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डीएनए फिंगरप्रिंटिंग क्या है?(DNA Fingerprinting in Hindi)
डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एक प्रयोगशाला तकनीक है जिसका उपयोग मानव डीएनए के कुछ न्यूक्लियोटाइड अनुक्रमों के आधार पर किसी व्यक्ति की संभावित पहचान निर्धारित करने के लिये किया जाता है जो व्यक्तियों के लिये अद्वितीय हैं।
डीएनए फिंगरप्रिंटिंग की उत्पत्ति
■ डीएनए फिंगरप्रिंटिंग का विकास वर्ष 1984 में यूनाइटेड किंगडम में एलेक जेफ्रीज़ द्वारा किया गया था, इसके बाद जेफ्रीज़ ने खोजा कि किहीं दो लोगों का डीएनए अनुक्रम समान नहीं हो सकता है।
■ खोज के तीन वर्षों के भीतर, डीएनए साक्ष्य के आधार पर विश्व में पहली बार यूनाइटेड किंगडम में बलात्कार और हत्या के एक मामले में किसी व्यक्ति को सज़ा दी गई।
■ डीएनए को कई स्रोतों, जैसे- बाल, हड्डी, दाँत, लार और रक्त से प्राप्त किया जा सकता है।
• यहाँ तक कि उपयोग किये गए कपड़े, लिनन, कंघे या प्रायः उपयोग की जाने वाली अन्य वस्तुओं से भी नमूने निकाले जा सकते हैं।
क्योंकि मानव शरीर में अधिकांश कोशिकाओं में डीएनए होता है, इसलिये शारीरिक द्रव या ऊतक की एक छोटी-सी मात्रा भी उपयोगी जानकारी प्रदान कर सकती है।
उपयोगिता(DNA Fingerprinting Uses)
– पितृत्व परिक्षणः डीएनए फिंगरप्रिंटिंग तकनीक का उपयोग फॉरेंसिक परीक्षणों और पितृत्व परीक्षणों में डीएनए विश्लेषण के लिये किया जाता है।
■ अपराध अनुसंधानः हत्या, बलात्कार, चोरी आदि के मामलों में इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
■ कंज्यूमर प्रोडक्ट्स की प्रमाणिकता: उत्पाद में डीएनए सीक्वेंस स्थापित करने से उत्पाद की प्रमाणिकता की जाँच की जा सकती है।
वन्यजीव संरक्षण में: जंगली जानवरों की विभिन्नताओं और उनकी इन्ब्रीडिंग के लिये इसका उपयोग किया जाता है।
■ रक्षा क्षेत्र में: जवानों के रक्त के नमूने संरक्षित करके उनके गुमशुदा होने पर क्षत-विक्षत शरीर प्राप्त होने पर उनकी पहचान की जा सकती है।
■ कृषि में: पुनः संयोजक डीएनए का प्रयोग कर नाइट्रोजन स्थिरीकरण क्षमता बढ़ाकर, बैक्टीरिया के जीन्स की क्लोनिंग करके और उन्हें पौधों की कोशिकाओं में डालकर पौधों की वृद्धि में सुधार किया जा सकता है।
DNA: भारत के संदर्भ में
■ भारत में वर्ष 1988 में लालजी सिंह ने हैदराबाद में सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (CCMB) में अपराध जाँच के लिये डीएनए फिंगरप्रिंटिंग का विकास किया।
■ लालजी सिंह को ‘भारत में डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के जनक’ के रूप में जाना जाता है, वर्ष 2017 में इनका निधन हो गया।
■ भारत में वर्ष 1989 में केरल पुलिस द्वारा एक मामले में पहली बार DNA फिंगरप्रिंटिंग का उपयोग किया गया था।
चुनौतियाँ
-पारिस्थितिक प्रभावः सूर्य के प्रकाश, आर्द्रता और गर्मी के लंबे समय तक संपर्क में रहने के कारण DNA नमूने का ह्रास हो सकता है।
■ अविश्वसनीय परिणाम: DNA नमूने को इकट्ठा करने में प्रयोग किये जाने वाले यंत्र संबंधी त्रुटियाँ भी अविश्वसनीय परिणाम दे सकती हैं।
■ गोपनीयता के मुद्देः किसी व्यक्ति की संवेदनशील आनुवंशिक जानकारी किसी अन्य व्यक्ति के सामने आ जाती है और यह मानवाधिकारों के विरुद्ध है।
■ सुरक्षा चिंताएँ: डीएनए प्रोफाइल रखने वाले डीएनए डेटाबेस सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ पैदा करते हैं।
■ विशेषज्ञता की कमी: नमूने के गलत संचालन की ओर ले जाती है। ■ नमूनों का आपस में मिश्रणः भ्रष्टाचार, सबूतों के साथ छेड़छाड़, नमूने की लेबलिंग के दौरान गलत धारणा संभव है।
समूहों को लक्षित करनाः प्रायः एक जातीय समूह के लोगों को दोषी ठहराया जाता है और उन्हें लक्षित किया जा सकता है।
० हालाँकि, विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि डीएनए प्रोफाइलिंग से धर्म की पृष्ठभूमि या पहचान का कोई संबंध नहीं है।
■ डीएनए फिंगरप्रिंटिंग कुछ ही स्थानों पर उपलब्ध है- महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, हैदराबाद और चंडीगढ़ ।
■ प्रौद्योगिकी में उन्नत अभ्यास हैदराबाद में सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स (CDFD) तक ही सीमित हैं।
सुझाव
■ DNA नमूनों का दुरुपयोग किये जाने पर कानून द्वारा स्वीकृति और 100% सज़ा दर सुनिश्चित होनी चाहिये।
■ यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि जाँचकर्त्ताओं का डीएनए पीड़ितों या संदिग्धों के डीएनए के साथ मिश्रण न हो जाए।
■ डेटा संग्रह और रखरखाव में डीएनए प्रोफाइलिंग की आशंकाओं को दूर करने के लिये निर्दोष लोगों के लिये कानूनी ढाँचे की आवश्यकता है।
■ ह्यूमन डीएनए प्रोफाइलिंग बिल को सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है।
■ एक अपराध स्थल से जीवाणुरहित औज़ारों से नमूने उठाना और नमूनों को उचित तरीके से संगृहीत करना साक्ष्य के लिये न्यायिक परीक्षण में खड़े होने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।