डिजिटल डिवाइड(Digital Divide in Hindi) से बढ़ती दूरियां

डिजिटल डिवाइड(Digital Divide in Hindi) शब्द का महत्व कोरोना महामारी में साफ़ दिखायी पड़ा। एक तरफ आधुनिकता के पैर फैलाने की सिफारिश की जाती है तो दूसरी तरफ इसके द्वारा पैदा हो रही खायी के विषय में आवाज उठायी जाती है। ऐसा नहीं है कि इसका असर किसी एक क्षेत्र विशेष पर ही हो बल्कि इसका प्रभाव सर्वव्यापी है।

डिजिटल डिवाइड क्या है?(Digital Divide in Hindi)

किसी भी समाज, देश, क्षेत्र में लोगों को आधुनिक तकनीक पर चलने वाले यंत्रो कंप्यूटर, मोबाइल, इंटरनेट आदि का ज्ञान नहीं हो। उसे किस प्रकार से इस्तेमाल किया जाता है, इस विषय में साधारण जानकारी न हो। परन्तु उस समाज, देश, क्षेत्र के ऐसे लोग जिन्हे इंटरनेट, कंप्यूटर, मोबाइल का ज्ञान हो, उसे इस्तेमाल करने की जानकारी हो, आधुनिकता के कारण पैदा हुई यही खायी डिजिटल डिवाइड है।

डिजिटल डिवाइड का सीधा संबंध इंटरनेट, कंप्यूटर, आधुनिक तकनीक के प्रयोग से है। समय के साथ इन तकनीकों में बहुत तेज़ी से बदलाव हो रहा है। जो 21 वीं शताब्दी में आज भी बहुत से लोगों की पहुंच से दूर है।

डिजिटल डिवाइड पर NSO की रिपोर्ट(Digital Divide in Hindi)

कोरोना महामारी में स्कूल कॉलेज, कंपनियों के बंद होने से ऑनलाइन माध्यम से शिक्षा और कार्य पर बल दिया गया। ऐसी स्थिति में ऑनलाइन माध्यमों से जो खामियां सामने आयी। वह रूकावट और कमजोरियों को जाहिर करते हैं। NSO के द्वारा जो बताया गया उसके अनुसार देश में केवल 10% लोगों के पास गैजेट्स हैं। और 10 में से 1 घर पर ही इंटरनेट की सुविधा मौजूद है। ऐसे में दिल्ली की स्थिति अच्छी है। उसके बाद हिमाचल प्रदेश और फिर केरल राज्य को शामिल किया गया है। देश में सबसे अधिक इंटरनेट का इस्तेमाल दिल्ली में किया जाता है।

नॉर्थ ईस्ट के असम राज्य की स्थिति बहुत ख़राब है यहाँ केवल 10% लोग ही इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं वही दिल्ली में यही प्रतिशत दर 55% है। इसका मललब देश में इंटरनेट के उपयोग करने वालों की प्रतिशत दर 10-55% ही उच्चतम सीमा है। कर्नाटक और तमिलनाडु IT HUB कहे जाने वाले क्षेत्रों में भी इंटरनेट और गैजेट्स के इस्तेमाल मात्र 20% है।

आयु के आधार पर अगर देखें तो 15- 29 साल तक के मात्र 40% लोग ही इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं।  असम जैसे राज्यों में 80% सम्पन्न लोग इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं करते। यह सभी आधार राज्यों और क्षेत्रों के इंटरनेट तकनीकी विकास से संघर्ष को दिखते हैं।

ऑनलाइन एजुकेशन में स्थिति

ऑनलाइन एजुकेशन के क्षेत्र में देश में बहुत भिन्नता है। छत्तीसगढ़, झारखंड, असम आदि राज्यों के दूरदराज क्षेत्रों में बहुत सी जगह इंटरनेट की सुविधा नहीं है, अगर इंटरनेट उपलब्ध है तो गुणवत्ता की कमी है, इंटरनेट की स्पीड नहीं है। इन स्थितियों में विद्यार्थियों को परेशानी उठानी पड़ती है। और यह भी जरुरी नहीं है कि परिवार के सदस्य मोबाइल और इंटरनेट का पैसा वहन करने में समर्थ हो, इसके अलावा आदिवासी क्षेत्रों में बच्चों को पड़ने के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। इन जगहों पर सुविधाओं की उपलब्धता कठिन है।

शहरी क्षेत्रों में स्थिति थोड़ी बेहतर है। डिजिटल एजुकेशन को लेकर स्कूलों ने बेहतर कार्य किया है लेकिन यह स्थिति सरकारी स्कूलों में भी हो, ऐसा नहीं है। शहरी क्षेत्रों में समस्या का मुख्य कारण आर्थिक असमानता है। क्यों कि प्राइवेट स्कूल में पड़ने वाले बच्चों के पास अधिकांशः सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध हो जाती है किन्तु यह स्थिति सरकारी स्कूलों के बच्चों पर लागू नहीं होती।

विश्वविद्यालय के स्तर पर किसी भी यूनिवर्सिटी के अंतर्गत बहुत से कॉलेज आते हैं। यूनिवर्सिटी होने के नाते वहां डिजिटल सुविधाओं की उपलब्धता और देख रेख बेहतर होती है। किन्तु यूनिवर्सिटी द्वारा मान्यता प्राप्त कॉलेज कहीं कहीं मूलभूत सुविधाओं से भी पूर्ण नहीं होते। ऐसे में ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाई या पेपर होने में छात्रों को ही समस्या होती है।

डिजिटल डिवाइड के कारण(Digital Divide in Hindi)

किसी भी देश की भौगोलिक स्थिति भी डिजिटल डिवाइड का एक मुख्य कारण है। भारत के संदर्भ में बात करें तो नॉर्थ ईस्ट और हिमालय का क्षेत्र भौगोलिक विविधिता को समेटे हुए है। इस वजह से इन क्षेत्रों में इंटरनेट की पहुंच एक कठिन कार्य है। शहरों से दूर गॉव के स्तर पर स्थिति और भी ख़राब हो जाती है। जिसमें शिक्षा, साक्षरता का न होना भी बहुत बड़ा कारण है। जैसे बिहार राज्य में शिक्षा का स्तर बहुत निम्न है।

केरल राज्य को छोड़ दे तो साक्षरता को लेकर किसी राज्य ने बहुत अधिक विकास नहीं किया। किसी भी राज्य के द्वारा डिजिटल डिवाइड  को कम करने का रास्ता शिक्षा और तकनीकी ज्ञान के माध्यम से होकर ही गुजरता है।

इंटरनेट का बच्चों पर असर

3-5 साल के छोटे बच्चों में मोबाइल, टेबलेट की लत लगती जा रही, इतनी कम उम्र में बच्चे को खिलोने के रूप में मोबाइल देना उसके मानसिक विकास को मंद कर सकता है। इतनी कम उम्र में बच्चे को नहीं मालूम कि इसका सही कार्य क्या है। किसी भी सोशल प्लेटफॉर्म पर AI(artificial intelligence) की मदद से वही दिखता है जो आप देखना चाहते हैं। और इंट्रेस्ट के हिसाब से उसी की पुनरावृति करता रहता है। इससे विविधतापूर्ण विकल्पों से सिखने की सोच में कमी आती है।

कम्यूनिकेशन कंपनियों की भूमिका

डिजिटल तकनीक का जो भी विकास दिखाई  पड़ता है वह कुछ सालों में ही सामने आया है। 2g और 3g के समय से आज के 4g की कल्पना में बहुत बड़ा अंतर है। जिस प्रकार से देश में 4g आया। और कंपनियों के द्वारा डाटा प्लान्स को आकर्षक बनाया गया। इसके साथ ही साथ मोबाइल के प्रचलन ने, लोगों को डिजिटली सक्षम होने की ओर कोशिश की है।

कंपनियों के द्वारा 4g के बाद 5g इंटरनेट सेवा लाने की तैयारी चल रही। यह सेवा 4g से कई गुना तेज़ है। इसके आने से डिजिटल डिवाइड को कम करने में मदद मिलेगी। लेकिन उसके लिए मोबाइल ओर इंटरनेट क्रांति को उन क्षेत्रों तक पहुंचना होगा जहाँ पहुंचना आसान नहीं है।

तकनीक जितनी लाभकारी है तो उसके कुछ नुकसान भी हैं। इसलिए पहले इसके इस्तेमाल के मानकों को तय करना होगा, पहुंच को सुनिश्चित करना होगा। डिजिटल डिवाइड (Digital Divide in Hindi) कोरोना के समय में नयी चुनौतियों को उजागर किया है। जिन्हे हल करना होगा।

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