आज दुनिया को आधुनिकीकरण एवं मशीनीकरण ने अन्धा बना दिया है। विकास की इस दौड़ में मनुष्य स्वास्थ्य के खतरों से भी समझौता करा हुआ है। शहरों का स्वरुप धुएं के गोले में तब्दील होता जा रहा। सर्दियों के मौसम में देश के अधिकांश बड़े शहर वायु प्रदुषण की समस्या से जूझते हैं।
देश में वायु प्रदुषण एक गंभीर समस्या है। हर साल लाखों लोग साँस लेने की तकलीफ से अपनी जान गवा देते हैं। प्रदूषण के कारण शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता में निरंतर कमी होती जा रही। नगरीकरण के बढ़ते चलन की वजह से जंगल, पेड़, नष्ट होते जा रहे, जिस कारण ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आती जा रही, वायु में हानिकारक गैसों का प्रभाव बढ़ता जा रहा।
Table of Contents
वायु प्रदूषण क्या है?(what is Air Pollution in Hindi)
वायु विभिन्न गैसों का मिश्रण है। जो पृथ्वी के चारों ओर आवश्यक रूप से व्याप्त है, इस व्याप्त आवरण को ही वायुमंडल कहा जाता है। इसमें 78% नाइट्रोजन, 21% ऑक्सीजन, 0.9% ऑर्गन, o.o3% कार्बन डाई ऑक्साइड है। इसके अलावा नियोन, क्रिप्टॉन, हीलियम, हाइड्रोजन आदि गैस अत्यंत निम्न स्थिति में वायुमंडल में उपस्थित है।
जब वायुमंडल में प्रदूषक, हानिकारक गैस आदि की मात्रा बढ़ जाये एवं इनकी वजह से वायु की गुणवत्ता में गिरावट हो तथा यह गिरावट जीव जंतुओं, मनुष्य के लिए हानिकारक हो, वायु के द्वारा पैदा हुई ऐसी स्थिति को वायु प्रदुषण(Air Pollution in Hindi) कहा जाता है।
वायु प्रदुषण से खतरा क्यों अधिक है?
Assocham एवं Arbitrage research Institute के द्वारा noncommunicable disease(गैर संचारी रोगों) के ऊपर एक रिपोर्ट जारी की गयी। जिसमें इस बात को शामिल किया गया कि वायु प्रदुषण की वजह से हेल्थ केयर में हो रही हानि पर कोई जानकारी नहीं है। 2017 में non communicable disease(हार्ट अटैक एवं स्ट्रोक, कैंसर, श्वास संबंधी बीमारियाँ, मधुमेह आदि) से 6.3 million भारतीयों की जान गयी इसमें 1.24 मिलियन लोगों की जान पर्यावरणीय समस्याओं के कारण हुई। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में प्रति 1000 लोगों में से 16 लोगों को non communicable disease है। इनमें ज्यादातर संख्या 26-59 के बीच के लोगों की है।
Global Burden of Disease Study के द्वारा Particulate Matter(PM) को लोगों के स्वास्थ्य के विषय में पाँचवां सबसे बड़ा खतरा बताया है। इसके अनुसार 2015 में दुनिया में 4.2 मिलियन लोगों की जान गयी।
हवाई में स्थित Mauna loa Observatory के द्वारा वायु में कार्बन डाई ऑक्साइड के concentration(सघनता) पर रिपोर्ट दी गयी जिसमें कहा है कि 1950 में कार्बन डाई ऑक्साइड के concentration(सघनता) 315 PPM(Part per million) था जो अब 420 PPM हो गया है।
WHO के अनुसार प्रदुषण के खतरों की वजह से सबसे अधिक नुकसान दुनिया के हेल्थ सेक्टर को है। लोगों का व्यवहार और उनमें साधारण बीमारियां( खांसी, जुखाम, कफ) आम होती जा रही हैं।
वायु प्रदुषण के मुख्य कारण
खेतों में आग
फसल कटने के बाद किसान खेत में आग लगा देते हैं। जो वायु प्रदुषण का कारण बनती है। हरियाणा के क्षेत्रों में पराली के जलाने से हवा के साथ धुँआ दिल्ली में प्रदुषण का कारण बनता है।
प्लास्टिक के जलाने से
देश में प्लास्टिक की समस्या बढ़ती जा रही है। यह ऐसा पदार्थ है जो हजारों सालों तक अपनी मूल अवस्था में बना रहता है और इसका प्रबंधन करना भी कठिन कार्य है। इन कारणों से प्लास्टिक को जलाकर नष्ट करने में वायु प्रदुषण गंभीर रूप से होता है।
कचरे का कुप्रबंधन
कचरे के प्रबंधन की समस्या पर ठोस कार्य प्रणाली का अभाव है। कचरे के प्रबंधन न होने की स्थिति में दूषित गंध पर्यावरण एवं वायु को प्रदूषित करती है। इससे निकलने वाली कार्बन मोनोऑक्साइड स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है।
कारखानों और भट्टों से निकलने वाला धुँआ
निर्माण कार्य की तीव्र प्रगति ने कारखानों और भट्टों की संख्या को बढ़ाया है एवं आज भी ऐसी जगहों पर पुरानी परंपरागत तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। और इनके द्वारा निष्कासित धुएं को सीधे ही वायु में छोड़ दिया जाता है।
जंगलों में आग का लगना
गरमी के मौसम में जंगलों में आग लगने की समस्या वायु प्रदूषण का कारण बनती है। जंगलों में आग लगने से बड़ी मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है।
वाहनों की बढ़ती संख्या
शहरों में गाड़ियों की भीड़ से निकलने वाला धुँआ, शहरी प्रदुषण के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है।
वायु प्रदुषण के प्रकार (Air Pollution in Hindi)
उत्पत्ति के आधार पर
प्राकृतिक प्रदूषक (Natural Pollutants)
ये ऐसे प्रदूषक हैं जो प्राकृतिक घटनाओं से पैदा होते हैं। जैसे- ज्वालामुखी विस्फोट, जैविक पदार्थों के सड़ने गलने के कारण निकलने वाली गैसें(नाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, वनों का जलना)। सामान्यतः प्राकृतिक प्रदूषकों से नुकसान होने की गंभीरता कम होती है।
मानव जनित प्रदूषक(Manmade pollutants)
इसमें कारखानों, वाहनों, रसोईघरों, लकड़ी के जलावन आदि से निकलने वाले प्रदूषकों को शामिल किया जाता है।
प्राथमिकता के आधार पर
प्राथमिक प्रदूषक(Primary Pollutants)
ऐसे प्रदूषक जो प्राकृतिक या मानवीय क्रियाकलापों के द्वारा सीधे वायु में छोड़ दिए जाते हैं। जैसे- ईंधन के जलने से सल्फर डाई ऑक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, का निकलना।
द्वितीयक प्रदूषक(Secondary Pollutants)
सूर्य के विद्युतचुंबकीय विकिरणों के प्रभाव के अधीन प्राथमिक प्रदूषकों तथा सामान्य वायुमंडलीय यौगिकों के बीच रासायनिक अभिक्रियाओं के परिणामस्वरुप द्वितीयक प्रदूषक का निर्माण होता है। जैसे- प्राथमिक प्रदूषक सल्फर डाई ऑक्साइड वायुमंडल की ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया करके सल्फर ट्राई ऑक्साइड बनाती है, जो एक द्वितीयक प्रदूषक है। सल्फर ट्राई ऑक्साइड जलवाष्प में मिलकर सल्फ्यूरिक अम्ल बनाती है जो द्वितीयक प्रदूषक है साथ ही यह अम्लीय वर्षा का घटक भी है।
अन्य प्रदूषक
एरोसोल
1 माइक्रोन से 10 माइक्रोन तक के सूक्ष्म कणों को एरोसोल कहा जाता है। इनका उत्सर्जन कारखानों, ताप विद्युत घरों, स्वचालित वाहनों, कृषि कार्यों से होता है। यह कोलायडी कण है जो वातावरण में फैल जाते हैं। यह मानव जनित और प्राकृतिक दोनों हो सकते हैं। यह ठोस और तरल दोनों हो सकते हैं। यह जलवायु को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। उदहारण के लिए, वायु में फैले एरोसोल पृथ्वी की ओर आ रहे खतरनाक रेडिएशन को ग्रहण कर लेते हैं। इसके अलावा वह बादलों के प्रक्रिया को भी प्रभावित करते हैं। मुख्यतः एरोसोल सूर्य से आने वाले विकिरण को परावर्तित कर एल्बिडो में वृध्दि करते हैं, जिससे तापमान में संतुलन की संभावना बनती है।
- एरोसोल से बड़े आकार के कणों को धूल कहा जाता है। धुँआ, कालिख आदि का आकार एरोसोल से कम होता है।
धूम-कोहरा (Smog)
धूम-कोहरा (Smog) शब्द, Fog और Smoke के मिलने से बनता है। प्रकाश रासायनिक स्मोग का प्रमुख घटक ओजोन गैस है यह गैस समताप मंडल में पायी जाती है। इस ओज़ोन गैस के कारण पृथ्वी पर आने वाली पराबैगनी किरणों से बचाव होता है। किन्तु जब यह ओज़ोन गैस धरती के समीप आ जाती है तो यह प्रदूषक की तरह व्यवहार करती है।
फ्लाई एश(Fly Ash)
यह एक सूक्ष्म पाउडर होता है जो वायु के साथ दूर तक फैल जाता है। इसका उत्सर्जन मुख्यतः कोयला आधारित ताप-विद्युत घरों से होता है। फ्लाई एश कणों का निर्माण अल्युमिनियम सिलिकेट, कैल्शियम ऑक्साइड आदि से होता है। इसमें सीसा, आर्सेनिक, कोबाल्ट जैसी जहरीली भारी धातुओं के कण भी होते हैं। इसे electrostatic precipitator की मदद से वायु में मिलने से रोका जा सकता हैं।
निलम्बित कणिकीय पदार्थ(Suspended Particulate Matter)
SPM में ठोस एवं निम्न वाष्प दाब वाले निम्न कण आते हैं। जिनका आकार 0.01 माइक्रोमीटर से 100 माइक्रोमीटर तक होता है। इनमें पाए जाने वाले कण औद्योगिक धूलकण, ज्वालामुखी कण, कार्बन कण और बहुनाभिकीय एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन(PAH) होते हैं। 10 माइक्रोमीटर से छोटे कण जिन्हे PM10 कहते हैं। Respirable Suspended Particulate Matter-RSPM कहलाते हैं। सबसे छोटे 2.5 माइक्रोमीटर से कम आकार के कण होते हैं जिन्हे PM2.5 कहते हैं। ये साँस द्वारा फेफड़ों में गहराई में चले जाते हैं जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
SPM पौधों की प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं
घरेलू वायु प्रदुषण
ग्रामीण क्षेत्रों में खाना बनाने के लिए परंपरागत ईंधन जैसे गोबर, चारकोल, लकड़ी आदि का इस्तेमाल किया जाता है जो वायु प्रदुषण का कारण है। शहरी क्षेत्रों में घरों में पर्याप्त वातानुकूलन नहीं होता, जहरीली गैस जमा होने से गंभीर बीमारियों का खतरा रहता है।
तम्बाकू के धुएं से हानिकारक रसायन निकलते जो कैंसर कारक है। घरों में प्रयुक्त होने वाले परफ्यूम, स्प्रै, आदि पदार्थ घरेलू प्रदुषण के प्रमुख कारण है। इनके प्रयोग से आंख, नाक, त्वचा में जलन की शिकायतें बढ़ती हैं।
वायु प्रदुषण का प्रभाव(Air Pollution in Hindi)
वायु प्रदुषण का प्रभाव मनुष्य, जीव जंतु, पर्यावरण सभी पर है।
मनुष्य पर प्रभाव
वायु प्रदुषण मनुष्य के तंत्रिका तंत्र, फेफड़ों एवं रक्त परिसंचरण तंत्र को प्रभावित करता है। प्रदुषण की वजह से विभिन्न प्रकार के रोग जैसे- चार्म रोग, साँस लेने में समस्या, अस्थमा, अनिद्रा, TB , आदि होते हैं।
पेड़ पौधों एवं जीव जंतुओं पर प्रभाव
पेड़ पौधों एवं जीव जंतुओं पर वायु प्रदुषण का प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। अम्ल वर्षा, ओज़ोन परत के क्षय आदि से पौधों की विभिन्न क्रियाएं प्रभावित होती हैं। वायु प्रदुषण से जलीय एवं स्थलीय जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
जलीय पारितंत्र में फाइटोप्लैंकटन में कमी होती है जिससे पारितंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पौधों के विकास की प्रक्रिया रुक जाती है। UV विकिरण स्थलीय एवं जलीय जैव भू-रासायनिक चक्र को प्रभावित करता है।
ओज़ोन परत पर प्रभाव
मानव जनित प्रक्रियाओं के कारण वायुमंडल में क्लोरीन, ब्रोमीन आदि कणों का उत्सर्जन होता है जो ओज़ोन के विनास का कारण बनते हैं। ओज़ोन का विघटन करने वाले पदार्थों में मुख्यतः क्लोरोफ्लोरोकार्बन(CFC), हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन(HCFC), कार्बन टेट्राक्लोराइड आदि हैं।
जलवायु एवं मौसम पर प्रभाव
वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड के सांद्रण में वृद्धि होने से वायुमंडल के हरितगृह प्रभाव में वृद्धि हो जाएगी। इससे धरातल के सतह का तापमान बढ़ जायेगा। जिससे हिम खंड पिघलेंगे, समुद्र के जलस्तर में बढ़ोत्तरी होगी जो बहुत से क्षेत्रों को जलमग्न कर देगा। तापमान के बढ़ने से मरुस्थलीकरण एवं सूखा में वृद्धि होगी।
वायु प्रदुषण की रोकथाम के उपाय(Air Pollution in Hindi)
- दुनियां में सड़कों पर वाहनों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। एवं वाहनों द्वारा उत्सर्जित धुआं शहरी वायु प्रदुषण का मुख्य कारण है। शहरों को वायु प्रदुषण से मुक्ति दिलाने के लिए नए विकल्पों को तेज़ी से अपनाना होगा। जैसे इलेक्ट्रिक वाहन, हाइड्रोजन फ्यूल से चलने वाले वाहन, CNG के विकल्प पर निर्भरता को बढ़ाना होगा।
- कारखानों से निकलने वाले फ्लाई एश का उपयोग भूमि भराव के रूप में किया जा सकता है, फ्लाई एश से ईटों का निर्माण किया जा सकता है, खेतों में छिड़काव करके भूमि की उर्वरता बड़ाई जा सकती है।
- कारखानों से निकलने वाले प्रदुषण को रोकने के लिए कार्बन फ़िल्टर का उपयोग करना चाहिए। औद्योगिक सेक्टर को लाल, नारंगी, हरी, एवं श्वेत श्रेणी के तहत वर्गीकृत करके मापदंडों को लागू करवाना चाहिए।
- शहरों में वायु प्रदुषण की मात्रा बढ़ने पर प्रदुषण को सोखकर स्वच्छ वायु देने वाले टावर लगाने चाहिए।
- सरकारों के द्वारा समय समय पर वायु की गुणवत्ता की जाँच कराते रहना चाहिए। केंद्र सरकार के राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम की तरह राज्य सरकारों को भी कार्यक्रम चलाने चाहिए।
हर साल वायु की गुणवत्ता में हो रही कमी को हम सभी के द्वारा महसूस किया जा रहा है। वायु प्रदुषण की वजह से आँखों में जलन, साँस में तकलीफ जैसी समस्याएं आम हैं। दिल्ली जैसे शहरों में वायु प्रदुषण(Air Pollution in Hindi) काले धुंध के रूप में नजर आता है। अभी गॉव के स्तर पर स्थिति बेहतर है किन्तु आधुनिकता प्रदुषण की जननी है।