सहकारी समाज क्या है(cooperative society kya hai)?

सहकारी समाज क्या है(cooperative society kya hai)?:

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन-ILO के अनुसार cooperative (सहकारी) एक प्रकार से व्यक्तियों का स्वायत्त संघ है जो कि अपनी इक्छा से एकसाथ आते हैं ताकि आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जरूरतों को पूरा किया जा सके। किसी भी सहकारी समाज के ऊपर किसी एक व्यक्ति का शासन नहीं होता बल्कि सहकारी सदस्यों द्वारा मिलकर cooperative society को एकसाथ चलाया जाता है।

Cooperative Society  के प्रकार

यह कई प्रकार से हो सकते हैं।

  1. Consumer Cooperative Society
  2. Producer Cooperative Society
  3. Credit Cooperative Society
  4. Housing Cooperative Society
  5. Marketing Cooperative Society

United Nations General Assembly के द्वारा सन 2012 को International Year of Cooperative के रूप में मनाया गया।

भारत में Cooperative Society

भारत एक कृषि प्रधान देश है। इस लिहाज से कृषि और इससे जुड़े हुए क्षेत्रों में Cooperative द्वारा बड़े स्तर पर बदलाव लाने के प्रयास किये हैं। जैसे- भारत में दुग्ध क्रांति के क्षेत्र में cooperative movement का बड़ा योगदान रहा। इसके अलावा मार्केटिंग, क्रेडिट क्षेत्र में भी cooperative ने अच्छा काम किया है।

IFFCO Cooperative का उर्वरकों के मामले में बाजार शेयर तीसरे स्थान पर है। इसके अलावा दुग्ध, कपास, आवास, खाद्य तेल, चीनी या मत्स्य पालन ने भी अच्छा काम किया है।

Cooperative Society का इतिहास

कोआपरेटिव की शुरुआत यूरोप से मानी जाती है। किन्तु ब्रिटिश सरकार के द्वारा कोआपरेटिव को भारत में शुरू किया गया। भारत में किसानों की स्थिति अत्यधिक ख़राब थी जमीदारों के द्वारा किसानों का शोषण किया जाता था इस स्थिति को देखते हुए ब्रिटिश सरकार के द्वारा भारत में कोआपरेटिव आंदोलन शुरू किया गया।

Cooperative शब्द की भारत में शुरुआत तब हुई जब महाराष्ट्र और अहमद नगर के किसान जमीदारों के खिलाफ विरोध कर रहे थे क्यों की जमीदारों के द्वारा दिए गए कर्ज पर बहुत अधिक ब्याज बसूल की जाती थी। इस विरोध के बाद ब्रिटिश सरकार के द्वारा 3 कानून लाये गए।

  • Deccan Agricultural Relief Act(1879)
  • Land Improvement Loan Act(1883)
  • Agriculturists Loan Act(1884)

पहली कोआपरेटिव सोसाइटी 1903 में बैंकिंग में बनायी गयी। इसे Friendly Societies Act के अंतर्गत बंगाल की ब्रिटिश सरकार के द्वारा रजिस्टर किया गया।

1904 में कोऑपरेशन क्रेडिट एक्ट आया जिसके द्वारा कोआपरेटिव को एक ढांचा और आकर दिया गया। Montague Chelmsford Reforms 1919 में यह एक स्टेट का विषय बन गया जिसके अनुसार यह अधिकार मिला कि स्टेट खुद के कोआपरेटिव कानून बना सकते हैं। यह संरचना 1935 के Government of India Act तक चलती रही।

1942 में सरकार के द्वारा Multi-Unit Cooperative Societies Act लाया गया यह कानून उन कोआपरेटिव को शामिल करता था जो एक से अधिक प्रांतों में फैलें हो।

आजादी के बाद Cooperative Movement

1958 में कोआपरेटिव को पंचवर्षीय योजना में जगह दी गयी। National Development Council(NDC) के द्वारा National Policy on Cooperatives बनाने की बात कही गयी और एक ट्रैंनिंग प्रोग्राम चलाने की राय दी जिससे कोआपरेटिव को सही ढंग से चलाया जा सके।

1962 में एक नेशनल कोआपरेटिव डेवलपमेंट कारपोरेशन(NCDC)  शुरू की गयी इसे National Cooperative Development Corporation Act , 1962 के द्वारा बनाया गया।

1984 सरकार के द्वारा सभी Cooperative को Multi-state Cooperative Societies Act-1984 के अंतर्गत एक कर दिया गया। 2002 में सरकार के द्वारा National Policy on Cooperative को लाया गया।

संविधान के अनुसार कोआपरेटिव

  • संविधान संशोधन 97 के अनुसार कोआपरेटिव वर्किंग से सम्बंधित Part 9B जोड़ा गया।
  • आर्टिकल 19(1)(c) में कोआपरेटिव शब्द को शामिल किया गया है अतः यह मौलिक अधिकारों का भाग है।
  • आर्टिकल 43B नीति निदेशक तत्त्वों के तहत सरकार कोआपरेटिव सोसाइटी को बढ़ावा देगी।

भारत में कोआपरेटिव की जरुरत क्यों?

  • ऐसे क्षेत्र जहाँ सरकार की पहुंच नहीं है बल्कि प्राइवेट सेक्टर के द्वारा भी पहुंच बना पाना मुश्किल होता है। वहां कोआपरेटिव सोसाइटी कार्य कर सकती हैं। जैसे- कृषि क्षेत्र में बहुत से व्यक्तियों को आसानी से बैंकों द्वारा लोन नहीं दिया जाता। ऐसे में क्रेडिट कोआपरेटिव सोसाइटी से मदद मिल सकती है।
  • consumer societies के द्वारा बाजार से सस्ते दाम पर माल खरीदा जा सकता है।
  • किसानो को अच्छी कीमत दिलाने में मददगार हो सकती हैं।
  • कोआपरेटिव सोसाइटी के जरिये निर्माण कार्य बेहतर किया जा सकता है। छोटे किसान कोआपरेटिव बनाकर कृषि भण्डारण, सिचाई, बिजली जैसे कार्यों को संपन्न कर सकते हैं।
  • कोआपरेटिव सोसाइटी के जरिये समाज में समानता और भाईचारा बढ़ता है। लोकतंत्र, समानत, बंधुत्व से संविधान की नीव मजबूत होती है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में तेज़ी लायी जा सकती है।

Cooperative society से चुनौतियां

कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि किसी भी कोआपरेटिव सोसाइटी में सदस्यों की संख्या बहुत ज्यादा होती है। जिसकी वजह से हेरफेर किया जाता है। गवर्निंग बॉडीज में कमजोर लोगों को नहीं सुना जाता।

इसमें भी पॉलिटिक्स का वर्चस्व बढ़ाता जा रहा है। ऐसा भी देखा जाता है कि नेता लोग इसमें घुसे हुए होते हैं। वोट बैंक के लिए ऐसा किया जाता है।

सदस्य लोगों को इस बात की ही जानकारी नहीं होती कि उनकी कोआपरेट सोसाइटी का उद्देश्य क्या है? लोगों को साथ मिलाकर कैसे काम किया जाता है। हमारे देश में अभी बड़ी कोआपरेट सोसाइटी का आभाव है। और छोटी सोसाइटी में सदस्यों की संख्या कम होती है। पैसे की कमी के करण ये अच्छे से काम नहीं कर पाती हैं।

सहकारी समाज क्या है(cooperative society kya hai)? इससे जुड़े विषयों पर जानकारियों सटीकता के साथ प्रस्तुत किया गया है। अगर इस जानकारी से सम्बंधित आपका कोई सवाल है तो आप कमेंट में लिख सकते हैं धन्यवाद्!

 

 

 

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