ओलंपिक्स में चीन(China at the Olympics) का राज और भारत की दशा

China at the Olympics:

2020 के Olympics टोक्यो(जापान) में चल रहे हैं। यह एक ग्लोबल स्पोर्ट इवेंट हैं जिसमें वर्ल्ड क्लास खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं। यह एक विश्व विख्यात इवेंट हैं जिसमें खेल, मीडिया,  से जुड़े हुए जानकर लोग बारीकी से ध्यान देते हैं। अभी तक अगर मॉडर्न ओलंपिक्स की बात करे तो इस इवेंट को होते हुए 125 साल से अधिक का समय हो चुका है।

किन्तु ऐसा समझा जाता है कि इस इवेंट पर ताकतवर देशों का प्रभुत्व अधिक है। USA और Russia ने कई सालों तक अपना प्रभुत्व जमाये रखा और यह देश पदक तालिका में पहले और दूसरे पायदान पर ही विराजमान रहते थे।

Modern Olympics की शुरुआत(China at the Olympics)

1896 में पहलीबार मॉडर्न ओलंपिक्स की शुरुआत हुई। जिसमें USA , Australia एवं यूरोपियन देशों के द्वारा पदक जीते गए। लगभग 100 साल के बाद Rio ओलंपिक्स 2016 तक 87 देश इसमें शामिल हो चुके थे। जिसमें सीरिया और वियतनाम जैसे देश भी शामिल थे।

चीन की ओलंपिक्स में शुरुआत

चीन की ओलंपिक्स में आधिकारिक शुरुआत Summer Olympics में 1952 से तथा Winter Olympics में 1980 के बाद हुई। धीरे धीरे चीन ने अपनी स्थिति को मजबूत किया और आगे उसने USA की पदक श्रृंखला को भी चुनौती दी। इसका प्रमाण बीजिंग में देखने को मिला।

2008 के बीजिंग ओलंपिक्स में चीन के द्वारा 58 गोल्ड पदक अपने नाम कर कारनामा कर दिया इस साल चीन के द्वारा ही ओलंपिक्स की मेजबानी की गयी। चीन गोल्ड मैडल तालिका में सबसे ऊपर रहा और USA के द्वारा सबसे अधिक पदक जीते गए। इसके बाद 2016 के rio de janeiro में उसका प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा।

किन्तु 2020 के प्रदर्शन में चीन फिर से अच्छे फॉर्म में दिखाई दे रहा है।

चीन का इतिहास

People’s Republic of China को 1949 से पहले Republic of China कहते थे। जिसका स्पोर्ट्स पर कोई ध्यान नहीं था। Republic of China में ताइवान और चीन का मुख्य भाग शामिल था। 1912 से 1949 तक चीन में कुओमितांग का शासन था। चीन ने 1952 के ओलंपिक्स खेलों से पहले कई असफल प्रयास किये।

चीन के द्वारा पहली शुरुआत 1932 के ओलंपिक्स गेम से हुई। चीन के द्वारा 1932 के इवेंट में केवल एक प्रतिभागी को ही भेजा जो खुद के खर्चे पर गया। इस वजह से चीन को बहुत शर्मसार होना पड़ा, “आखिर इतने बड़े देश से केवल 1 खिलाड़ी ही इवेंट में भेजा गया।”

1935 में चीन के द्वारा 2 लाख युआन स्पोर्ट्स स्कूल, और तैयारी पर खर्च करने के लिए जारी किये गए। 1935 के बर्लिन ओलंपिक्स से 1 साल पहले चीन के द्वारा तैयारी शुरू की गयी। इसमें शामिल होने वाले सभी खिलाड़ी अपने खर्चे पर ओलंपिक्स में पहुंचे। यहाँ पर चीन को कोई मैडल प्राप्त नहीं हुआ। इसके बाद चीन के स्पोर्ट्स जानकर यूरोप के भ्रमण पर गए वहां उनके द्वारा कई देशों की स्पोर्ट्स सुविधाओं और ट्रेनिंग के तोर तरीके को करीब से जानने का प्रयास किया।

1940 और 1944 में विश्व युद्ध के कारण इवेंट नहीं हो सका। 1948 के इवेंट में चीन के द्वारा भाग लिया गया किन्तु स्पोर्ट्स प्लेयर को कुओमिन्तांग सरकार के द्वारा खर्चा दिया गया किन्तु वह इतना कम था कि खिलाड़ियों को उधार लेकर वापस आना पड़ा। इन वजहों से एक बार फिर चीन की बेज्जती हुई।

चीन की कुओमितांग सरकार मुख्य भूमि से अलग थी जिसे ताइवान कहा जाता है। कम्पुनिस्ट पार्टी के अंतर्गत चीन की मुख्य भूमि आती थी।

ओलंपिक्स के लिए समस्या तब शुरू हुई जब कहा गया कि चीन की मुख्य भूमि के द्वारा प्रतिनिधित्व नहीं किया जायेगा बल्कि ताइवान के द्वारा चीन का ओलंपिक्स में प्रतिनिधित्व किया जायेगा।

अब बहस इस बात पर हो गयी कि ओलंपिक्स में चीन का प्रतिनिधित्व असल में किसके द्वारा किया जायेगा। International Olympics committee(IOC) के द्वारा कहा गया कि इवेंट में चीन के दो प्रतिनिधित्व नहीं हो सकते। इसके चलते चीन को melbourne और आने वाले 5 ओलंपिक्स के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया।

इसके बाद यूनाइटेड नेशन ने चीन के मुख्य भाग को एक देश माना और यह भी माना कि ताइवान इसका हिस्सा है। 1979 में IOC के बोर्ड द्वारा चीन को पुनः हिस्सा लेने की इजाजत मिली किंतु इससे पहले उसे अपना राष्ट्रगान, झंडा, और चीन के उदय को प्रमाणित करना होगा।

इसके बाद चीन ने अपने खिलाड़ियों को मजबूती से तैयार किया 1980 के Winter Olympics और 1982 के Moscow Olympics में हिस्सा लिया।

चीन की गोल्ड तैयारी(China at the Olympics)

2020 के टोक्यो ओलंपिक्स के Weight Lifting में Hou Zhihui के द्वारा Gold जीता गया वहीँ Mirabai Chanu के पास silver मैडल आया। Hou Zhihui के बारे में कहा जाता है कि वह 12 साल की उम्र से अपनी बॉडी से दुगने भार को उठाने का अभ्यास कर रही हैं। जिसके लिए कठोर परिश्रम और बलिदान देना होता है। साल में कुछ छुट्टियां ही दी जाती हैं।

चीन की स्पोर्ट्स लाइन को केवल गोल्ड जीतने के लिए तैयार किया जाता है। इस साल के टोक्यो ओलंपिक्स में चीन के द्वारा लगभग 430 खिलाड़ी भेजे गए हैं।

चीन के द्वारा कठोर ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू किया गया जिसमें चीन के लगभग 10000 बच्चों को 2000 स्पोर्ट्स स्कूल में भेजा जाता है। गोल्ड की होड़ में चीन उन स्पोर्ट्स पर अधिक ध्यान रखता है। जिनमें यूरोपियन देशों के द्वारा कम पदक अर्जित किये जाते हैं। चीन ने 75% ओलंपिक्स गोल्ड मैडल केवल 6 स्पोर्ट्स इवेंट में जीते हैं इसमें टेबल टेनिस, शूटिंग, ड्राइविंग, बैडमिंटन, जिमनास्टिक्स, वेट लिफ्टिंग शामिल है। चीन के खिलाड़ियों में 2/3 से ज्यादा महिला चैंपियन शामिल हैं

टोक्यो ओलंपिक्स में भी चीन के द्वारा 70% से अधिक महिला खिलाडियों की भागेदारी है।

चीन के नजरिये से ये मालूम होता है कि सन 2000 में सिडनी गेम्स में weight lifting में महिलाओं के सम्मिलित होने से, यह चीन के लिए पदकों के लिहाज से प्रमुख खेल बन गया है। इसका एक कारण यह भी था कि weight लिफ्टिंग के लिए कोई लोकप्रियता नहीं थी। चीन के ट्रेनिंग सेंटर में चीन का फ्लैग बना होता है। जिसका मतलब उनकी कर्तव्य राष्ट्र के लिए है न कि खुद के लिए।

चीन के Li Hao का कहना है कि चीन की खेल प्रतिस्पर्धा बेहतरीन है। Li Hao 2016 के रिओ ओलंपिक्स में weight Lifting में head थे। अभी चीन के एंटी डोपिंग डिपार्टमेंट में शामिल हैं।

चीन की डोपिंग कमजोरियां(China at the Olympics)

चीन के ऊपर डोपिंग से सम्बंधित विवाद खड़े होते रहे हैं। चीन की एक नेशनल स्तर की पुरानी खिलाड़ी ने यह कबूल किया कि चीन में डोपिंग को जबरन थोपा जाता है। इसमें अधिकांश खिलाड़ी ऐसे होते हैं जिन्हे डोपिंग की दुनिया में लड़ना होता है।

भारत का स्थिति

भारत खेलों के क्षेत्र में बहुत पीछे है। खिलाड़ियों को मिलने वाली सुविधाएं में कमी है। आधुनिक तकनीक की सहायता से प्लेयर्स को तैयार करना, उनके खान-पान और सुविधाओं और जरूरतों को पूरा करने में भी बहुत सी कमियां हैं। भारत के 29 स्टेट और 130 करोड़ की जनसँख्या वाला देश ओलंपिक्स के 1 गोल्ड के लिए संघर्ष कर रहा होता है।

इससे तो यही साबित होता है कि खेल पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। क्यों भारत का नाम डिफेंस, तकनीक इकॉनमी के मामले में टॉप 5 में जरूर दिखाई देता है। किन्तु इस क्षेत्र में नाम दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता।

कुस्ती, कबड्डी और शूटिंग जैसे कुछ चुनिंदा क्षेत्र हैं जहाँ हम भारतीयों की पदक से उम्मीद रहती है। यह उम्मीद हमें और क्षेत्रों में क्यों नहीं हो सकती।

चीन ने खुद को पदक तालिका में ऊपर लाने के लिए लम्बे समय से प्रयास किया है। डोपिंग या अन्य प्रकार के आरोप उस पर लगते रहे हैं किन्तु इसका मतलब यह नहीं हो जाता कि उसके खिलाड़ी मेहनत नहीं करते। कठोर ट्रेनिंग और अभ्यास सुविधाएँ और सर्वश्रेष्ठ के लिए तैयारी करना पदकों में स्वर्ण की संख्या को बड़ा देती है। जो उनका लक्ष्य भी है। चीन का प्रदर्शन भारत को सीखने के लिए प्रोत्साहित करता है। ओलंपिक्स में चीन(China at the Olympics) की आज जो स्थिति है उसके पीछे चीन की खेलों के प्रति कार्य शैली भी बहुत अधिक जिम्मेदार है।

 

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