बेरोजगारी क्या है(Berojgari kya hai)?

बेरोजगारी क्या है(Berojgari kya hai)? इस आर्टिकल में इस विषय को ही जानने का प्रयास किया गया है। बेरोजगारी किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। अगर वह देश विकासशील है। तो यह समस्या और भी अधिक बड़ी हो जाती है। किसी भी देश के लिए बेरोजगारी मानव संसाधन की हानि है।

बेरोजगारी क्या है(Berojgari kya hai)?

एक व्यक्ति को बेरोजगार तब माना जाता है। जब वह प्रचलित मजदूरी की दर पर काम करने के लिए तैयार या इच्छुक है, किन्तु उसे काम नहीं मिलता है। इस बात को इस प्रकार से भी कहा जा सकता है, किसी समाज में प्रचलित मजदूरी की दर पर काम करने के लिए इच्छुक एवं सक्षम व्यक्ति को कोई कार्य नहीं मिलता तब ऐसे व्यक्ति को बेरोजगार तथा ऐसी समस्या को बेरोजगारी की समस्या कहते हैं।

अथवा

कार्य करने की इक्छा होते हुए ही अवसरों की कमी के कारण कार्य से वंचित व्यक्ति की आर्थिक सामाजिक समस्या को बेरोजगारी कहते हैं।

बेरोजगारी के प्रकार(Berojgari ke prakar)

बेरोजगारी को दो भागों में बांटा गया है।

  • शहरी बेरोजगारी
  • ग्रामीण बेरोजगारी

शहरी बेरोजगारी

शहरी क्षेत्रों में मुख्य रूप से दो प्रकार की बेरोजगारी है।

औद्योगिक बेरोजगारी

औद्योगिक बेरोजगारी में उन लोगों को शामिल किया जाता है, जो तकनीकी एवं गैर तकनीकी रूप से कार्य करने की क्षमता तो रखते हैं किन्तु बेरोजगार हैं। औद्योगिक क्षेत्र में बेरोजगारी की समस्या जनसँख्या वृद्धि के साथ बढ़ती जाती है। औद्योगिक बेरोजगारी में आर्थिक विकास की रफ़्तार धीमी रहती है जबकि जनसँख्या वृद्धि की रफ़्तार तेज़ रहती है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि सरकार के द्वारा औद्योगिक विकास के लिए बनायीं जा रही नीति कमजोर साबित हो रही है। जिस कारण उपयुक्त मात्रा में रोजगार के अवसर पैदा नहीं हो रहे।

शिक्षित बेरोजगारी

समाज के पड़े लिखे लोगों द्वारा रोजगार प्राप्त न कर पाना शिक्षित बेरोजगारी कहलाती है। भारत जैसे देश में शिक्षित वर्ग में बेरोजगारी की समस्या के कई कारण हैं।

  • भारत में शिक्षा प्रणाली को रोजगार प्राप्त करने के रूप में नहीं बनाया गया बल्कि उपाधियों को ग्रहण करने के रूप में बनाया गया है।
  • शिक्षा और रोजगार में तालमेल नहीं है। शिक्षित लोगों की दर के मुकाबले रोजगार की संभावनाएं बहुत कम हैं।

ग्रामीण बेरोजगारी

ग्रामीण क्षेत्रों में दो प्रकार की बेरोजगारी मुख्य है।

  • अदृश्य बेरोजगारी(Disguised Unemployment)
  • मौसमी बेरोजगारी(Seasonal Unemployment)

अदृश्य बेरोजगारी(Disguised Unemployment)

कृषि क्षेत्रों में इस प्रकार की बेरोजगारी की समस्या अत्यधिक पायी जाती है। अदृश्य बेरोजगारी में किसी कार्य को करने के लिए जितने श्रमिकों की आवश्यकता होती है, उससे अधिक श्रमिक कार्य में लगे हुए होते हैं।

यदि काम में लगे हुए अतिरिक्त श्रमिकों को उत्पादन क्रिया से अलग कर दिया जाये तो कुल उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

मौसमी बेरोजगारी(Seasonal Unemployment)

किसी व्यक्ति को एक वर्ष के किसी मौसम या कुछ महीनों के लिए रोजगार मिलता है, तथा शेष महीने या मौसम में कार्य नहीं मिलता यह ‘मौसमी बेरोजगारी’ कहलाती है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में मौसमी बेरोजगारी अत्यधिक पायी जाती है। भारत की लगभग 48% जनसँख्या कृषि एवं इससे जुड़े कार्यों में संलिप्त है। कृषि एक मौसमी व्यवसाय है। अर्थात कृषि के मौसम के हिसाब से फैसले बोई जाती हैं। एवं खाली मौसम में अक्सर कृषि में कार्यरत किसान बेरोजगार रहते हैं।

बेरोजगारी के अन्य वर्गीकरण

खुली बेरोजगारी

यदि एक व्यक्ति किसी भी उत्पादन कार्य में शामिल नहीं है तो उसकी स्थिति को खुली बेरोजगारी कहते हैं। जैसे कोई श्रमिक कार्य करना चाहता है उसमे कार्य करने के लिए आवश्यक योग्यता भी है। किन्तु उसे काम नहीं मिलता वह पूरे समय के लिए बेकार हो।

संरचनात्मक बेरोजगारी

समाज में रोजगार कि बढ़ती हुई मांग की तुलना में उत्पादन क्षेत्र की सकीर्ण एवं पुरातन संरचना के कारण पायी जाने वाली व्यापक बेरोजगारी को जो निरंतर बढ़ती ही जाती हो। संरचनात्मक बेरोजगारी कहते हैं। भारत जैसे विकासशील देशों में यह समस्या पायी जाती है।

संरचनात्मक बेरोजगारी में कारण 

  • प्रौद्योगिकी एवं उत्पादन तकनीक में परिवर्तन के फलस्वरूप पुराने तकनीकी कारीगरों की आवश्यकता नहीं रहती, वे बेरोजगार हो जाते हैं।
  • मांग में कमी के कारण कुछ उद्योग बंद हो जाते हैं और श्रमिकों को उद्योगों से बाहर कर दिया जाता है।

घर्षण बेरोजगारी

अर्थव्यवस्था में मांग एवं आपूर्ति शक्तियों में साम्य होने की स्थिति में संस्थागत समायोजन की प्रक्रिया चलने लगाती है, और इस संक्रमण काल में कुछ लोग अल्पकालिक बेरोजगारी के शिकार हो जाते हैं। जिनकी समस्या को घर्षण बेरोजगारी कहते हैं। घर्षण बेरोजगारी का ही विशेष रूप मौसमी बेरोजगारी कही जाती है।

अवधि के आधार पर

पूर्ण बेरोजगारी

यदि एक व्यक्ति को औसतन प्रतिदिन 1 घंटे से कम अवधि का कार्य उपलब्ध हो तो उस स्थिति को पूर्ण बेरोजगारी कहते हैं।

अर्द्ध बेरोजगारी

यदि व्यक्ति को औसतन प्रतिदिन 1 घंटे से अधिक लेकिन 4 घंटे से कम अवधि का कार्य उपलब्ध है तो उसकी स्थिति को अर्द्ध बेरोजगारी कहते हैं।

शक्ति के आधार पर

ऐच्छिक बेरोजगारी

मजदूरी के वर्तमान स्तर पर रोजगार के अवसर उपलब्ध होने पर भी उस कार्य को करने की इक्छा न होने के कारण बेरोजगार व्यक्ति की स्थिति को ऐच्छिक बेरोजगारी कहते हैं।

अनैच्छिक बेरोजगारी

मजदूरी के वर्तमान स्तर पर कार्य करने की इच्छा होने के बावजूद रोजगार के अवसर के अभाव के कारण बेरोजगार व्यक्ति की स्थिति को अनैच्छिक बेरोजगारी कहते हैं।

बेरोजगारी के कारण

  • जनसँख्या में तीव्र वृद्धि
  • शिक्षा व्यवस्था में कमी
  • आर्थिक समृद्धि दर का निम्न होना
  • बचत और निवेश का निम्न होना
  • लघु और कुटीर उद्योगों का ख़त्म होना
  • कृषि आधारित उद्योगों का अभाव
  • नागरिकों में कौशल एवं तकनीकी ज्ञान का अभाव
  • अपर्याप्त रोजगार योजनाएं
  • परंपरागत उद्योगों का नष्ट होना
  • स्वरोजगार की इक्छा का अभाव
  • कृषि का संबंध मौसमी व्यवस्था से होना

बेरोजगारी के परिणाम

बेरोजगारी किसी भी देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में एक बड़ी बाधा है।

आर्थिक परिणाम 

  • मानव संसाधन का कुशलतम प्रयोग नहीं हो पाना
  • वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में कमी
  • बचत एवं पूँजी निर्माण की दर में गिरावट
  • निम्न उत्पादन की समस्या

सामाजिक परिणाम 

  • जीवनस्तर की निम्न गुणवत्ता
  • आय और संपत्ति के वितरण में असमानता
  • व्यक्ति के मनोबल में कमी
  • वर्ग संघर्ष
  • सामाजिक गैर क़ानूनी गतिविधियों का बढ़ना

बेरोजगार के विषय पर भारत की स्थिति

भारत में बेरोजगारी दर अपने चरम पर है। twitter पर स्टूडेंट्स के द्वारा बेरोजगार दिवस, मोदी रोजगार दो ट्रेंड कराया गया जिसमें अध्यापको का सहयोग भी था। 60 लाख से अधिक बार छात्रों द्वारा tweet किया गया। छात्रों के द्वारा पहले ऐसा कभी नहीं किया गया

अगर 2014 के बाद बात करें तो रोजगार के सभी स्तरों पर स्थिति पहले से और भी ख़राब हुई है। सरकारी जॉब को लम्बे समय तक लटका कर रखा जाता है। कई कई साल में भर्तियां पूरी की जाती हैं। प्राइवेट सेक्टर भी पूरी क्षमता के साथ जॉब्स को पैदा करने में असमर्थ है। असंगठित क्षेत्र की कमर को GST और विमुद्रीकरण ने तोड़ दिया।

संगठित क्षेत्र में भारत में उपलब्ध कुल रोजगार का 6-7% ही रोजगार है। तथा 93-94% व्यक्ति असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है इसलिए सरकार की श्रम नीति एवं रोजगार नीति को असंगठित क्षेत्र पर ही ध्यान केंद्रित करना चाहिए

बेरोजगारी दूर करने के संबंध में सुझाव

  • रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के लिए कृषि क्षेत्र, औद्योगिक क्षेत्र तथा सेवा क्षेत्र के उत्पादन को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए
  • लघु और कुटीर उद्योगों के विकास को बढ़ावा देना चाहिए
  • पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि एवं पूँजी उत्पाद अनुपात में कमी की जनि चाहिए
  • श्रम की उत्पादकता एवं कुशलता में सुधार करना चाहिए
  • कौशल विकास हेतु कार्यक्रम चलाये जाने चाहिए
  • उत्पादन की तकनीक देश के संसाधनों एवं आवश्यकताओं के अनुसार होनी चाहिए। पूँजी प्रधान तकनीक के स्थान पर श्रम प्रधान तकनीक का प्रयोग करना चाहिए
  • योजनाओं में रोजगार के कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान देना चाहिए

भारत के संबंध में बात करें तो सरकार की तरफ से बेरोजगारी को काबू में करने के लिए बहुत सी योजनाएं चलायी जा रही हैं। जैसे डिजिटल इंडिया मिशन, कौशल विकास से सम्बंधित पोर्टल चलाये जा रहे। कौसल विकास एवं उद्यमिता के लिए राष्ट्रीय निति-2015 को लाया गया, प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम चलाया गया|

इसी प्रकार से बहुत सी योजनाएं हैं। किन्तु बेरोजगारी को पाटने के विषय में कोई खास फायदा नहीं मिल रहा। कोरोना महामारी के बाद पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों की जॉब चली गयी। प्राइवेट सेक्टर के हालत बेहद ख़राब हैं। सॉफ्टवेयर और IT इंडस्ट्रीज से भी कोई खास उम्मीदें नहीं दिख रही हैं। अभी जिस तरह के हालत हैं उसके लिए एक ठोस और लम्बे प्लान की जरुरत हैं। और सबसे ज्यादा जरूरी है, बेरोजगार वर्ग को विश्वाश में लेना।

बेरोजगारी क्या है(Berojgari kya hai) इस विषय पर प्रयास रहा है कि आपको अधिकांश जानकारी प्राप्त हो। और इस आर्टिकल को इस प्रकार से लिखा गया है कि इसका उपयोग निबंध की भांति भी किया जा सके।

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