चीन के द्वारा Artificial Sun(कृत्रिम सूर्य) के निर्माण का प्रयास किया जा रहा है। इसकी प्रक्रिया में सूर्य के अंदर उपस्थित तापमान को कृत्रिम सूर्य में पैदा किया जा रहा। ऐसा करके वैज्ञानिक समझ के द्वारा प्रकृति के लिए अधिक साफ कार्बन मुक्त ऊर्जा प्राप्त करना है।
इस कार्य को करने के लिए चीन में Experimental Advanced Superconducting Tokamak-EAST मशीन का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस मशीन के द्वारा सूर्य की तरह ही ऊर्जा को पैदा किया गया है।
वैज्ञानिकों के अनुसार सूर्य के अंदर के तापमान का अनुमान 15 मिलियन डिग्री सेल्सियस है जबकि इस मशीन के द्वारा सूर्य से भी कई गुना अधिक तापमान (120 मिलियन डिग्री सेल्सियस) को पैदा किया गया है।
सूर्य के ताप की एक खास बात यह है कि सूर्य से अपने तापमान को लगातार स्थित बनाये रखता है किन्तु इस मशीन के द्वारा 101 sec तक ही इस ऊर्जा को पैदा किया जा सका। जिसमें 20 sec के लिए तापमान को 160 मिलियन डिग्री सेल्सियस पर स्थिर बनाये रखा गया।
इस परीक्षण के द्वारा धरती पर इतनी मात्रा में ऊर्जा पैदा करना, एक कठिन और चुनौतीपूर्ण कार्य था। जिसे चीन के द्वारा करके एक रिकॉर्ड कायम किया गया है।
Artificial Sun(कृत्रिम सूर्य) क्या है?
यह नाभिकीय संलयन पर आधारित एक परीक्षण है। जिसे EAST-reactor मशीन के द्वारा सम्पन्न किया गया है। इस परीक्षण को Institute of Plasma Physics of the Chinese Academy of Sciences(ASIPP)- Hefei , china में किया गया। चीन में इस प्रकार की तीन और मशीन हैं। जिसमें HL-2A reactor और J-Text rector मशीन भी शामिल हैं।
HL-2M Tokamak को Dec 2020 में ही चालू किया गया। इसे EAST रिएक्टर की स्थिति तक पहुंचने के लिए लम्बा समय लगेगा। भविष्य में यह चीन का सबसे बड़ा नाभिकीय संलयन पर आधारित परीक्षण होगा।
EAST प्रोजेक्ट का ITER से सम्बन्ध
जहाँ तक EAST की बात है तो यह 2006 में ही शुरू हो गया था। इस तापमान तक पहुंचने के लिए इसे 15 साल लगें हैं। ऐसा नहीं है कि यह केवल चीन का ही प्रोजेक्ट है। दुनिया में सबसे बड़ा International Thermonuclear Experimental Reactor-ITER है, EAST एक प्रकार से इसी प्रोजेक्ट का हिस्सा है। इस ITER प्रोजेक्ट के अंतर्गत लगभग 35 देश शामिल हैं। जिसे 1985 से ही शुरू कर दिया गया था। इस ITER को फ्रांस में बनाया जा रहा है और ऐसा माना जा रहा है कि 2035 में इसे शुरू किया जायेगा। जापान, रूस, USA , साउथ कोरिया सहित भारत भी इस प्रोजेक्ट का हिस्सा है।
जिस प्रकार से सूर्य और तारों में ऊर्जा पैदा होती है उसी प्रकार से इस रिएक्टर में ऊर्जा पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है।
नाभिकीय संलयन प्रक्रिया से लाभ क्या होगा।
वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर संलयन प्रक्रिया पर आधारित रिएक्टर कामियाब होता है तो इससे प्रदुषण की समस्या को कम किया जा सकता है। क्यों कि संलयन प्रक्रिया में nuclear waste बहुत कम होता है। इससे ऊर्जा प्राप्त करना नाभिकीय विखंडन प्रक्रिया के मुकाबले बहुत आसान होगा। अगर संलयन प्रक्रिया को काबू कर लिया जाता है तो ऊर्जा को प्राप्त करने के क्षेत्र में सम्पन्नता प्राप्त की जा सकती है।
संलयन प्रक्रिया में हाइड्रोजन अणु को आपस में जोड़ने का प्रयास किया जाता है। जिससे हीलियम और न्यूट्रॉन के साथ अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा प्राप्त होती है। किन्तु इस प्रक्रिया में बहुत अधिक तापमान 150 मिलियन डिग्री सेल्सियस की आवश्यकता होती है और इस तापमान को लगातार बनाये रखना पड़ता है। जिसकी वजह से रिएक्टर में हॉट प्लाज्मा का निर्माण हो सके। इस प्लाज्मा को रिएक्टर की सतह से दूर रखने के लिए उच्चतम क्षमता के साथ चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण किया जाता है। ऐसा करने से प्लाज्मा ठंडा नहीं होता और अपनी स्थिति बनाये रखता है।
चीन द्वारा किये जा रहे प्रयास ITER प्रोजेक्ट के लिए आवश्यक हैं। अब चीन के द्वारा प्रयास किया जा रहा है कि EAST reactor में पैदा होने वाले तापमान को वह लम्बे समय तक बनाये रखे। यह बात कहने में बहुत आसान है किन्तु वैज्ञानिकों का मानना है की ITER प्रोजेक्ट को पूरी तरह चालू करने में 30 साल का समय अभी और लगेगा।
चीन की तरह ही साउथ कोरिया भी इसी तरह का प्रयास कर रहा है। जिसने KSTAR रिएक्टर में 100 मिलियन डिग्री सेल्सियस को 20 sec तक बनाये रखा गया था।
Artificial Sun चीन का यह प्रोजेक्ट भविष्य के प्रोजेक्ट के लिए उम्मीद है। इन परीक्षणों से चीन अपनी परमाणु ऊर्जा अनुसंधान(nuclear power research) क्षमताओं को शाबित कर रहा है। और उसके द्वारा इनमें बेहतरी के प्रयास किये जा रहे। जिनका अंतिम रिजल्ट प्राप्त करने में लम्बा समय है।