भारत में डेरी फार्मिंग(Dairy Farming in India)

भारत में डेरी फार्मिंग(Dairy Farming in India) का विकास इंडियन डेरी कोऑपरेटेड सोसाइटी के आसपास से शुरू होता है। यह सोसाइटी गुजरात के आनंद जिले में स्थित है। 1946 में बने इस कोपरेटिव सोसाइटी का असली नाम कैरा डिस्ट्रिक्ट कोआपरेटिव मिल्क प्रोडूसर यूनियन लिमिटेड है। जिसके प्रोडक्ट को अमूल का ब्रांड नाम दिया गया। अमूल की कहानी न केवल मिल्क कोआपरेटिव सोसाइटी की है। बल्कि यह कहानी ब्रिटिश के खिलाफ भारतीय किसानों के संघर्ष की भी है। जिसे सरदार बल्लभ भाई पटेल ने दिशा दिखाई।

अमूल ने अपनी सफलता से वाइट रेवोलुशन को आगे बढ़ाया। जिससे बड़े स्तर पर डेरी किसानों को फायदा मिला। Dr Verghese Kurien (वर्गीज कुरियन) द्वारा लेड वाइट रेवोलुशन के चलते अमूल कोआपरेटिव सोसाइटी को पूरे देश में स्थापित किया गया। जिन्होंने भारत को सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बनाया।

आज के समय में अमूल को गुजरात कोआपरेटिव दुग्ध मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड के द्वारा नियंत्रित किया जाता है जो गुजरात के 3.6 मिलियन मिल्क प्रोडूसर द्वारा चलाया जाता है। इसमें गुजरात के 13000 गावं में फैले हर दुग्ध मालिक को बराबरी का हिस्सा हांसिल है।

गुजरात कोआपरेटिव मिल्क फेडरेशन जो अमूल ब्रांड को बेचा करती है। उसने 2020-21 के फाइनेंसियल साल में 39248 करोड़ का टर्नओवर रजिस्टर किया था। गुजरात कोआपरेटिव मिल्क फेडरेशन 2025 तक 1 लाख करोड़ का टर्नओवर प्लान कर रहा है।

यह एक ऐसी कोआपरेटिव सोसाइटी थी जिसके बारे में मानना था कि वह कुछ दिनों से ज्यादा चल नहीं पायेगी। क्यों कि इस क्षेत्र में ब्रिटिश कंपनियों का एकाधिकार पहले से ही मौजूद था। इस चुनौती से निपटते हुए अमूल आज के समय न केवल इंडिया बल्कि दुनिया में मिल्क प्रोडक्शन के लिए जाना जाता है।

भारत में डेरी फार्मिंग का सफर(Dairy Farming in India)

आजादी से पहले कैरा (गुजरात) के दुग्ध किसानों की स्थिति भारत के अन्य किसानों जैसी ही थी। यहां के किसान अपनी स्थिति से परेशान थे। दुग्ध व्यवसाय में कांट्रेक्टर का वर्चस्व था किसानों को मजबूरीवश अपने दुग्ध को कॉन्ट्रैक्टर्स को सस्ते दामों पर देना पड़ता था और कॉन्ट्रैक्टर्स इस महंगे दामों पर बेचकर भारी मुनाफा कमाते थे। कैरा के किसानों को इस विषय में पूरी जानकारी थी किन्तु दुग्ध किसानों का शोषण तब और बढ़ गया जब 1945 में बॉम्बे सरकार ने बॉम्बे मिल्क स्कीम की शुरुआत की। इस स्कीम के तहत दूध को बॉम्बे से गुजरात के आनंद शहर भेजकर यहां से ट्रांसपोर्ट करना था इसके लिए बॉम्बे सरकार ने polsons limited से समझौता किया किन्तु यह समझौता किसानों को छोड़ बाकि सभी के लिए लाभ का सौदा था। फिर एक समय ऐसा आया कि किसानों का असंतोष चरम पर पहुंच गया। तब किसानों ने सरदार बल्लभ भाई पटेल से मदद लेने की सोची।

सरदार पटेल ने इस समस्या से निदान के लिए किसानों को खुद का कॉर्पोरेट बनाने की सलाह दी। किन्तु उन्हें यह बात भी मालूम थी कि सरकार इतनी आसानी से मंजूरी नहीं देगी। इसके लिए उन्होंने किसानों से हर परिस्थिति से जूझने के लिए कहा और यह भी सुझाव दिया यदि ब्रिटिश सरकार अनुमति नहीं देती तो उन्हें दूध के उत्पादन को पूरी तरह बंद करना होगा।

सरदार पटेल दुग्ध किसानों की सहायता के लिए श्री मोरारजी भाई देसाई को कैरा जिला भेजते हैं। जहाँ उन्हें एक दुग्ध कोआपरेटिव सोसाइटी व्यवस्थित करनी थी और यदि  जरुरत पड़े तो दुग्ध स्ट्राइक भी।

मोरारजी भाई देसाई 4 jan 1946 को समरखा गांव में एक मीटिंग बुलाते हैं जिसमें यह निश्चित किया जाता है कि कैरा जिले के हर गांव में एक कॉर्पोरेट सोसाइटी बनायीं जाएगी। जहाँ वह अपने सदस्यों से दूध एकत्र करेंगी। ये सभी सोसाइटी एक यूनियन को पूरा दूध सप्लाई करेगी। जिसके पास खुद की दुग्ध प्रॉसेसिंग क्षमता होगी। सरकार को इस यूनियन से दूध लेने के लिए एक एग्रीमेंट करना होगा और यदि ऐसा नहीं होता है तो कैरा जिले से कोई भी किसान दूध नहीं देगा।

ब्रिटिश सरकार ने उम्मीद के मुताबिक कोऑपरेटिव बनाने से इंकार कर दिया। जिसके बाद किसानों से स्ट्राइक कर दी। यह स्ट्राइक 15 दिन चली इन 15 दिनों में कैरा जिले से एक बूंद दूध नहीं दिया गया। इसके बाद बॉम्बे मिल्क कमिश्नर आते हैं। जिनके द्वारा किसानों की मांग को मान लिया जाता है।

यही से शुरुआत होती है कैरा डिस्ट्रिक्ट कोआपरेटिव मिल्क प्रोडूसर यूनियन आनंद की जिसे 14 dec 1946 को औपचारिक रूप से रजिस्टर कर लिया गया। इस कोऑपरेटिव का मकसद था कि दुग्ध उत्पादक किसानों के लिए बेहतर बाजार उपलब्ध कराये जाये। 1948 में कैरा जिले ने बॉम्बे मिल्क स्कीम के लिए दूध निर्यात करना शुरू किया। इससे दुग्ध किसानों को निश्चित बाजार मिला और धीरे धीरे दुग्ध किसानों की संख्या इससे जुड़ती गयी। इस बढ़ती हुई संख्या को बॉम्बे मिल्क स्कीम सहन करने में असमर्थ थी।

Father of the White Revolution-Dr Verghese Kurien

इस समस्या का हल निकला Dr Verghese Kurien ने निकला। उस समय वह अमेरिका से अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी कर वापस हुए थे। तभी त्रिभुवन दास पटेल ने उन्हें इस नयी कोआपरेटिव को आगे बढ़ाने के लिए कहा। मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री के बावजूद उन्होंने दूध इंडस्ट्री में अपना कीमती समय देने को प्राथमिकता दी।

इन्होने कैरा कोआपरेटिव का नाम बदलकर अमूल रखा। इनकी देखरेख में अमूल मार्केटिंग और सप्लाई के मामले में नहीं ऊँचाइयाँ छूने लगा। Dr kurien ने अपने मित्र H.M Dalaya से मदद ली जिन्होंने अतिरिक्त दूध से मिल्क पाउडर और कंडेंस्ड मिल्क बनाने की सलाह दी। यह कदम भारत के लिए मददगार साबित हुआ और जल्द ही Amul Nestle जैसी कंपनी को चुनौती देने लगा।

फिर Dr G H Wilster के द्वारा cheese का प्रोडक्शन भी शुरू किया गया। भारत में गायों से ज्यादा भैंस का दूध इस्तेमाल में लिया जाता है और इन सभी प्रोडक्ट को बनाने में अधिकांश श्रेय भैंस के दूध का ही था।

सरकार की तरफ से भी अमूल को लगातार बढ़ावा दिया गया। पंडित नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री ने अमूल को प्रमोट करने अपने काल में लगातार मदद की। लाल बहादुर शास्त्री ने नेशनल डेरी डेवलपमेंट बोर्ड(NDDB) का गठन किया। जिसे पूरे देश में कैरा कोआपरेटिव जैसी मूवमेंट पूरे देश में लाने की जिम्मेदारी दी गयी। इसके बाद Dr Kurien की मदद से गुजरात के आनंद में देश की पहली मॉडर्न डेरी स्थापित की गयी। इसके बाद कई और जगह जैसे महेसाना, समरकण्ठा, वड़ोदरा, सूरत आदि जगह पर डेरी लगाई गयी और अलग अलग कोआपरेटिव बनाई गयी।

1970 में वाइट रेवोलुशन(श्वेत क्रांति) को जन्म दिया गया जिसे Dr Kurien द्वारा नेतृत्व प्रदान किया गया। 1973 में सभी कोआपरेटिव के मध्य तालमेल बिठाने के लिए गुजरात कोआपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड का निर्माण किया गया जो आने वाले समय में इन सभी कोआपरेटिव के लिए एक मार्केटिंग बॉडी बनी। अमूल भी इसी बॉडी के अंतर्गत शामिल हो गया।

आज GCMFF(Gujarat Co-operative Marketing Federation Limited) भारत का सबसे बड़ा फ़ूड प्रोडक्ट मार्केटिंग संस्था बन चुकी है। अमूल और सागर ब्रांड के अंदर GCMFF डेरी कोआपरेटिव की प्रमुख संस्था है। 2020-21 के मध्य GCMFF का टर्नओवर 5.3 बिलियन डॉलर था आज GCMFF 24.6 मिलियन लीटर दूध को एकत्र करती है। इंडिया के बाद अमूल के प्रोडक्ट USA , सिंगापुर, Gulf देश, जापान, चीन, ऑस्ट्रेलिया में निर्यात किये जाते हैं।

अमूल ने बाजार में बने रहने के लिए लगातार इनोवेशन को अपनाया है। आज अमूल ब्रांड के द्वारा डार्क चॉकलेट से लेकर, ब्रेड, पिज़्ज़ा भी बनाया जाता है। गुणवत्ता मानकों से अमूल ने कभी समझौता नहीं किया। अमूल की मार्केटिंग का बहुत बड़ा श्रेय इसके प्रोडक्ट पर छपी हुई अमूल गर्ल को भी जाता है। अमूल ने इस गर्ल कार्टून का चतुराई से उपयोग किया जिसने उपभोक्ताओं को अपनेपन का एहसास कराया। अमूल ने हमेशा पेरेंट कंपनी के रूप में अपने नाम को प्रमोट किया है। जिसके अंतर्गत बहुत से प्रोडक्ट आते हैं। आज भारत में डेरी फार्मिंग(Dairy Farming in India) यह स्वरुप दुनिया के स्तर पर अपना लोहा मनवा रहा है।

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