हाथरस रेप केस में शामिल व्यक्तियों(अभियुक्त) को गुजरात के गांधीनगर ले जाया गया। यहाँ इनकी Brain Fingerprinting की जाएगी। इसका मतलब EEG तकनीक से है जिसके आधार पर सच के करीब पहुंचने का प्रयास, जाँच एजेंसी के द्वारा किया जायेगा।
Brain Fingerprinting होती क्या है।
Brain Electrical Oscillation Signature Profiling(BEOSP) एक electroencephalogram(EEG) तकनीक है। इस तकनीक में संदिग्ध व्यक्ति के दिमाग की electrophysiological impulses की सहायता से जाँच कर क्राइम का पता लगाया जाता है।
जिसे करने से पहले संदिग्ध व्यक्ति की सहमति ली जाती है।
क्यों कि इस तकनीक में दिमाग के व्यवहार को समझने का प्रयास किया जाता है। अतः उस व्यक्ति के सिर पर एक कैप पहनायी जाती है जिसमें बहुत से इलेक्ट्रोड लगे होते हैं। इन्ही इलेक्ट्रोड की सहायता से दिमाग में चल रही हलचल को दर्ज कर लिया जाता है। इस प्रक्रिया में व्यक्ति से सवाल जवाब नहीं होते। जिस प्रकार से पॉलीग्राफ टेस्ट में किया जाता है।
BEOSP और पॉलीग्राफी टेस्ट में अंतर क्या है।
दोनों ही टेस्ट में Neuro-physiological method से सच का पता लगाने का प्रयास किया जाता है। जिसमें व्यक्ति को drug दिया जाता है। उसके बाद physiological indicators को देखा जाता है जैसे- पल्स रेट, ब्लड प्रेशर, आदि
किन्तु BEOSP में ऐसा नहीं किया जाता। पॉलीग्राफी टेस्ट में देखा गया है कि लोग इससे बचकर निकल जाते है। ज्यादातर जब कोई व्यक्ति झूट बोलता है तो उस व्यक्ति की बॉडी झूट के खिलाफ प्रतिक्रिया करती है जिसे पॉलीग्राफ टेस्ट में पकड़ लिया जाता है किन्तु लोग इस टेस्ट को भी चकमा देकर निकल जाते हैं।
इसके इतर BEOSP टेस्ट में व्यक्ति को visual दिखाए जाते हैं या ऑडियो क्लिप्स सुनाई जाती है। और उसके बाद देखा जाता है कि क्या ब्रेन में neurons में बदलाव हो रहे हैं या नहीं। इस प्रक्रिया में व्यक्ति को दो परिकल्पनायें दिखाई जाती है। अगर उसका दिमाग उन परिकल्पनाओं को सही पाता है तो वह रेस्पॉन्स करता है। जो सही जांच तक पहुंचाने में सहायक साबित होता है।
ब्रेन के न्यूरॉन्स की क्रिया को पहचानकर तथ्यों को प्रमाणित करने में गलती की गुंजाईश कम रहती है। क्यों कि दिमाग के अंदर हो रहे बदलाव को नहीं रोका जा सकता। वह तो स्वभावतः आएगें ही। उदाहरण के तोर पर यदि किसी व्यक्ति से सवाल पूछा जाता है। और उसे जवाब मालूम है किन्तु वह जवाब देना नहीं चाहता, ऐसी स्थिति में दिमाग में हुए बदलाव को तो नहीं रोका जा सकता, और न्यूरोन्स के इसी बदलाव को पड़ लिया जायेगा। अगर उसे उस सवाल का जवाब सच में नहीं मालूम तो उसके दिमाग के न्यूरॉन्स शांत ही रहेगें। इसी प्रकार से क्राइम की जाँच भी की जाती है।
BEOSP के लिए लैब
हाथरस केस में शामिल दोषियों की brain fingerprinting के लिए गांधीनगर की लैब में ले जाया गया।
1974 में गुजरात स्टेट FSL (Forensic Science Laboratory) को बनाया गया था। यह भारत की सबसे बेहतर लेबोरेटरी में से एक है। इस लैब में क्राइम में जुड़े हुए लोगों का सबसे बड़ा डेटाबेस तैयार किया हुआ है। जो कईबार दोसी तक जल्द से जल्द पहुंचने में सहायक होता है।
देश के बड़े हाई प्रोफाइल केस जैसे- आरुषि मर्डर केस, गोधरा केस, निठारी केस, इन सभी को गांधीनगर की लैब में ही लाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने 2010 के जजमेंट में साफ कहा है कि ब्रेन मैपिंग, नार्को टेस्ट, पॉलीग्राफ टेस्ट किसी भी व्यक्ति पर दवाब डालकर नहीं कराया जा सकता। इसमें व्यक्ति की रजामंदी होना जरुरी है। और सिर्फ इस प्रकार के टेस्ट को साक्ष्य के तोर पर कोर्ट में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
हाथरस केस में जाँच जारी है। इस केस की अगली सुनवाई 16 dec को होनी है। अब इसमें Brain Fingerprinting तकनीक की भी सहायता ली जा रही है। दुनिया ने इस घिनोने कृत्य की घटनाओं को देखा है। जिसमें पुलिस प्रशासन और मीडिया सरकार सभी के शामिल होने, दोषियों को बचने की घटना को सभी ने देखा था। सच को लोगों तक पहुंचाने का सबसे बड़ा हाथ सोशल मीडिया का रहा। सच को दबाने के लिए जो भी प्रयास किये गए। वह किसी से छुपे नहीं थे। अब यह देखना बाकि है कि आगे क्या होता है?