“Biography of Mahatma Gandhi” हिंदी में

महात्मा गाँधी एक बेहद साधारण व्यक्ति थे। 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर (गुजरात) में इनका जन्म हुआ पिताजी का नाम करमचंद गाँधी जो काठियावाड़ की रियासत पोरबंदर में दीवान थे जब गाँधी लन्दन वकालत की पढ़ाई करने जा रहे थे तो इनकी माँ ने इनसे वचन लिया कि लन्दन जाकर मांशाहारी भोजन से दूर रहना। इनकी माँ बेहद धार्मिक प्रवृत्ति की थी जिसका असर गाँधी जी पर दिखाई पड़ता है। जैसे कि साधन-साध्य कि परंपरा, उपवास और उनकी दैनिक दिनचर्या। लन्दन से पढ़ाई करने के बाद 1891 में गाँधी जी भारत वापस आ गए। उन्होंने बॉम्बे में वकालत की शुरुआत की लेकिन कोई खास सफलता नहीं मिली। इसके बाद ये राजकोट चले गए वहाँ लोगों के मुकदमे की अर्जिया लिखना का शुरू किया लेकिन वहाँ से भी कुछ समय में काम छोड़ दिया। फिर ये भारतीय फर्म के 1 वर्ष के करार पर दक्षिण अफ्रीका(नेटल) चले गए और यहां से Biography of Mahatma Gandhi की असल शुरुआत होती है।

साउथ अफ्रीका का सफर(Biography of Mahatma Gandhi)

गाँधी जी की विचारधारा एवं कार्य प्रणाली में सबसे बड़ा योगदान साउथ अफ्रीका का रहा, वह 1893-1914 तक वहाँ रहे। उन्होंने साउथ अफ्रीका में हो रहे भारतीयों पर अत्याचार को देखा, प्रवासियों पर अनिवार्य पंजीकरण, गैर ईसाई भारतीयों के विवाह को अमान्य करार देना आदि। उन्हें खुद भी नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ा एक बार जब गाँधी जी ट्रैन में सफर कर रहे थे। अच्छी वेशभूसा में 1st क्लास की टिकट लिए हुए, फिर भी अंग्रेज द्वारा उन्हें ट्रैन से बहार फेंक दिया गया।

फलत: गाँधी जी ने शोषण के विरुद्ध सत्याग्रह किया और वे जेल भी गए अफ्रीकी सरकार(अंग्रेजी हकूमत) ने गाँधी जी पर अनेक प्रतिबन्ध लगा दिए लेकिन गाँधी जी झुके नहीं। और वहाँ की सरकार को गाँधी जी की मांगे माननी पड़ी। साउथ अफ्रीका में लोगों का ये जुझारूपन देखकर गाँधी जी को यह भरोसा हो गया कि भारत में भी इस प्रकार से संघर्ष किया जा सकता है क्यों कि दक्षिण अफ्रीका कि जनता में भी बेहद भिन्नता थी, हिन्दू, मुसलमान, पारसी, ईसाई, दक्षिण भारतीय, अमीर ,गरीब, पुरुष, महिला, बच्चे, बूढ़े सभी आंदोलन के लिए एकजुट हो सकते हैं तो ऐसा भारत में भी संभव हो सकता है। उन्होंने जिस हिन्दू मुस्लिम एकता की सम्भावना को हमेशा माना उसका आधार उन्हें साउथ अफ्रीका में दिखाई दे गया था। 

गाँधी जी ने फीनिक्स फार्म की स्थापना की जिसके अंतर्गत शांतिपूर्ण धरना, सामूहिक गिरफ्तारियाँ देने जैसी गतिविधियों का परिचय कराया जाता। आंदोलन को अचानक एकतरफा रूप से वापिस ले लिया जाता। इस कदम को ज्यादातर लोग पसंद नहीं करते थे कभी कभी अपने लोग भी विरोध जता देते किन्तु ऐसा करना भी एक निति का हिस्सा होता था। गाँधी जी को साउथ अफ्रीका में एक नयी शैली, नेतृत्व के नए तरीके, लोगों को साथ रखने, मजबूरियों और खामियों को परखने का मौका मिला ताकि इसे भारतीय राजनीति में आजमाया जा सके।

गाँधी जी का भारत आगमन   

Biography of Mahatma Gandhi में किसी कार्य के घटित होने में उसके पीछे की सम्भावनायें अवश्य रहती हैं। गाँधी जी 9 जनवरी 1915 को भारत वापस आते हैं। जनता महात्मा गाँधी के साउथ अफ्रीका में किये गए सुधार कार्यों से पहले से ही बहुत उत्साहित रहती हैं इस कारण गाँधी जनता में बड़ी तेज़ी से लोकप्रिय होते हैं। उस समय प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था जनता पर टैक्स और कर्ज का बोझ अंग्रेज़ी सरकार बढ़ाये जा रही थी युद्ध जनित व्यय बहुत बड़ा हुआ था। गरीब किसान लगान देने की हालत में नहीं थे और बड़ी हुई लगान की राशि जमीदारों को भी भारी पड़ने लगी थी। देश में अकाल और भुखमरी जैसे हालत पैदा हो गए। इसके साथ ही जनता का उदारवादी राजनीति से मोहभंग हो गया था, उग्रवादी राजनीति भी ठंडी पड़ी हुई थी और क्रांतिकारी आंदोलन भी दमन करके दबा दिए गए थे। एक तरह से राजनीतिक शून्यता की स्थिति मौजूद थी।

दूसरी तरफ होमरूल आंदोलन की रणनीतियों से गाँधी जी सहमत नहीं थे। वह तत्कालीन संघर्षो में बदलाव चाहते थे उनके अनुसार संघर्ष का एकमात्र तरीका सत्याग्रह था। 

गाँधी जी की विचारधारा, रणनीति, और कार्य करने की शैली

  • गाँधी जी की विचारधारा सत्य एवं अहिंसा पर आधारित थी इसमें सबसे बेहतर यह था कि व्यापारी वर्ग, किसान, स्थानीय लोग गाँधीवादी विचारधारा से जुड़ पा रहे थे। सत्याग्रह गाँधी कि विचारधारा का मूल तत्त्व है सत्याग्रह का अर्थ है- सत्य पर अड़िग  रहना।
  • साधन-साध्य की पवित्रता- गाँधी जी ने राजनीति में भी नैतिकता पर ज़ोर दिया उन्होंने साधन-साध्य दोनों की पवित्रता पर बल दिया। उनका मानना था कि यदि साधन अनैतिक होगें तो साध्य चाहे कितना भी नैतिक क्यों न हो वे इसे निश्चय ही भ्रष्ट कर देंगे। यदि हिंसा, छल, कपट से स्वराज ले भी लिया तब भी वे इसे स्वीकार नहीं करते। यही कारण था कि उन्होंने 1922 में चौरी-चौरा कांड के चलते असहयोग आंदोलन वापस ले लिया।
  • वर्ग-समन्वय पर गाँधी जी ने विशेष बल दिया क्यों कि इसी के बल पर स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी जा सकती थी।
  • सर्वोदय की धारणा को राजनीति से जोड़ा। सर्वोदय का अर्थ है-“सबकी सामान उन्नति”। एक व्यक्ति का भी उतना ही महत्व है जितना व्यक्तियों के समूह का।
  • ट्रस्टीशिप सिद्धांत (न्याय का सिद्धांत)- इसके अनुसार सम्पत्ति का स्वामित्य निजी होते हुए भी उसके स्वामी उसे सार्वजनिक उपयोग के लिए सुलभ बनाये। गाँधी जी आधुनिक औद्योगीकरण की आलोचना करते हैं क्यों कि मशीनीकरण ने भारत के कुटीर और लघु उद्योगों को नष्ट कर दिया।
  • गाँधी जी ने एजुकेशन को मातृभाषा में देने पर ज़ोर दिया, अंग्रेजी एजुकेशन सिस्टम की आलोचना की एजुकेशन को काम से जोड़ने को कहा।
  • गाँधी जी आदर्श समाज का सपना रखते थे जिसमें ऊंच-नीच का भाव, छुआछूत, स्त्री-पुरुष किसी प्रकार का भेद न हो। हृदय परिवर्तन किया जाये

रणनीति, और कार्य करने की शैली

उनके कार्य करने की कला उन्हें सबसे अलग बना देती है Biography of Mahatma Gandhi को समझने के लिए उनकी रणनीति और कार्य करने की शैली को जानना आवश्यक है।

दवाब समझौता दवाब की रणनीति

गाँधी जी ने समझौतों पर अधिक बल दिया न कि संघर्ष पर। उनका मानना था कि जन आंदोलन के जरिये अंग्रेज़ी सरकार पर दवाब डालकर उन्हें समझौते के लिए तैयार किया जाये। फिर शेष रह गए उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए पुनः जन आंदोलन कर शत्रु पर दवाब बना कर उसे समझौते के लिए तैयार किया जाये। इस तरह आंदोलन को वापस लेना और उसे शुरू करना एक रणनीति का भाग थी।

आंदोलन के सक्रिय और निष्क्रिय दौर में लोकप्रियता बनाये रखना

गाँधी जी का मानना था कि आंदोलन अधिक समय तक नहीं चलाया जा सकता। उनका मानना था कि जनता कि दमन सहने और बलिदान की शक्ति सीमित रहती है। इस निष्क्रिय दौर में रचनात्मक कार्यों को करते रहना चाहिए जिससे जनता को स्वावलम्बी बनाये रख सके। इस तरह जब आंदोलन दोबारा शुरू किया जाये तो जनता में पुनः ऊर्जा और आंदोलन में भागीदारी की शक्ति हो। ऐसा लम्बे आंदोलनों को चलाने के लिए यह जरुरी था।

 जनता की केंद्रीय भूमिका

गाँधी जी जनता की शक्ति को जानते थे इसलिए उन्होंने जनता की भागीदारी पर बल दिया। क्यों कि वो जानते थे, इस लम्बे संघर्ष में जनता का एक होना आवश्यक है।

साधारण जीवन शैली

गाँधी जी जनता के बनकर रहे, उन्होंने यात्रायें की पुरे देश में भ्रमण किया सन 1921 के पश्चात् वे केवल लंगोटी पहन कर रहे। जिन कामों को करना लोग छोटा समझते थे वे उन्हें भी खुद ही करना पसंद करते। इस शैली ने गाँधी जी को जनता के बीच लोकप्रिय बना दिया। जनता उन्हें अपना समझती और इस कारण अपना नेतृत्व उन्हें सौंप दिया।

नियंत्रित आंदोलन पर बल

गाँधी जी जन आंदोलनों को एक निश्चित दायरे में रखना चाहते थे जो उनके तय रास्ते पर सख्ती से कायम रहे। यह रास्ता सत्याग्रह और अहिंसा का था वह यह अच्छी तरह से जानते थे कि अनियंत्रित जन आंदोलन में सभी वर्गों की भागीदारी असंभव होगी और अंग्रेजी सरकार इसका को दमन करने में आसानी होगी।

रचनात्मक कार्य

गाँधी जी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर जोर दिया, हरिजनोद्धार कार्यक्रम चलाये, नारी उत्थान पर बल दिया। सर्व समावेशी निति के तहत विभिन्न समुदायों को एकजुट किया। कताई-बुनाई, खादी, चरखा जैसे स्वावलम्बी कार्यों को प्रोत्साहित किया। पिछड़ी और आदिवासी जातियों के लिए काम किया। इससे गाँधी जी की लोकप्रियता बढ़ी।

राष्ट्रीय आंदोलनों की शुरुआत

चंपारण सत्याग्रह(1917)  

राजकुमार शुक्ल के आमंत्रण पर गाँधी जी चंपारण पहुंचते हैं। उस समय चंपारण में अंग्रेज बागान मालिकों ने किसानों को एक अनुबंध द्वारा अपनी भूमि के 3/20वें हिस्से पर नील की खेती करने को विवश किया जिसे तिनकठिया प्रथा के नाम से जानते हैं। नील की खेती से किसानों की जमीन ख़राब हो रही और उन पर लगान और अन्य गैर क़ानूनी कर बड़ा दिए गए थे। इससे किसान कष्टपूर्ण स्थिति में थे। गाँधी जी के चंपारण पहुंचने पर राजेंद्र प्रसाद, J.B.Kraplani , आदि सहयोगियों के साथ मिलकर सत्याग्रह किया। परिणामस्वरूप एक आयोग का गठन किया गया और अंग्रेज बागान मालिकों ने चंपारण छोड़ दिया। वस्तुतः यहाँ से Biography of Mahatma gandhi में आंदोलनों की शुरुआत होती है।

खेड़ा सत्याग्रह(1917-18)

गुजरात के खेड़ा जिले में बारिश के कारण फसल ख़राब हो गयी इस कारण वस्तुओं की कीमत बहुत बढ़ गयी। किन्तु सरकार किसानों से मालगुजारी बसूल रही थी किसानों ने मालगुजारी कर माफ़ करने की मांग रखी लेकिन सरकार ने मांग को स्वीकार नहीं किया। अतः गाँधी जी ने इंदुलाल याज्ञनिक, विठ्ठल भाई पटेल के साथ संघर्ष छेड़ दिया। और सरकार को आदेश जारी करना पड़ा कि समर्थ किसान से ही लिया जाये।

अहमदाबाद मिल मजदूर विवाद(1918)

यहाँ मिल मालिकों और मजदूरों में प्लेग बोनस को लेकर विवाद था। मिल मालिक प्लेग के प्रकोप के बाद इसे खत्म करना चाहते थे जबकि मजदूर इस बात से सहमत नहीं थे। मजदूरों का मानना था कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान बढ़ी हुई कीमतों के कारण बोनस को जारी रखा जाये। मजदूरों ने समाधान न होने पर मिल हड़ताल की अतः यहाँ पर भी गाँधी जी के द्वारा विवाद सुलझाया गया और यह कहा गया कि मजदूरों को 35% बोनस मिलना चाहिए।

इन तीनो आंदोलनों से गाँधी जी को अपने तरीके आजमाने का मौका मिला और देश की स्थिति का बेहतर तरीके से अनुमान लगाने में सहायता मिली।

रॉलेट सत्याग्रह(1919)

ब्रिटिश सरकार ने क्रांतिकारी और राष्ट्रवादी भावनाओं को कुचलने के लिए सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में 1919 में एक रॉलेट एक्ट पारित किया। इस एक्ट के तहत व्यक्ति को संदेह के आधार पर ही गिरफ्तार किया जा सकता था उस पर मुकदमा चलाया जा सकता था। यह कानून ऐसे समय पर लाया गया जब प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद जनता सुधारों की आशा लगाए बैठी थी। भारतीय जनता ने इस कानून का विरोध किया मालवीय, जिन्ना ने विरोध में व्यवस्थापिका सभा से त्यागपत्र दे दिया। लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ तब गाँधी जी ने सत्याग्रह करने की सलाह रखी।

गाँधी जी ने सत्याग्रह सभा गठन कर सरकार के विरुद्ध सत्याग्रह की शुरुआत की। देशव्यापी हड़ताल और सभायें की गई। पंजाब में आंदोलन उग्र हो गया सरकार ने सत्यपाल और डॉ सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें अमृतसर से निर्वासित कर दिया इसके विरोद में भीड़ ने आगजनी की अंग्रेजों की हत्यायें कर दी गई। जनरल डायर ने किसी भी जनसभा पर प्रतिबन्ध लगा दिया किन्तु जनता ने जलियांवाला बाग़ में अपनी सभा आयोजित की जहाँ जनरल डायर ने निहत्थी भीड़ पर गोलिया चलवा दी और हजारों लोग मारे गए। पूरे देश में हिंसाओं का सिलसिला शुरू हो गया और गाँधी जी ने इस बात से आहत होकर 18 अप्रैल को आंदोलन वापस ले लिया। गाँधी जी ने स्वीकार किया कि लोगों से सविनय अवज्ञा के लिए कहना एक बड़ी भूल थी।

रॉलेट सत्याग्रह असफल रहा किन्तु यह पहला राष्ट्रव्यापी जन आंदोलन था इस आंदोलन से गाँधी जी ने कांग्रेस को व्यापक जनाधार बनाने और जनता के माध्यम से आंदोलन छेड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। Biography of Mahatma Gandhi की समझ के लिए इस कथन को समझिये गाँधी जी कहते हैं- प्लासी ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव रखी और अमृतसर ने उसे हिला दिया।

खिलाफत आंदोलन (1919)

तुर्की का खलीफा मुसलमानों के लिए धर्मगुरु माना जाता था। भारतीय मुसलमान भी धार्मिक रूप से इससे जुड़े हुए थे। प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी के साथ तुर्की की भी हार हुई ब्रिटेन मित्र राष्ट्रों की तरफ से था इस कारण वह तुर्की का विरोधी हो गया। और उसने सेवर्स की संधि तोड़ तुर्की साम्राज्य के विभाजन की घोषणा की। अतः जब हार के बाद तुर्की के सम्मान के साथ खलीफा के सम्मान की बात आयी तो भारतीय मुसलमान भी ब्रिटिश सरकार के विरोध में आ गए और खिलाफत आंदोलन की घोसणा की।

अलीबंधुओ (मुहम्मद अली एवं शौकत अली) तथा मौलाना आजाद, हकीम अजमल खां आदि ने खिलाफत कमेटी का गठन किया इनका उद्देश्य था कि ब्रिटेन पर दवाब डालकर तुर्की के प्रति उसके व्यवहार को बदला जाये। अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी का अधिवेशन जून 1920 में इलाहबाद में हुआ  यहाँ गाँधी जी को नेतृत्व करने का दायित्व सौंपा गया और 31 अगस्त 1920 को खिलाफत कमेटी ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध असहयोग आंदोलन कि शुरुआत की। गाँधी जी द्वारा खिलाफत मुद्दे को भारतीय राजनीति से जोड़े जाने पर जिन्ना ने उनकी आलोचना की।

1923 में स्वयं ही खलीफा ने अपना पद समाप्त कर दिया इसके साथ ही खिलाफत आंदोलन भी समाप्त हो गया। असहयोग आंदोलन को खिलाफत से जोड़ने के कारण स्वराज प्राप्ति का मुद्दा प्रमुख हो गया और खिलाफत का मुद्दा दब गया। इस आंदोलन से हिन्दू-मुसलमान जहाँ एकजुट हुए वहीं साम्प्रदायिकता को भी बढ़ावा मिला।

असहयोग आंदोलन(1920-22)

1920 में गाँधी जी ने खिलाफत कमेटी को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अहिंसक असहयोग आंदोलन छेड़ने को कहा और कांग्रेस पर भी पंजाब के अत्याचार का स्वराज के मुद्दे का दवाब पर असहयोग आंदोलन छेड़ने के लिए दबाव डाला। अतः 1920 के नागपुर अधिवेशन में कांग्रेस ने असहयोग आंदोलन के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गाँधी जी ने कहा कि एक वर्ष के अंदर स्वराज प्राप्त कर लिया जायेगा।

इस आंदोलन के दौरान उपाधियों को लौटाया गया, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया,जरुरत के समय कर रोको आंदोलन चलाया। स्वदेशी पर बल दिया, राष्ट्रीय विद्यालयों का निर्माण किया, पंचायतो के माध्यम से विवादों का निपटारा किया, छुआछूत के विरुद्ध कदम उठाये। ये ऐसा समय था जैसे Biography of Mahatma Gandhi कोई फिल्म चल रही हो।

असहयोग आंदोलन के प्रसार के समय तिलक स्वराज फण्ड बनाया गया जिसमें 1 करोड़ से ज्यादा का धन जमा हुआ। मिदनापुर में किसान संगठन बना, बंगाल के राष्ट्रवादी नेता सेनगुप्त ने रेलवे कर्मचारियों और मजदूरों की हड़ताल में भूमिका रही। नोव। 1921 में आंदोलन उग्र हो गया इंग्लैंड के राजकुमार के आगमन पर बॉम्बे में हिंसक वारदात हुई। आंदोलन के समय कई नेताओं ने कांग्रेस छोड़ दी। चौरी-चौरा में 5 Feb 1922 हिंसा हुई और इस हिंसा के उपरांत 12 Feb 1922 को बारदोली प्रस्ताव के तहत असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया गया। अनेक नेताओ ने आंदोलन वापसी पर असहमति प्रकट की और इसी दौरान मार्च 1922 में गाँधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया। इस आंदोलन ने यह बात जाहिर कर दी कि आजादी कि भूख पूरे राष्ट्र में है।

सविनय अवज्ञा आंदोलन(1930)

12 मार्च, 1930 को प्रसिद्ध दांडी यात्रा द्वारा गाँधी जी ने इस आंदोलन की शुरुआत की। उन्होंने साबरमती से दांडी तक 200 मील की पैदल यात्रा की और 6 अप्रैल को मुठ्ठी भर नमक उठा कर कानून का तोड़ दिया इसके पश्चात् सभी जगहों पर नमक कानून भंग किया गया। इस आंदोलन में महिलाओ ने शराब की दुकानों के बाहर धरना दिया।

जनता को हरकत में लाने के लिए गाँवो और कस्बों में प्रभात फेरियाँ बनायीं गयी जिनमें औरतें और बच्चे प्रातः काल राष्ट्रीय गान गाते हुए गली-गली घूमते। गाँवो तक राष्ट्रीय सन्देश पहुंचने के लिए जादुई लालटेन काम में लायी जाती। पहले की तरह ही कार्यकर्त्ताओ और नेताओं के लगातार दौरे, जन सभायें आयोजित की गयी। इस आंदोलन को औद्योगिक घरानों का विशाल समर्थन मिला जो पहले के आंदोलनों में नहीं था।

ब्रिटेन ने भारतीय मुद्दे पर विचार करने के लिए गोलमेज सम्मलेन (1930)रखा लेकिन कांग्रेस ने इसमें भागीदारी नहीं की इस कारण यह महत्वहीन हो गया वायसराय इरविन ने दूसरा गोलमेज रखा इसके लिए गाँधी जी को जेल से रिहा कर 5 मार्च 1931 को गाँधी जी इरविन समझौता हुआ जिसमें सविनय अवज्ञा आंदोलन को स्थगित कर गोलमेज सम्मलेन में भाग लेने की बात की गयी। गाँधी जी ने गोलमेज़ में हिस्सा लिया लेकिन उसे बीच में ही छोड़कर वापस आ गए । 1 जनवरी 1932 को फिर से सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया गया। जवाब में सरकार ने कांग्रेस को अवैध घोषित कर, गाँधी जी और अन्य बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया। अंततः 1934 में कांग्रेस द्वारा आंदोलन को अंतिम रूप से समाप्त कर दिया गया।

नमक का मुद्दा एक ऐसा मुद्दा था किससे सभी वर्ग प्रभावित होते। यह एक भावनात्मक मुद्दा था जिससे छोटे-बड़े, ऊंच-नीच सभी जुड़े हुए थे।

भारत छोड़ो आंदोलन (1942)

कांग्रेस कार्य समिति के द्वारा जुलाई 1942 में वर्धा बैठक में इस प्रस्ताव को पेश किया गया और गाँधी जी को इस आंदोलन के लिए अधिकृत किया गया अतः 8 अगस्त 1942 को  बॉम्बे में ग्वालिया टैंक मैदान में इस प्रस्ताव को पारित कर दिया गया। इस अवसर पर गाँधी जी ने  करो या मरो का नारा दिया अर्थात या तो आजादी प्राप्त करो या मर जाओ। Biography of Mahatma Gandhi की यही खूबसूरती है कि उनके वाक्यों में इतनी कठोरता पहले नहीं दिखी। लेकिन अब उन्हें अहसास हो गया था कि हम आजादी के बेहद नजदीक है और यही सही समय था अपनी पूरी ताकत दिखने को, ब्रिटेन की स्थिति पहले से ही ख़राब थी द्वितीय विश्व युद्ध के कारण।

इस आंदोलन में गाँधी जी ने आह्वान किया कि यदि आंदोलन के लिए निर्देशन नहीं मिलता तो लोग स्वयं अपना निर्देशन करें। इस आंदोलन के लिए कोई निश्चित कार्यक्रम जारी होने से पहले ही गाँधी जी सहित सभी प्रमुख कोंग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इस आंदोलन में पूरे देश द्वारा भागीदारी की गयी। खास कर किसान, मजदूर, छोटे जमीदार, महिलायें द्वारा। RSS इस आंदोलन से अलग रहा।

सरकारी दमन के द्वारा इस आंदोलन को दबा दिया गया किन्तु सरकार को यह समझ आ गया कि लोगों में असंतोष कितना गहरा है। अब इस उपनिवेश में कुछ गिने चुने दिन ही रह गए हैं।

देश का विभाजन

पहली बार चौधरी रेहमत अली द्वारा पाकिस्तान का सुझाव दिया गया और फिर भारत कि आजादी के साथ जिन्ना के नेतृत्व में पाकिस्तान की मांग भी तेज हो गयी गाँधी जी कभी नहीं चाहते थे कि भारत के दो हिस्से हों। अंग्रेजों ने जाते जाते अपने देश के दो हिस्से कर ही दिए- भारत और पाकिस्तान। गाँधी जी अपनी पूरी जिंदगी हिन्दू मुस्लिम एकता, भाईचारे को साथ लेकर आगे बढ़ने की सीख देते रहे किन्तु कुछ गलतियों ने हमेशा के लिए जमीनों का बटवारा कर दिया। निश्चित ही Biography of Mahatma Gandhi के हिसाब से ये सबसे दुखदायी समय रहा होगा।

गाँधी जी की हत्या

30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, बापू , मोहन दास करमचंद गाँधी आदि सभी नामों की दिल्ली के ‘बिरला हाउस’ में शाम 5:17 पर हत्या कर दी गयी। उस समय गाँधी जी एक प्रार्थना सभा को सम्बोधित करने जा रहे थे तभी नाथूराम गोडसे ने गोली मार कर उनकी हत्या कर दी। ‘हे राम’ उनके मुख से निकले अंतिम शब्द थे।

 

   

 

 

 

 

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