हाल ही में Union Health Minister Harsh Vardhan के द्वारा assisted reproductive Technology(Regulation) Bill 2020 को 14 September को लोकसभा में प्रस्तुत किया गया यह कहकर कि हमारे देश में बहुत से ART(assisted reproductive technology) Banks और clinics हैं एवं इनके कोई भी आंकड़े नहीं है, इस बात की भी जानकारी नहीं है कि उनके द्वारा कौन से नियम अपनाये जाते हैं, किसी प्रकार का नैतिक अभ्यास किया जाता है या नहीं, और इस प्रक्रिया में बच्चों की सेफ्टी के लिए क्या कदम उठाये जाते हैं भी या नहीं ।
इन सभी मुद्दों को देखते हुए आज तक कोई नियम बनाया ही नहीं गया है।
इस बिल को समझने के लिए सबसे पहले ART(Assisted Reproductive Technology) को समझना होगा
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ART(Assisted Reproductive Technology) होता क्या है।
दुनिया में ऐसे बहुत से couples हैं जो बच्चे नहीं पैदा कर सकते, ऐसे couples के लिए यह टेक्नोलॉजी सहायक सिद्ध हो सकती है। भारत जैसे देश में वंश परंपरा का महत्व अधिक है। उस हिसाब से भी ART सकारात्मक साधन साबित होगा।
इसमें दो प्रकार हैं
1. Artificial Insemination(AI) 2.In Vitro Fertilization(IVF)
1. Artificial Insemination(AI)
इस प्रोसेस में पुरुष से शुक्राणु(Sperm) को एकत्र करते हैं फिर इस स्पर्म को महिला के अंदर स्थांतरित कर दिया जाता है। महिला के द्वारा 9 महीने के गर्भ धारण के बाद बच्चे को जन्म दिया जाता है। इस प्रकतिया को ही artificial insemination कहा जाता है।
2.In Vitro Fertilization(IVF)
इस तकनीक में पुरुष के शुक्राणु को एवं महिला के अंडाणु को शरीर के बाहर प्रयोशाला में नियंत्रित दशा में निषेचित कराया जाता है। इस प्रक्रिया में प्राप्त Zygote को भ्रूण में बदलकर प्रारंभिक अवस्था में महिला के गर्भ में स्थांतरित कर दिया जाता है। जहाँ सामान्य वृद्धि और विकास के बाद शिशु का जन्म होता है। इस प्रक्रिया से जन्मे शिशु को test-tube baby भी कहते हैं।
इस तकनीक का इस्तेमाल प्रजनन सम्बन्धी रोगों से निदान के रूप में किया जाता है। अगर पुरुष या महिला किसी आनुवंशिक रोग से ग्रसित हैं या किसी और समस्या से ग्रसित हो जैसे- हार्मोन्स की अनियमितता के कारण अंडोत्सर्जन या निषेचन कि प्रक्रिया बाधित होती हो, पुरुष में शुक्राणुओं की संख्या एवं गुणवत्ता की कमी हो आदि
जैसी स्थितियों में किसी अन्य महिला के द्वारा इस प्रक्रिया को पूरा किया जाता है जिसे सरोगेट मां की संज्ञा दी जाती है। सरोगेट माँ एक ऐसी माँ होती है जो इसी भ्रूण को अलग से अपने अंदर स्थांतरित कराती है। और असल फादर और मदर की ओर से 9 महीने का गर्भधारण सरोगेट माँ करती हैं। जब भी यह बच्चा पैदा होता है यह इस फादर और मदर का बच्चा कहलायेगा भले ही सरोगेट माँ ने बच्चे को जन्म दिया हो।
सरोगेसी बिल 2019 और ART bill 2020
पिछली साल सरोगेसी बिल आया था और अभी assisted reproductive Technology(Regulation) Bill 2020 लाया गया यह बिल सरोगेसी बिल के पूरक ही है। बल्कि पहला चरण तो ART बिल होना चाहिए उसके पश्चात सरोगेसी बिल। क्यों कि महिला का शोषण तो सरोगेसी में भी किया जा सकता है।
ART(Assisted Reproductive Technology) bill की चिंताए
इस बिल में कहा गया है कि इस टेक्नोलॉजी को केवल विवाहित heterosexual couple ही प्रयोग कर सकता है। जिसमें एक महिला है और एक पुरुष है जिन्होंने शादी की हुई है। उस महिला की उम्र 18 साल से अधिक है, तो ही ये लोग ART का इस्तेमाल कर सकते हैं। किन्तु-
- जो सिंगल पुरुष हैं वह भी बच्चे पैदा करने की बात करते हैं। साथ ही बहुत से heterosexual couple होते हैं जिन्होंने शादी नहीं की होती। जो live-in में रह रहे होते हैं।, LGBT communities में भी पिता या माता का सुख लेने की इच्छा रहती है। क्या इन सभी को हक़ नहीं है? इस बिल में इस प्रकार का कोई प्रावधान नहीं किया गया।
- इस बिल में फॉरेन सिटिज़न्स के लिए कोई रोक नहीं है। अगर वह बाहर से आते हैं तो उनके loving relation को यह बिल मानता है। लेकिन इंडियन loving relation को यह बिल नहीं मानता।
- इस बिल में यह तो प्रावधान है कि जिस महिला द्वारा अंडाणु(egg) दिया जा रहा है उसकी लिखित सहमति होनी चाहिए। किन्तु यह नहीं बोला गया कि वह इस प्रक्रिया में अपनी सहमति को वापस ले सके। इस बिल में महिला के नुकसान भरपाई की बात नहीं की गयी है। अगर वह महिला कहीं काम करती है तो इतने समय में उसे किस प्रकार से सहायता दी जाएगी।
- इस बिल में इंसोरेंस पालिसी की तो बात की गयी है किन्तु इसमें कितने समय में कितना पैसा मिलेगा इसके बारे में नहीं बताया गया।
- अगर कोई महिला विवाहित नहीं है तो वह EGG डोनेट नहीं कर सकती। महिला का विवाहित होना जरुरी है और उसका एक बच्चा हो जो तीन साल की उम्र पूरी कर चूका हो वही महिला EGG डोनेट कर सकती है।
- इसमें यह नहीं बताया गया कि किन आनुवांशिक बिमारियों में ART का इस्तेमाल नहीं होगा।
- बहुत सी जगह पर सरोगेसी बिल और ART बिल के मतभेद आपस में हैं। जैसे- दोनों में सजा देने का प्रावधान अलग-अलग है।
कानूनी पक्ष
- पुट्टा स्वामी केस में उच्चतम न्यायालय ने right to privacy की बात कही थी। आर्टिकल 14 के अनुसार शादी एक पवित्र बंधन है साथ ही पारिवारिक लाइफ कैसी होगी इसका फैसला खुद के द्वारा ही किया जाना चाहिए। व्यक्ति के सोशल स्टेटस से कोई लेना देना नहीं होना चाहिए। व्यक्ति किस समुदाय से है, live-in में रह रहा है, क्या व्यक्ति शादीशुदा है। इस सभी बातों को ध्यान में रखे बिना उसे बिल से फायदा होना चाहिए। इस आधार पर यह बिल उच्चतम न्यायालय के पुट्टा स्वामी केस का उल्लंघन करता है।
ART(Assisted Reproductive Technology) bill के सार्थक पक्ष
- जो बच्चे इस टेक्नोलॉजी से पैदा हो रहे हैं उन्हें यह जानने का हक़ नहीं है कि किसने EGG डोनेट किसने स्पर्म डोनेट किया।
- भ्रूण के जेनेटिक टेस्टिंग की बात कही गयी है इससे यह पता लग सकेगा कि भ्रूण किसी बीमारी से तो ग्रसित नहीं है।
- जो सरोगेसी बोर्ड है वही ART के अंदर भी सलाहकारी निकाय के तोर पर कार्य करेगी।
- बिल में केंद्रीय डेटाबेस के रख-रखाव तथा राष्ट्रीय बोर्ड के कामकाज में सहायता के लिये राष्ट्रीय रजिस्ट्री एवं पंजीकरण प्राधिकरण का भी प्रावधान है।
- संबंधित राज्य में क्लिनिकों एवं बैंकों के लिये राष्ट्रीय बोर्ड द्वारा निर्धारित नीतियों एवं योजनाओं को लागू करने का उत्तरदायित्व राज्य बोर्ड पर होगा।
इस बिल के जरिये सरकार के द्वारा रेगुलेशन करना जरुरी है किन्तु पिछले साल ही 2019 में सरोगेसी बिल लाया गया था तो ऐसे बहुत से मुद्दे हैं जिन पर अंतर्विरोध है। सरोगेसी ART(Assisted Reproductive Technology) का ही भाग है। बिल के द्वारा विभिन्न संस्थाओं के साथ समन्वय होना आवश्यक है।