम से एक ऐसा ही संगठन है जो ई-कचरे को रीसाइक्लिंग करने पर कार्य कर रहा है।
ई-कचरे के निपटान के लिए ऑस्ट्रेलिया की तर्ज पर देश में ई कचरे के निस्तारण के लिए Microfactory का निर्माण करना चाहिए। दुनिया में अभी तक ई-कचरे के निपटान के लिए कोई खास तरीके इज्जत नहीं किये गए। किन्तु इस microfactory के जरिये ई कचरे को recycle कर उसे कीमती सामानों में तब्दील करने में सफलता दिख रही है। इस microfactory में छोटी-छोटी मशीनों की श्रृंखलाएं होती हैं। जिसमें पहले कचरे के कीमती हिस्सों की पहचान की जाती हैं। फिर इसे भट्टी में नियंत्रित तापमान में उपयोगी हिस्सों को कीमती सामानों में बदल दिया जाता है।
ई-कचरे(E-Waste in Hindi) की समस्या जो आज कम छोटी हो सकती है। यह आने वाले समय में और भी बड़ी मुश्किलें सामने लाने वाली हो सकती हैं। इसका एक कारण व्यक्ति की जरूरतें और तेज़ी से बदलती ऊर्जा जरूरतें भी एक कारण है। इलेक्ट्रॉनिक्स के भंडार में जितनी तेज़ी से विज्ञान आगे बढ़ेगा उतनी ही तेज़ी से कचरे का ढेर भी, और निस्तारण के उपाय अभी सीमित ही हैं।