कॉर्पोरेट गवर्नेंस(Corporate Governance in Hindi) का विचार निजी क्षेत्र में पारदर्शिता एवं जवाबदेही को लागू करने से जुड़ा हुआ है। कॉर्पोरेट की संज्ञा उन औद्योगिक घरानों की दी जाती है। जो व्यापक स्तर पर विविध आर्थिक गतिविधियों का निष्पादन करते हैं। इस क्रम में वे निवेशकों से धन भी प्राप्त करते हैं और एक व्यापक प्रशासनिक संरचना को भी धारण करते हैं।
निवेशकों और कार्मिकों के हितों की रक्षा के लिए यह जरुरी है कि बड़ी कंपनियों को उनकी संरचना, प्रक्रिया और व्यवहार से जुड़े दिशा निर्देश दिए जाये। इसी के समूह को कॉर्पोरेट गवर्नेंस कहा जाता है। अथवा जब कोई आर्थिक संस्थान व्यक्ति से सामूहिक व्यवस्था पर चला जाता है तो ऐसे में उसकी निर्भरता व्यक्ति से व्यवस्था पर चली जाती है। कॉर्पोरेट गवर्नेंस कहलाती है। कॉर्पोरेट गवर्नेंस के अंतर्गत किसी कंपनी को चलाने के तरीके, सिद्धांत, प्रक्रियाएं तथा निर्देश आदि को शामिल किया जाता है। कॉर्पोरेट गवर्नेंस के सिद्धांत कंपनी को ऐसे दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं जिन पर चलकर कंपनी के प्रशासकों, शेयर धारकों, ग्राहकों तथा समाज सभी का भला हो सके।
कॉर्पोरेट गवर्नेंस के सिद्धांतों को कुछ विद्वान गाँधी के तृष्टि शिप(न्यासिता के सिद्धांत) से जोड़ते हैं जो भागीदारों के सामूहिक हित प्रबंधन से जुड़ा है। जबकि कुछ लोग इस विचार को CSR(Corporate Social Responsibility) से जोड़ते हैं जो निजी क्षेत्र के सामाजिक दायित्वों की अभिव्यक्ति है।
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कॉर्पोरेट गवर्नेंस का विकास(Corporate Governance in Hindi)
कॉर्पोरेट गवर्नेंस का विचार 1929 की आर्थिक महामंदी के बाद मुखर रूप से सामने आयी। अमेरिका कई बड़ी कंपनियों के पतन का कारण इसका अभाव बताया गया। 1932 में अडोल्फ अगस्त्य और गार्डन मींस ने एक आर्टिकल लिखा, जिसका शीर्षक था- “The Modern Corporation and Private Property। इसी से कॉर्पोरेट गवर्नेंस के विचार को विस्तार मिला। जहाँ औद्योगिक घरानों में पारदर्शी एवं जवाबदेह होने की मांग की गयी लेकिन आर्थिक विचार धाराओं के संघर्ष में और शीत युद्ध के परिदृश्य में यह विचार कहीं खो गया।
1990 के बाद पूंजीवादी विचारधारा का वर्चस्व ही एकमात्र विचार के रूप में उभरा। जिससे सभी देशों में कॉर्पोरेट गवर्नेंस की मांग जोर पकड़ने लगी और इसी समय में ब्रिटेन में कैडबरी समिति का गठन किया गया। जिसने कॉर्पोरेट गवर्नेंस को लागू करने के विचार से सिफारिशें दीं। इन सिफारिशों को आधार बनाकर OECD देशों ने निगमित प्रशासन से जुड़े 6 सिद्धांत प्रस्तुत किये:
- शेयर धारकों के अधिकारों का सिद्धांत।
- साझेदारों की भूमिका का सिद्धांत।
- समतामूलक व्यवहार का सिद्धांत।
- पारदर्शिता का सिद्धांत।
- निदेशक मंडल के उत्तरदायित्वों का सिद्धांत।
- सच्चरित्रता और नैतिक व्यवहार का सिद्धांत।
सरल भाषा में कहा जाये तो जब कोई कंपनी आर्थिक कानूनों का अनुपालन करती है। सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए पर्यावरण चिंताओं का सम्मान करती है। संविधान और विधान के अनुरूप आचरण करती है। निवेशकों के लाभांश को सुनिश्चित करती हो तथा याराना पूंजीवाद से बचती हो तो उसे कॉर्पोरेट गवर्नेंस का सार्थक उदाहरण कहा जा सकता है।
कॉर्पोरेट गवर्नेंस की मांग
1990 के बाद वैश्वीकरण के दौर में सभी अर्थव्यवस्थायें एक-दूसरे के साथ तेज़ी से जुड़ती गयी और इस दौर में कॉर्पोरेट घरानों का विस्तार बहुत तेज़ी से देखा गया। नवपूंजीवाद के इस दौर में निम्नलिखित कारणों से निगमित प्रशासन महत्वपूर्ण हो गया है।
- बहुराष्ट्रीय कंपनियों के एकाधिकार में वृद्धि।
- वैश्विक मंदी के दौर में बड़ी कंपनियों का पतन।
- बड़े कॉर्पोरेट घरानों में उभरे विभिन्न घोटाले।
- कॉर्पोरेट घरानों की तीव्र आपसी प्रतिस्पर्धा व सरकारी उपक्रमों से प्रतिस्पर्धा।
- वैश्विकरण के दौर में सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के साथ लोक प्रशासन के सामान निजी प्रशासन के वैश्विक मानकों की मांग।
भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस से सम्बंधित किये गए प्रयास
1980 के दशक से भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस को लेकर रुझान बनने लगा। जब राजीव गाँधी सरकार के द्वारा LPG रिफार्म को आंशिक रूप से स्वीकार किया गया। इसके बाद 1990 के आर्थिक संकट को देखते हुए उस समय के गवर्नर मनमोहन सिंह के द्वारा आर्थिक सुधारों को लागू किया जाता है। जिसके परिणाम स्वरुप भारत के परिदृश्य में कुछ बड़े परिवर्तन दिखाई पड़ते हैं। इन परिवर्तनों के कारण ही कॉर्पोरेट गवर्नेंस का आधार तैयार होता है।
- भारतीय अर्थव्यवस्था में पूँजीवाद को शामिल किया गया। इस कारण निजीकरण को बढ़ावा मिला एवं नए कॉर्पोरेट घराने उभर कर सामने आये।
- देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का तेज़ी से आगमन हुआ।
- निवेशक जागरूकता में वृद्धि।
- नियामकीय संस्थाओं का तेज़ी से उभरना।
कॉर्पोरेट गवर्नेंस में समस्याएं
- बड़े कॉर्पोरेट घरानों के एकाधिकार का उभरना।
- बड़े कॉर्पोरेट घरानों में घोटालों का उभरना।
- आर्थिक प्रतिस्पर्धा के दौर में व्यावसायिक नैतिकता का पतन।
- वैश्विक अर्थव्यवस्था के दवाब में मानकीकृत आर्थिक मूल्यों पर दवाब।
- वैश्विक मंदी के समय कॉर्पोरेट घरानों का पतन।
- याराना पूंजीवाद के निरंतर उठते आरोप।